संकेतों की पहचान: सीओपीडी हस्तक्षेप के लिए प्रारंभिक पहचान

  • डॉ. अनंत शील चौधरी

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) एक दीर्घकालिक श्वसन रोग है, जिसकी विशेषता वायु प्रवाह में रुकावट और सांस लेने में कठिनाई है। भारत में यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। 37.8 मिलियन मामलों के साथ यह मृत्यु और विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों का दूसरा प्रमुख कारण है। इसके उच्च स्तर के बावजूद, इसके कारणों, लक्षणों और उपचार के बारे में जागरूकता की कमी के चलते सीओपीडी अक्सर निदान नहीं हो पाता, जिसके कारण इसका प्रबंधन प्रभावित होता है।

सीओपीडी को समझना:

सीओपीडी को आमतौर पर एम्फिसीमा या क्रोनिक ब्रोंकाइटिस कहा जाता है। एम्फिसीमा में फेफड़ों की छोटी वायु थैलियों को नुकसान पहुँचता है, जबकि क्रोनिक ब्रोंकाइटिस में वायुमार्ग की सूजन के कारण बलगम के साथ लगातार खांसी होती है। इसके कारणों में घर के अंदर का प्रदूषण (जैसे चूल्हे का धुआँ), बाहरी प्रदूषण और हानिकारक पदार्थों का संपर्क, विशेषकर खेती में, शामिल हैं। हालांकि, धूम्रपान सबसे बड़ा जोखिम कारक है। इसके सामान्य लक्षणों में साँस लेने में कठिनाई और कफ के साथ पुरानी खांसी शामिल हैं।

प्रारंभिक पहचान की महत्वपूर्ण भूमिका:

सीओपीडी धीरे–धीरे बढ़ता है, इसलिए इसके लक्षण भी धीरे–धीरे प्रकट होते हैं और समय के साथ बिगड़ते जाते हैं। इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप चलना, भोजन बनाना जैसी सामान्य दैनिक गतिविधियाँ भी मुश्किल हो जाती हैं। गंभीर मामलों में लक्षणों के तेज़ बढ़ने से सीओपीडी एक्सेसर्बेशन हो सकता है, जिससे उबरने में एक महीने से अधिक समय लग सकता है।

यदि समय पर पहचान न हो, तो सीओपीडी जानलेवा जटिलताओं का कारण बन सकता है जैसे फेफड़ों का कैंसर, निमोनिया, और शरीर में लंबे समय तक ऑक्सीजन की कमी के कारण उच्च रक्तचाप, कोरोनरी धमनी रोग और कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर जैसी हृदय संबंधी समस्याएँ।

सीओपीडी का निदान:

भले ही सीओपीडी धूम्रपान से जुड़ा है, यह केवल “धूम्रपान करने वालों का रोग” नहीं है। जोखिम कारकों में बचपन के बार-बार श्वसन संक्रमण, घर के भीतर प्रदूषण, वायु प्रदूषण, निष्क्रिय धूम्रपान और कार्यस्थल पर प्रदूषकों का संपर्क भी शामिल है। निदान में लक्षणों की समीक्षा, चिकित्सा इतिहास और शारीरिक परीक्षण शामिल हैं।

मुख्य निदान उपकरण स्पाइरोमेट्री है एक परीक्षण जो मापता है कि व्यक्ति कितनी हवा अंदर लेता और बाहर छोड़ता है। इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता का सटीक मूल्यांकन मिलता है। लेकिन कई बार केवल रोगी के इतिहास के आधार पर ही निदान कर दिया जाता है, जिससे शुरुआती मामलों का पता नहीं चल पाता। स्पाइरोमेट्री परीक्षण का मानकीकरण समय पर और सही निदान सुनिश्चित कर सकता है।

सीओपीडी का प्रबंधन और इसके साथ जीवन:

सीओपीडी से संबंधित फेफड़ों की क्षति को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन जीवनशैली में बदलाव और सही उपचार से लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है और रोग की प्रगति को धीमा किया जा सकता है।
इनहेलर (विशेषकर ब्रोंकोडायलेटर), नेबुलाइज़्ड उपचार और फुफ्फुसीय पुनर्वास कार्यक्रम सांस लेने में सुधार करते हैं और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाते हैं।

जागरूकता बढ़ाना:

शीघ्र निदान और स्व–देखभाल को बढ़ावा देने के लिए लोगों को ट्रिगर और चेतावनी संकेतों की पहचान करना सीखना चाहिए। जागरूकता अभियान और रोगी सहायता कार्यक्रम लोगों को प्रारंभिक पहचान और समय पर उपचार के महत्व को समझाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
भारत में सीओपीडी के बेहतर परिणामों के लिए जागरूकता और समय पर कार्रवाई अत्यंत आवश्यक है।

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