Bihar Assembly Election : फालौदी सट्टा बाजार में बढ़ी बिहार की गर्मी, NDA बनाम महागठबंधन पर लग रहे दांव

पटना/जयपुर: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का राजनीतिक पारा तेजी से चढ़ रहा है। राज्य में पहले चरण की वोटिंग 6 नवंबर और दूसरे चरण की 11 नवंबर को होगी, जबकि नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इस बीच राजस्थान का मशहूर फालौदी सट्टा बाजार (Phalodi Satta Bazar) भी अपनी भविष्यवाणियों को लेकर सुर्खियों में है।

एक न्यूज़ चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, फालौदी सट्टा बाजार में इस समय NDA की स्पष्ट बढ़त दिखाई दे रही है। बाजार के अनुमान के अनुसार, NDA को 128 से 134 सीटें मिल सकती हैं, जो बहुमत के लिए जरूरी 122 सीटों के आंकड़े से कहीं आगे है।
वहीं, महागठबंधन (RJD-कांग्रेस गठबंधन) को 93 से 99 सीटों के बीच सीमित बताया जा रहा है। यह अनुमान इस बात की ओर इशारा करता है कि बिहार में एक बार फिर NDA की सत्ता में वापसी संभव है।

सीटों का समीकरण: कौन कितना आगे?

फालौदी बाजार के अनुमानों के अनुसार, बीजेपी और जेडीयू (JDU) दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं।

  • बीजेपी को 66-68 सीटें मिलने का अनुमान है।
  • जेडीयू को 54-56 सीटें मिल सकती हैं।
    वहीं विपक्षी आरजेडी (RJD) 143 सीटों पर चुनाव मैदान में है और उसके खाते में 69-71 सीटें जाने का अनुमान है।
    कांग्रेस का प्रदर्शन इस बार भी कमजोर रहने की संभावना जताई जा रही है। यानी तेजस्वी यादव विपक्ष के नेता तो रह सकते हैं, लेकिन सत्ता की कुर्सी अभी दूर दिखाई दे रही है।

सीएम रेस में नितीश सबसे आगे

फालौदी सट्टा बाजार में मुख्यमंत्री पद के लिए नितीश कुमार को सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। उनकी बोली 40–45 पैसे पर चल रही है, जो जीत की उच्च संभावना को दर्शाती है।
तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर के आंकड़े फिलहाल अपडेट नहीं हुए हैं, हालांकि बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि चुनावी माहौल में किसी भी वक्त बड़ा उलटफेर संभव है।

क्यों चर्चा में रहता है फालौदी सट्टा बाजार?

राजस्थान का फालौदी सट्टा बाजार चुनावी सीज़न में हमेशा सुर्खियों में रहता है। वजह यह है कि इस बाजार ने अतीत में कई बार राजनीतिक नतीजों का सटीक अनुमान लगाया है—खासकर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के प्रदर्शन को लेकर।
हालांकि, ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह बाजार अनौपचारिक और अवैध है, इसलिए इसकी भविष्यवाणियों को सिर्फ रुझान या संकेत के तौर पर ही देखा जाना चाहिए, न कि किसी अधिकृत सर्वे के रूप में। 

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