
भास्कर ब्यूरो
- कृषि विभाग और राजस्व विभागों की बेरुखी बनी चुनौती
Maharajganj : जिलाधिकारी संतोष कुमार शर्मा इन दिनों जनपद के गांव-गांव का दौरा कर किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक कर रहे हैं। खेतों में जाकर सीधे किसानों से संवाद स्थापित करना और उन्हें पराली जलाने से होने वाले नुकसान समझाना उनकी प्राथमिकता बन गई है। कभी सदर तहसील के गांवों में धूल-मिट्टी की परवाह किए बिना किसानों के बीच पहुंचना, तो कभी फरेंदा और नौतनवा तहसील में जाकर किसानों से अपील करना यह सिलसिला लगातार जारी है।
जिलाधिकारी जहां भी पहुंचते हैं, वहां स्वयं किसानों से बातचीत कर उन्हें पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी नुकसान बताते हैं। वे किसानों को समझाते हैं कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता घटती है, प्रदूषण बढ़ता है और स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है। किसानों ने भी जिलाधिकारी की बातों को आत्मसात करते हुए पराली न जलाने की शपथ ली।

यह पहल धीरे-धीरे रंग ला रही है।जिलाधिकारी की इस पहल का असर अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर भी दिखने लगा है। जब डीएम खुद किसानों से संवाद कर रहे हैं, तो अन्य अधिकारी भी पीछे नहीं रहना चाहते। कई विभागीय अधिकारी क्षेत्रों का भ्रमण कर किसानों से सीधा संवाद स्थापित कर रहे हैं। इस तरह प्रशासनिक स्तर पर पराली रोकथाम की कवायद को मजबूती मिल रही है।
कृषि विभाग की बेरुखी, राजस्व विभाग स्थिति असंतोषजनक
हालांकि जिलाधिकारी की सक्रियता और संवेदनशीलता के बावजूद कृषि विभाग का रवैया उदासीन बना हुआ है। ब्लॉक स्तर पर एटीएम, बीटीएम और प्राविधिक कर्मियों की मौजूदगी के बावजूद पराली जलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। किसानों को तकनीकी सहायता और वैकल्पिक उपाय बताने में कृषि विभाग की टीम नाकाम साबित हो रही है। भारी-भरकम स्टाफ होने के बावजूद विभाग केवल तमाशबीन बना हुआ है। राजस्व विभाग की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। हर गांव की सटीक जानकारी होने के बावजूद जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ कमजोर दिखाई दे रही है। गांवों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में राजस्व विभाग की भूमिका अपेक्षित नहीं दिख रही है।
डीएम की सहनशीलता और शालीनता
जिलाधिकारी संतोष कुमार शर्मा का गांव-गांव जाकर किसानों से संवाद करना उनकी सहनशीलता और शालीनता का परिचायक है। वे किसी भी तरह की औपचारिकता से बचते हुए सीधे किसानों के बीच पहुंचते हैं और उन्हें समझाते हैं। यह पहल प्रशासनिक कार्यशैली में सकारात्मक बदलाव का संकेत देती है।किसानों ने जिलाधिकारी की बातों को गंभीरता से लिया है। कई किसानों ने पराली न जलाने की शपथ ली और वैकल्पिक उपाय अपनाने का भरोसा दिया। किसानों का कहना है कि जब जिलाधिकारी खुद उनके बीच आकर समझा रहे हैं, तो उन्हें भी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।












