
Mumbai : हिंदी और मराठी सिनेमा के स्वर्ण युग के सबसे बड़े दिग्गज निर्देशक वी. शांताराम (V. Shantaram) का आज 124वां जन्मदिन है। 50-60 के दशक में जब मनोरंजन के नाम पर सिर्फ मसाला फिल्में चलती थीं, तब वी. शांताराम ने समाज को आईना दिखाने वाली फिल्में बनाईं – ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘दूनिया न मानें’, ‘पिंजरा’, ‘नवरंग’, ‘गहरा दाग’ जैसी क्लासिक फिल्में आज भी देखी जाती हैं। उन्हें ‘भारतीय सिनेमा का जनक’ कहा जाता है, लेकिन उनकी निजी जिंदगी फिल्मी कहानियों से कम रोचक नहीं थी – तीन शादियां, सात बच्चे, दो पत्नियां एक ही घर में रहती थीं और सबसे विवादास्पद तीसरी शादी जब वे 55 साल के थे और दुल्हन सिर्फ 18 साल की!
रेलवे की मजदूरी से सिनेमा की ऊंचाइयों तक
जन्म: 18 नवंबर 1901, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के एक साधारण मराठी परिवार में।
बचपन गरीबी में गुजरा। मात्र 5वीं तक पढ़ाई की, फिर रेलवे स्टेशन पर दिहाड़ी मजदूरी करने लगे।
नाटकों में रुचि जगी, छोटे-मोटे रोल किए और 1920 में बाबूराव पेंटर की महाराष्ट्र फिल्म कंपनी में बतौर अभिनेता करियर शुरू किया।
1929 में स्वराज टॉरच लाइट के साथ अपना प्रोडक्शन हाउस शुरू किया, फिर प्रसिद्ध राजकमल कलामंदिर की स्थापना की।
कुल 94 फिल्में निर्देशित कीं हिंदी और मराठी दोनों में।
चार बार नेशनल अवॉर्ड, दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड (1985) और पद्म विभूषण से सम्मानित।
26 अक्टूबर 1990 को 88 वर्ष की उम्र में मुंबई में निधन।

तीन शादियां, सात बच्चे और एक अनोखा परिवार
पहली शादी 1921 : विमलाबाई से (अरेंज्ड मैरिज) उम्र सिर्फ 20 साल थी। विमलाबाई गृहिणी थीं। इस दंपति के चार बच्चे हुए प्रभात, सरोज, किरण और तेजस।
दूसरी शादी 1941 : एक्ट्रेस जयश्री से फिल्म ‘शकुंतला’ (1943) के सेट पर जयश्री से मुलाकात हुई। पहली पत्नी विमलाबाई जिंदा थीं, फिर भी उन्होंने जयश्री से निकाह कर लिया। जयश्री से तीन बच्चे बेटा तेज (राजश्री प्रोडक्शंस के मालिक) और दो बेटियां सबसे प्रसिद्ध बेटी राजश्री (जो बाद में सूरज बड़जात्या की ‘मैंने प्यार किया’, ‘हम आपके हैं कौन’ जैसी फिल्में प्रोड्यूस कर रही हैं)।
तीसरी और सबसे विवादास्पद शादी 1956 : एक्ट्रेस संध्या से फिल्म ‘नवरंग’ (1959) और ‘स्त्री’ की शूटिंग के दौरान 18 साल की संध्या से प्यार हो गया। उस समय वी. शांताराम 55 साल के थे उम्र का फासला 37 साल! देश में उस वक्त बहुविवाह कानूनी था (हिंदू मैरिज एक्ट 1955 लागू होने के बाद भी पुरानी शादियां मान्य थीं), इसलिए कानूनी रूप से शादी हो गई। संध्या से कोई संतान नहीं हुई, लेकिन वे वी. शांताराम की सबसे पसंदीदा जीवनसंगिनी बनी रहीं।
अद्भुत बात यह कि विमलाबाई और संध्या दोनों एक ही छत के नीचे रहती थीं। राजकमल कलामंदिर के बड़े बंगले में पूरा परिवार साथ रहता था। संध्या ने बाद में कई इंटरव्यू में बताया था कि विमलाबाई उन्हें मां की तरह मानती थीं और घर में कोई झगड़ा नहीं था।

फिल्मों में भी दिखता था उनका बोल्ड विजन
पहली भारतीय कलर फिल्म ‘सैरंध्री’ (1933) में उन्होंने तकनीकी प्रयोग किए।
‘अमर भूपाली’ (1951) पहली मराठी कलर फिल्म।
‘दो आंखें बारह हाथ’ (1957) में कैदियों के सुधार की थीम, जिसने बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर जीता।
सामाजिक कुरीतियों पर बेबाक फिल्में दलित उत्थान, विधवा विवाह, जातिवाद, औरतों की स्थिति पर खुलकर बोला।

आज भी जीवित है उनका वारसा
उनके बेटे तेज शांताराम और पोते विक्रम शांताराम आज भी राजकमल कलामंदिर चलाते हैं। उनकी बेटी राजश्री और सूरज बड़जात्या ने मिलकर ‘राजश्री प्रोडक्शंस’ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
सिनेमा के इस महान शिल्पी को उनके 124वें जन्मदिन पर शत-शत नमन। एक ऐसे इंसान जिन्होंने रेलवे की पटरी से लेकर ऑस्कर लेवल की फिल्में तक का सफर तय किया और पर्सनल लाइफ में भी हमेशा अपने नियम खुद बनाए।















