
Thelekh Gaanv, Dehradun : थानों में मंगलवार को स्पर्श हिमालय महोत्सव 2025 के द्वितीय दिवस पर भारत का संकल्प – एक देश, एक दृष्टि विषय पर देश-विदेश से आए विद्वानों, संतों और विचारकों ने अपने प्रेरक विचार व्यक्त किए। लेखक गाँव में वातावरण सृजन, संवाद और संस्कृति की सुगंध से महक उठा।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और लेखक गाँव प्रकाशन की पुस्तक “लेखक गांव सृजन यात्रा 2024–25” के विमोचन से हुई। इस अवसर पर भारत की सांस्कृतिक चेतना, वेदज्ञान और आधुनिक विज्ञान के संगम पर सार्थक विमर्श हुआ। परम पूज्य चिदानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि वैदिक ज्ञान केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य का मार्गदर्शक है। उन्होंने कहा कि जब हम अपने भीतर के प्रदूषण को दूर करेंगे, तभी समाज और प्रकृति का शुद्धिकरण संभव है।
मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि मॉरीशस की गंगा और भारत की गंगा दोनों एक ही सांस्कृतिक स्रोत से प्रवाहित हैं — यह दोनों देशों के अटूट संबंधों का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि संस्कृति और भक्ति ही भारत की सबसे बड़ी शक्ति हैं।

आईआईटी के निदेशक प्रो. पंत ने कहा कि दुनिया कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की ओर बढ़ रही है, पर हमें अपनी वास्तविक बुद्धिमत्ता (Real Intelligence) को नहीं भूलना चाहिए — जो हमारे परिवार, गुरुजनों और परंपराओं से प्राप्त होती है। साहित्य अकादमी गुजरात के अध्यक्ष ने कहा कि डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जी का जीवन सनातन मूल्यों की साधना का उदाहरण है। उन्होंने कहा कि आज जब विश्व Ethics, Energy, Excellence, Environment और Education जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तो उनके समाधान हमारे वेदों और शास्त्रों में निहित हैं।
प्रो. डी.पी. सिंह ने कहा, “आत्मनिर्भर भारत, विकसित भारत के लिए विचार यहीं से आएंगे।” यह भूमि भारत की सांस्कृतिक आत्मा की भूमि है — जहाँ से नवविचार और नवऊर्जा का प्रवाह होता है।
केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि डॉ. निशंक जी ने लेखक गाँव को मूर्त रूप देकर संस्कृति, सृजन और राष्ट्रवाद की नई चेतना को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा नारी वंदन अधिनियम लाकर मातृशक्ति को राष्ट्र निर्माण की धारा में सम्मिलित करना इसी दृष्टि का प्रतीक है।
अपने उद्बोधन में डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि लेखक गाँव केवल एक स्थान नहीं, यह भारत की आत्मा का तीर्थ है। यहाँ से वह विचार जन्म लेते हैं जो भारत को आत्मनिर्भर, समृद्ध और विश्वगुरु बनाने की दिशा में अग्रसर करते हैं। उन्होंने कहा “स्पर्श हिमालय महोत्सव केवल आयोजन नहीं, बल्कि भारत के संकल्प – ‘एक देश, एक दृष्टि’ की सजीव अनुभूति है।”
द्वितीय दिवस के सत्रों ने यह संदेश दिया कि लेखक गाँव अब केवल साहित्य और कला का केंद्र नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, वैज्ञानिक दृष्टि और राष्ट्रीय एकता का जीवंत प्रतीक बन चुका है। यहाँ से यह स्वर उठा कि जब भारत अपनी जड़ों से जुड़कर आधुनिकता को अपनाता है, तभी ‘एक देश, एक दृष्टि’ का सपना साकार होता है और वही भारत विश्व का मार्गदर्शन करता है।















