लखनऊ विश्वविद्यालय में बवाल: चीफ प्रॉक्टर ऑफिस के बाहर छात्रों का हंगामा

Lucknow : लखनऊ विश्वविद्यालय (LU) कैंपस में शनिवार दोपहर चीफ प्रॉक्टर ऑफिस के बाहर छात्रों का उग्र प्रदर्शन देखने को मिला। ABVP, NSUI, AISF और छात्र संघ के स्वतंत्र उम्मीदवारों के सैकड़ों छात्रों ने एकजुट होकर नारेबाजी की और प्रशासन पर ‘मारपीट करने वाले गुंडा तत्वों को संरक्षण देने’ का गंभीर आरोप लगाया। छात्रों का कहना है कि कैंपस में ‘बाहुबली’ छात्रों द्वारा मारपीट, धमकी और गुंडागर्दी के बावजूद प्रशासन मौन रहता है, लेकिन पीड़ित छात्र जब आवाज उठाते हैं, तो पुलिस बुलाकर उन्हें दबाया जाता है। प्रदर्शनकारियों ने चीफ प्रॉक्टर प्रो. विनोद सिंह के इस्तीफे की मांग की और कुलपति प्रो. आलोक राय से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की। पुलिस ने बैरिकेडिंग कर स्थिति को काबू में रखा, लेकिन तनाव बरकरार है।

प्रदर्शन की शुरुआत दोपहर 1 बजे हुई, जब ABVP के प्रदेश सह-मंत्री रोहित मिश्रा और NSUI के LU अध्यक्ष अंकित यादव ने अलग-अलग बैनरों तले छात्रों को इकट्ठा किया। दोनों संगठनों ने पहली बार एक मंच पर आकर प्रशासन की ‘दोहरी नीति’ पर हमला बोला। रोहित मिश्रा ने कहा, “कैंपस में कुछ ‘राजनीतिक संरक्षण प्राप्त’ छात्र खुलेआम मारपीट करते हैं, हॉस्टल में रैगिंग करते हैं, लेकिन चीफ प्रॉक्टर उन्हें नोटिस तक नहीं देते। 12 नवंबर को आर्ट्स फैकल्टी में एक छात्र को पीटा गया, लेकिन FIR दर्ज नहीं हुई। जब हम प्रदर्शन करते हैं, तो पुलिस आ जाती है।” अंकित यादव ने आरोप लगाया, “प्रशासन कुछ ‘फेवरेट’ छात्रों को बचाता है, जो कुलपति के करीबी हैं। पीड़ितों को धमकाया जाता है कि शिकायत की तो डिग्री रोक देंगे।”

घटनाओं का सिलसिला: मारपीट से प्रदर्शन तक
यह प्रदर्शन 12 नवंबर की घटना का नतीजा है। आर्ट्स फैकल्टी के तीसरे वर्ष के छात्र राहुल वर्मा को कुछ छात्रों ने कैंटीन में घेरकर पीटा, जिसमें उन्हें सिर पर चोट आई। राहुल ने चीफ प्रॉक्टर को शिकायत दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद 14 नवंबर को हॉस्टल नंबर-5 में रैगिंग की शिकायत आई, जहां फ्रेशर्स को धमकाया गया। छात्रों का दावा है कि आरोपी ‘एक विशेष राजनीतिक दल से जुड़े’ हैं, जिन्हें प्रशासन संरक्षण देता है।


प्रदर्शनकारियों ने पोस्टर और बैनर लगाए:

“मारने वालों को सलाम, बोलने वालों पर मुकदमा!”
“कैंपस को गुंडागर्दी से मुक्त करो!”
“चीफ प्रॉक्टर इस्तीफा दो!”महिला छात्राओं ने भी हिस्सा लिया। AISF की नेत्री प्रिया सिंह ने कहा, “लड़कियों के साथ छेड़खानी होती है, लेकिन प्रशासन चुप रहता है। हमारी सुरक्षा कहां है?”

प्रशासन का जवाब: ‘जांच जारी, कोई संरक्षण नहीं’
चीफ प्रॉक्टर प्रो. विनोद सिंह ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की और कहा, “हमने सभी शिकायतों पर जांच समिति गठित की है। 12 नवंबर की घटना में दो छात्रों को सस्पेंड किया गया है। कोई संरक्षण नहीं दिया जा रहा। पुलिस केवल सुरक्षा के लिए बुलाई गई थी।” कुलपति प्रो. आलोक राय ने बयान जारी कर कहा, “विश्वविद्यालय छात्रों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच होगी। 72 घंटे में रिपोर्ट आएगी।”

पुलिस की भूमिका: बैरिकेडिंग, लेकिन कोई गिरफ्तारी
प्रदर्शन की सूचना पर हजरतगंज थाने की फोर्स और PAC की एक कंपनी मौके पर पहुंची। बैरिकेडिंग लगाई गई, लेकिन कोई लाठीचार्ज या गिरफ्तारी नहीं हुई। SHO हजरतगंज ने कहा, “शांतिपूर्ण प्रदर्शन की इजाजत है, लेकिन कैंपस में हिंसा बर्दाश्त नहीं।”

छात्रों की मांगें: 7 सूत्री लिस्ट

मारपीट करने वाले छात्रों का तत्काल निष्कासन
चीफ प्रॉक्टर का इस्तीफा
कैंपस में CCTV और सिक्योरिटी गार्ड बढ़ाना
रैगिंग विरोधी सेल को सक्रिय करना
पीड़ित छात्रों को मुआवजा और सुरक्षा
प्रशासन-छात्र संवाद समिति का गठन
कुलपति से खुली बैठक

राजनीतिक कोण: ABVP-NSUI की एकजुटता, लेकिन आरोप-प्रत्यारोप
ABVP ने आरोप लगाया कि ‘वामपंथी गुंडे’ मारपीट करते हैं, जबकि NSUI ने ‘दक्षिणपंथी तत्वों’ को जिम्मेदार ठहराया। दोनों ने प्रशासन पर ‘राजनीतिक दबाव’ में काम करने का आरोप लगाया। छात्र संघ चुनाव (दिसंबर 2025) नजदीक हैं, इसलिए यह प्रदर्शन राजनीतिक रिहर्सल भी माना जा रहा है।

विश्वविद्यालय की छवि पर सवाल: पिछले 2 सालों में 47 शिकायतें
LU में पिछले 2 सालों में मारपीट की 47, रैगिंग की 32 और छेड़खानी की 18 शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन केवल 9 निष्कासन हुए। UGC के दिशानिर्देशों के बावजूद रैगिंग विरोधी सेल निष्क्रिय है।
प्रदर्शन शाम 4 बजे तक चला, जिसके बाद छात्रों ने कुलपति को ज्ञापन सौंपकर वापस लौटे। लेकिन चेतावनी दी कि 18 नवंबर तक कार्रवाई न हुई तो अनिश्चितकालीन धरना शुरू होगा। LU कैंपस में तनाव बना हुआ है, और सोमवार को सभी संगठनों की संयुक्त बैठक प्रस्तावित है।
यह घटना न केवल LU प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है, बल्कि उत्तर भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में बढ़ती गुंडागर्दी की समस्या को भी उजागर करती है। कुलपति की रिपोर्ट और कार्रवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं।

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