SIR बना जानलेवा, BLO क्यों कर रहें सुसाइड?

देशभर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के नाम पर जारी इस मुहिम ने अब तक कई जानें ले ली हैं। केरल, राजस्थान के बाद गुजरात से भी दर्दनाक खबर सामने आई है, जहां एक शिक्षक की हार्ट अटैक से मौत हो गई है। परिवार ने सीधे तौर पर इस काम का भारी बोझ और दबाव को इसकी वजह बताया है। क्या चुनाव आयोग की यह मुहिम अब जानलेवा साबित हो रही है?

क्या है SIR?

चुनाव आयोग ने 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची को साफ-सुथरा बनाने के लिए विशेष पुनरीक्षण शुरू किया है। इसमें घर-घर जाकर वोटर एनुमरेशन फॉर्म भरवाना, डिजिटाइज करना और ऐप पर अपडेट करना शामिल है। हर बूथ लेवल ऑफिसर को लगभग 800 से 1500 वोटर्स की जिम्मेदारी दी गई है, जिसमें हर घर का तीन बार दौरा जरूरी है। यह काम दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य है, और इसमें अधिकतर सरकारी शिक्षक और आंगनवाड़ी वर्कर्स लगे हैं, जो अपनी नियमित नौकरी के साथ यह अतिरिक्त जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

परिवार ने कहा- रात के 2-2 बजे तक भरवाते थे फॉर्म

केरल के कन्नूर में 44 वर्षीय BLO अनीश जॉर्ज ने 16 नवंबर को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिवार का आरोप है कि काम का अत्यधिक दबाव और रात-2-2 बजे तक फॉर्म भरने के कारण यह कदम उठाना पड़ा।

राजस्थान के जयपुर में 45 वर्षीय शिक्षक और BLO मुकेश जांगिड़ ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी। सुसाइड नोट में लिखा कि सुपरवाइजर बार-बार फोन कर धमकी दे रहे थे और टारगेट पूरा नहीं होने का तनाव था।

मध्य प्रदेश, बंगाल, तमिलनाडु में भी कई BLOs ने आत्महत्या की कोशिश की है या कर चुके हैं। राजस्थान में ही एक BLO को हार्ट अटैक भी आया है।

गुजरात में आज BLO शिक्षक ने की आत्महत्या

गुजरात के खेड़ा जिले में 50 वर्षीय स्कूल प्रिंसिपल एवं BLO रमेशभाई परमार की नींद में ही हार्ट अटैक से मौत हो गई। परिवार का आरोप है कि पिछले 15-20 दिनों से रोज 94 किलोमीटर मोटरसाइकिल चलाकर ड्यूटी करना, देर रात तक डेटा एंट्री करना उनकी जान ले गया। बेटी शिल्पा और भाई नरेंद्र ने मीडिया से कहा, “पापा BLO काम के तनाव में थे, नेटवर्क समस्या के कारण घर आकर काम करते थे, डिनर के बाद सोए और फिर सुबह नहीं उठे।”

इसी तरह, गुजरात के सोमनाथ क्षेत्र के शिक्षक अरविंद वाधेर ने भी आज, शुक्रवार को SIR से जुड़ी जिम्मेदारियों के चलते आत्महत्या कर ली है।

SIR मामले में दैनिक भास्कर ने BLO से बातचीत की…

सवाल- आप BLO की ड्यूटी कर रहे हैं। SIR काम की ड्यूटी जो आप लोगों को दी गई है, उसमें समस्याएँ क्या-क्या आ रही हैं? एक BLO की क्या समस्या है, कर्मचारी इससे कैसे जूझ रहा है?

जवाब- देखिए, BLO ने सुसाइड कर लिया है, सुसाइड करने का कारण बनता है। अधिकारियों को तो सब हरा ही हरा दिखेगा क्योंकि उन्हें तो डाटा भेजा रहा है। उन्हें नहीं पता कि किस कंडीशन से sir निकाला जा रहा है। तो आप सोचिए, अगर कोई BLO आत्महत्या कर रहा है, इसमें सबसे बड़ी समस्या क्या है? ये समझने की बात है। जैसे, किसी महिला, जिसकी उम्र 40 साल है या 60 साल भी है, उस महिला से उसके माता-पिता का नाम पूछ रहे हैं… वो महिला पहली वाली sir सूची में भी है, 2003 में भी है, 2025 में भी है, फिर भी उसके माता-पिता अनिवार्य है। अगर वो महिला बुजुर्ग अवस्था में पहुंच गई और वो अपने माता या पिता का नाम नहीं बता पाई तो उसकी जानकारी कैसे निकाली जाए।

सवाल- क्या इसके लिए कोई प्रोविजन नहीं है कि कोई नाम नहीं बता पा रहा है तब भी उसका sir  हो जाए?

जवाब- इसके लिए कोई प्रोविजन नहीं है, SIR डिटेल भरने के लिए माता-पिता का नाम बताना अनिवार्य है। लेकिन जब कोई नाम खुद नहीं बता पा रहा है तो ये डिटेल हम कैसे बता पाएंगे। ऐसे में BLO से कहा जा रहा है कि बूथ संख्या से या विधानसभा क्षेत्र या घर जाकर उस व्यक्ति के द्वारा किसी भी माध्यम से माता-पिता की जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इसमें एक ऑप्शन आता है कि SIR में एनरोल्ड नहीं है, तो फार्म समिट हो जाता है। इस दौरान अगर कोई BLO बिना डिटेल भरे SIR फॉर्म-3 भरकर जमा कर दें तो अधिकारी बोलते हैं कि बाद में जब रिपोर्ट आएगी तो आपका ही काम बढ़ जाएगा। ऐसे में BLO पर दबाव बढ़ रहा है। यह भी हमसे कहा जाता है कि नहीं, उनका नाम निकाल दो। तो अब, हम कैसे निकालेंगे?

सवाल- SIR को लेकर एक BLO पर किस तरह का दबाव बढ़ रहा है?

जवाब – SIR का डाटा नहीं है। दूसरा कोई डिवाइस नहीं। आप सभी को अपने फोन से लगा हुआ है, अपना डाटा यूज़ कर रहे हैं, अपना समय यूज़ कर रहे हैं। टाइम बहुत कम है, काम बहुत ज्यादा। सुनिए, काम करना क्या है, इसमें ये फॉर्म मतदाता से भराना है। अब बताइए, क्या मतदाता इस सूची में डिटेल भर पाएगा? नहीं, भर पाएगा। यह तो बीलो का काम है। हमसे कहा गया कि मतदाता को फॉर्म बाट दो, मतदाता से दो दिन बाद भरकर वापस ले लो। अब, इनकी सूचना हम कहां से लेंगे? मान लीजिए, वाट्सएप नंबर नहीं है, तो कहां से लेंगे? ये सारी बातें हैं। उनको काम सतर्कता से चाहिए। इस दबाव में BLO परेशान हो रहा है।

देशभर में शिक्षक संगठन, NGO यूनियन, विपक्षी पार्टियां और समाजसेवी संस्थान सड़कों पर हैं। केरल में IUML ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। राजस्थान में शिक्षक संघों ने सरकार को ज्ञापन सौंपे हैं। बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर इसे “अमानवीय” बताया है।

वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि BLOs को सिर्फ 31 दिन का ही काम दिया गया है और कोई अतिरिक्त बोझ नहीं है। अब तक कोई फॉर्मल शिकायत भी नहीं आई है। लेकिन धरातल की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है, देर रात काम, धमकियां, सस्पेंशन का डर, और तकनीकी दिक्कतें।

क्या मतदाता सूची को साफ-सुथरा करने की यह मुहिम इतनी जरूरी है कि उसकी कीमत इंसानों की जान से चुकानी पड़े? क्या इस काम के लिए ट्रेनिंग, अतिरिक्त स्टाफ या डेडलाइन में थोड़ी छूट नहीं दी जा सकती? यह सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगी का सवाल बन चुका है।

चुनाव आयोग को चाहिए कि वह तुरंत इस मसले पर संज्ञान ले, नहीं तो यह सिलसिला और भी भयावह होता जाएगा।

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