
पुरुलिया : पश्चिम बंगाल के पुरुलिया-1 ब्लॉक के चकदा इलाके में लगभग 34 दिन पहले दफनाई गई एक महिला का शव कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश पर कब्र से निकालकर दूसरी जगह दफनाया गया। कारण यह था कि जिस जमीन पर शव दफनाया गया था, वह लंबे समय से विवादित थी।
चकदा इलाके में एक आश्रम के पास स्थित जमीन को लेकर आश्रम प्रबंधन और स्थानीय लोगों के बीच वर्षों से विवाद चला आ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह जमीन लगभग 200 साल पुराना क़ब्रिस्तान है, जिसका उपयोग लगातार होता आया है। वहीं आश्रम का दावा है कि यह जमीन उनकी निजी संपत्ति है और गांववासी इसे केवल उपयोग करते रहे हैं।
इसी बीच, 12 अक्टूबर को समीरन अंसारी नामक एक महिला की मौत हुई। परिजन और स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रिवाज के अनुसार उसी विवादित जमीन पर दफना दिया। इस पर आश्रम अधिकारियों ने पुलिस में शिकायत की और मामला आगे बढ़ते हुए हाई कोर्ट तक पहुंच गया।
शनिवार को कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर, अधिकारियों और पुलिस बल की मौजूदगी में महिला के शव को कब्र से निकाला गया। बाद में उसे एक शववाहन में ले जाकर किसी अन्य स्थान पर पुनः दफनाया गया। अधिवक्ता शुभजीत सरकार ने बताया कि इससे पहले भी इसी जमीन को लेकर अदालत में मामला हुआ था, जिसमें जमीन को आश्रम की संपत्ति माना गया था।
दूसरी ओर, मृतका के बेटे रहमान अंसारी ने दावा किया कि यह जमीन दो सदियों से क़ब्रिस्तान के तौर पर उपयोग में रही है। उन्होंने बताया कि “दो साल पहले भी इसी जगह पर दफन किया गया था। लेकिन इस बार आश्रम ने आपत्ति जताई और अब हाई कोर्ट के आदेश पर शव को दूसरी जगह ले जाया गया।”
पुरुलिया मस्जिद समिति के सचिव वाहिद अंसारी ने भी कहा कि यह जमीन उन्हें किसी शीला दीक्षित नामक व्यक्ति द्वारा दान की गई थी, लेकिन दस्तावेज़ तैयार न होने के कारण विवाद खड़ा हुआ। उनका कहना है कि “200 साल से यह जमीन मुसलमानों द्वारा क़ब्रिस्तान के रूप में उपयोग की जा रही है। अब हम भी अदालत में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं और हमें उम्मीद है कि हम यह मामला जीतेंगे।”
आश्रम के प्रबंधक राजेंद्र प्रसाद चट्टोपाध्याय ने आरोप लगाया कि उन्होंने शुरुआत से ही पुलिस और प्रशासन को मामले की जानकारी दी थी। उनके अनुसार, यदि समय रहते कार्रवाई की गई होती, तो स्थिति इतनी गंभीर न होती और हाई कोर्ट में जाने की जरूरत भी न पड़ती।










