
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक समीकरणों को उलट-पलट कर रख दिया है। एनडीए ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 202 सीटें हासिल कीं, जबकि महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया। इसी बीच अपने चुनावी कौशल और सफल रणनीतियों के लिए प्रसिद्ध प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पूरी तरह फ्लॉप रही और एक भी सीट नहीं जीत सकी।
तीन साल पहले चंपारण से पदयात्रा शुरू कर प्रशांत किशोर ने बड़े राजनीतिक अभियान की नींव रखी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे नेताओं की चुनावी सफलता में अहम भूमिका निभाने के कारण उन्हें बड़ा रणनीतिकार माना गया। हालांकि 2025 के बिहार चुनाव में उनकी राजनीतिक पटकथा बुरी तरह असफल रही।
पर्दे के पीछे रहने वाले अधिकांश रणनीतिकारों के विपरीत, प्रशांत किशोर हमेशा खुलकर बोलने और नेताओं की आलोचना करने के लिए जाने जाते रहे हैं। राहुल गांधी के साथ उनकी राजनीतिक दूरी इसका प्रमुख उदाहरण है। 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में भाजपा के 100 सीटें पार न करने की सही भविष्यवाणी के बाद उनका कद और बढ़ा था, जिससे उनकी पार्टी की बिहार में एंट्री को लेकर उत्साह बना।
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों पर तीखे हमले किए और बड़े-बड़े दावे किए। उन्होंने यह भी कहा था कि जेडीयू 25 से अधिक सीटें नहीं जीत पाएगी और अगर ऐसा हुआ, तो वे राजनीति छोड़ देंगे। अब नतीजों के बाद न केवल उनके दावे गलत साबित हुए, बल्कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी तगड़ा झटका लगा है।
इस चुनाव ने प्रशांत किशोर की रणनीतिक चमक को गंभीर रूप से फीका कर दिया है।















