
Patna : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की बुरी हार ने न केवल पार्टी को हिलाकर रख दिया, बल्कि लालू प्रसाद यादव के परिवार में भी दरार डाल दी है। महागठबंधन की 35 सीटों में RJD को महज 25 मिलीं, जो 2020 की 75 से आधी से भी कम हैं। इस हार के बाद लालू की छोटी बेटी रोहिणी आचार्य ने शनिवार सुबह X पर एक भावुक पोस्ट कर सियासी भूचाल मचा दिया। रोहिणी ने राजनीति छोड़ने और परिवार से नाता तोड़ने का ऐलान किया, साथ ही पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय यादव और एक अन्य नेता रमीज पर दोष मढ़ा। यह पोस्ट वायरल हो गई, जिस पर 50,000+ व्यूज और हजारों रिएक्शन आ चुके हैं। RJD नेतृत्व ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन सियासी हलकों में इसे ‘लालू परिवार का अंतिम पतन’ कहा जा रहा है।
रोहिणी का X पोस्ट:
मैं राजनीति छोड़ रही हूं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हूं। संजय यादव और रमीज ने मुझसे यही करने को कहा था और मैं सारा दोष अपने ऊपर ले रही हूं।
(@RohiniAcharya2 से शेयर, 8:45 AM IST)
इस पोस्ट में रोहिणी ने हार का ठीकरा तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव पर फोड़ा, जिन्हें RJD की ‘रणनीतिक मस्तिष्क’ कहा जाता है। रोहिणी ने 2024 के सासाराम लोकसभा चुनाव में BJP के शत्रुघ्न सिन्हा से हार (4.64 लाख वोटों से) का जिक्र किया, जो RJD के लिए झटका था। पोस्ट में उन्होंने लिखा कि संजय और रमीज ने उन्हें ‘दोष लेने और चुप रहने’ को कहा, जिससे पार्टी की छवि बचे।
लालू परिवार का बिखराव: तेज प्रताप से रोहिणी तक का सिलसिला
यह पहली घटना नहीं है।
लालू परिवार की एकजुटता पहले ही चरमरा चुकी थी:
तेज प्रताप यादव (बड़े बेटे): 2023 में लालू ने उन्हें ‘परिवार से बेदखल’ कर दिया था, जब तेज प्रताप ने अंजलि सिंह से शादी तोड़ी। इसके बाद उन्होंने जनशक्ति जनता दल बनाई और 2025 चुनाव में RJD के खिलाफ सराय (छपरा) से लड़े। हार के बावजूद उन्होंने RJD पर ‘भ्रष्टाचार और परिवारवाद’ का आरोप लगाया।
तेजस्वी यादव (छोटे बेटे): रघोपुर सीट तो बचा ली, लेकिन महागठबंधन की हार ने उनकी CM दावेदारी पर सवाल खड़े कर दिए। तेजस्वी ने हार को ‘EVM साजिश’ कहा, लेकिन रोहिणी के पोस्ट ने परिवार में नई दरार डाली।
मीसा भारती (बड़ी बेटी): राज्यसभा सांसद, लेकिन चुनाव में सक्रिय नहीं रहीं। वे परिवार की ‘चुप्पी’ की प्रतिनिधि बनी हुई हैं।
रोहिणी 37 वर्षीय डॉक्टर RJD की उभरती नेता थीं। 2024 में सासाराम से उम्मीदवार बनीं, लेकिन हार गईं। उन्होंने पार्टी के लिए महिला सशक्तिकरण पर फोकस किया, लेकिन हार के बाद सिंगापुर चली गईं। अब यह पोस्ट उनके राजनीतिक करियर के अंत का संकेत देता है।

संजय यादव पर आरोप: RJD की ‘मस्तिष्क’ या ‘विषैली सलाहकार’?
रोहिणी ने संजय यादव को ‘सबसे करीबी सलाहकार’ बताते हुए कहा कि उन्होंने हार का दोष रोहिणी पर डालने को कहा। संजय (RJD के राज्यसभा सांसद) को ‘चाणक्य’ कहा जाता है – वे तेजस्वी के 2020 CM अभियान के आर्किटेक्ट थे। लेकिन आलोचकों का कहना है कि उनकी ‘परिवार-केंद्रित रणनीति’ ने RJD को जातिगत सीमाओं में बांध दिया। पोस्ट के बाद संजय ने चुप्पी साधी, लेकिन RJD सूत्रों ने कहा, “यह परिवार का आंतरिक मामला है, पार्टी मजबूत है।” रमीज (RJD का युवा नेता) पर भी ‘भ्रष्टाचार के आरोप’ लगे हैं।
RJD की हार का बैकग्राउंड: जातिगत समीकरण फेल, युवा वोट शिफ्ट
2025 चुनाव में RJD की हार के मुख्य कारण:
जातिगत गणना: MY (मुस्लिम-यादव) फॉर्मूला फेल; OBC और EBC वोट एनडीए की ओर।
महिला वोट: TMC जैसी महिलाओं की योजनाओं का फायदा एनडीए को; RJD की ‘महिला आरक्षण’ अपील नाकाम।
तेजस्वी की छवि: ‘युवा नेता’ से ‘परिवार का वारिस’ तक गिरावट।
परिवारवाद: लालू के बच्चों पर फोकस ने पार्टी को ‘डायनेस्टी’ की छवि दी।
RJD के 25 सीटों में से 18 MY बेल्ट से, लेकिन शहरी और ग्रामीण दोनों में हार। महागठबंधन की कुल 35 सीटें (कांग्रेस 6, CPI(ML) 2) विपक्ष की भूमिका भी संकट में डाल दीं।
सियासी प्रभाव: लालू परिवार का अंत, RJD में विद्रोह की आशंका
यह पोस्ट RJD के लिए आंतरिक संकट का संकेत है। तेज प्रताप की बगावत के बाद रोहिणी का कदम लालू की राजनीतिक विरासत को खत्म कर सकता है। पूर्व RJD नेता शकील अहमद खान ने कहा, “परिवार टूटा तो पार्टी कैसे बचेगी? तेजस्वी को नई रणनीति चाहिए। BJP ने इसे ‘RJD का अंत’ बताते हुए चुटकी ली: “लालू का परिवार बिखरा, अब RJD का नंबर।
RJD ने शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई है, जहां तेजस्वी स्पष्टीकरण दे सकते हैं। रोहिणी का पोस्ट डिलीट नहीं हुआ, और उन्होंने फॉलोअप में लिखा: मैं डॉक्टर हूं, राजनीति मेरी नहीं। परिवार को बचाना चाहती हूं।
यह घटना बिहार की सियासत में डायनेस्टी पॉलिटिक्स के पतन का प्रतीक बनी। लालू परिवार, जो 1990 से बिहार पर राज करता रहा, अब आंतरिक कलह से जूझ रहा है। RJD का भविष्य तेजस्वी पर टिका है – क्या वे सुधारेंगे, या और दरारें आएंगी? पटना की राजनीतिक गलियों में सवाल गूंज रहे हैं।















