
Bihar CM Nitish Kumar : बिहार में नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जिससे स्पष्ट है कि राज्य की राजनीति में उनका दबदबा अभी भी बरकरार है। उन्होंने अपनी पुरानी टीम को बरकरार रखा है। भाजपा ने युवा चेहरों को आगे बढ़ाकर 2030 के लिए अपनी योजना शुरू कर दी है। नीतीश कुमार का प्रभाव अभी भी बिहार की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण है, और भाजपा ने इसे स्वीकार कर लिया है।
बिहार में एक बार फिर वही हुआ, नीतीश ही के चले। 20 साल से राज्य की राजनीति के केंद्र में रहे नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए साफ कर दिया कि बिहार में सत्ता समीकरण चाहे जितना बदले, अंतिम निर्णय वही लेते हैं। 29 अक्टूबर तक उनके दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर संदेह था, लेकिन 20 नवंबर को जब 26 मंत्रियों के साथ शपथ ली गई, तो तस्वीर बिल्कुल उलट चुकी थी।
मजबूत होकर लौटे नीतीश, कैबिनेट से दिया संकेत
26 मंत्रियों को शपथ दिलाने के साथ ही सरकार ने संकेत दे दिया कि अभी कैबिनेट विस्तार नहीं होगा। अधिकतम 36 मंत्रियों की क्षमता वाले राज्य में 10 पद खाली रखकर नीतीश ने वही फॉर्मूला दोहराया है, जो उन्होंने तब अपनाया था जब वे मजबूत हुआ करते थे, 2005, 2010 और 2015 में। बीते तीन चरणों, 2020, 2022 और 2024, में वे कमजोर थे और शपथ के कुछ ही हफ्तों बाद विस्तार करना पड़ा था। इस बार उन्होंने ऐसा कोई मौका नहीं दिया।
एकसाथ मंत्रियों को शपथ दिलाकर उन्होंने मीडिया की उस कयासबाजी पर भी विराम लगा दिया, जिसमें भाजपा द्वारा अपना मुख्यमंत्री लाने की बात कही जा रही थी।
नीतीश की कोर टीम जस की तस, भाजपा ने सॉफ्ट चेहरे आगे किए
नीतीश कुमार ने अपने कोटे के आठों पुराने मंत्रियों को पुनः जगह दी है। यह स्पष्ट संदेश है कि वे अपनी टीम पर भरोसा करते हैं और किसी तरह का प्रयोग नहीं करना चाहते। दूसरी ओर, भाजपा ने नई राजनीति का संकेत देते हुए 6 नए चेहरों को कैबिनेट में जगह दी है और पुराने हार्डलाइनर नेताओं को हटाकर सॉफ्ट इमेज वाले नेताओं को प्राथमिकता दी है।
श्रेयसी सिंह और संजय सिंह टाइगर जैसे युवा चेहरे को शामिल कर पार्टी 2030 के नेतृत्व की तैयारी कर रही है। EBC से आनंद शंकर प्रसाद और रामा निषाद, तथा दलित चेहरे के रूप में लखेंद्र रौशन को जगह देकर भाजपा ने अपना सामाजिक कैलकुलेशन भी मजबूत किया है।
BJP को नीतीश की क्यों माननी पड़ी हर बात?
हालांकि भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और सहयोगियों LJP(R), HAM और RLM के साथ मिलकर 117 सीटों तक पहुंच सकती थी, पर बहुमत से अब भी 5 सीट कम थी। तकनीकी रूप से सरकार बन सकती थी, लेकिन राजनीतिक रूप से नीतीश के बिना वह स्थिर नहीं रहती। इसकी सबसे बड़ी वजह है, नीतीश का सेंटिमेंट।
वे कुर्मी, EBC और महादलित वर्ग के निर्विवाद नेता हैं, और 16% से अधिक वोट सीधे इन्हीं के नाम पर मिलता है। इसके अलावा बिहार में महिलाओं के बीच उनकी पकड़ बहुत मजबूत है। पाँच चुनावों से यही पैटर्न है कि नीतीश जिधर जाते हैं, सत्ता वहीं बनती है। भाजपा यह भी मानकर चल रही है कि नीतीश के बाद जेडीयू कमजोर होगी और उनका वोट बैंक स्वाभाविक रूप से भाजपा की ओर आ जाएगा। इसलिए फिलहाल वे टकराव की बजाय सहमति की राजनीति कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, नई कैबिनेट इस बात की पुष्टि करती है कि नीतीश कुमार अभी भी बिहार की सबसे निर्णायक राजनीतिक शक्ति हैं। भाजपा ने यह समझ लिया है और 2030 की तैयारी उसी के अनुसार कर रही है। बिहार की सत्ता में आज भी वही होता है, जो नीतीश चाहते हैं।
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