
Sitapur : जिले की राजनीति में इन दिनों एक अजीबोगरीब ‘ड्रामा’ चल रहा है, जिसे देखकर हर कोई कह रहा है कि यहां के कुछ दिग्गज नेता ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ की कहावत को पूरी तरह चरितार्थ कर रहे हैं। एक ओर जनता विभिन्न बुनियादी समस्याओं से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर हमारे ‘जन-सेवक’ अपने क्षेत्र के जरूरी काम छोड़कर दूसरों के निजी या दलगत विवादों में जमकर दखलंदाजी कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो उन्होंने जनता के मुद्दों से ध्यान हटाकर किसी और की लड़ाई को अपना मुख्य चुनावी एजेंडा बना लिया हो।
राजनीति में कहावतें यूं ही नहीं बनतीं। सीतापुर की ताजा सियासी उठापटक ने एक पुरानी कहावत को न सिर्फ जिंदा कर दिया है, बल्कि उसे हाइलाइट भी कर दिया है। जिले के कुछ कद्दावर और ‘बोल बच्चन’ नेताओं ने अपने क्षेत्र की जनता, अटके हुए विकास कार्यों और बुनियादी समस्याओं को ताक पर रखकर अब दूसरे नेताओं के निजी और दलगत झगड़ों में ऐसी छलांग लगाई है कि वे शहर भर में चर्चा का केंद्र बन गए हैं। स्थानीय चाय की दुकानों और चौपालों पर अब इन नेताओं का जमकर मजाक उड़ रहा है।
फिलहाल मामला पैसों के विवाद का है, जिसमें जमीन बिक्री को लेकर लफड़ा मचा है। सौदा करोड़ों का बताया जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, चाहे वह किसी दूसरे दल के अंदरूनी कलह का मामला हो या दो गुटों के बीच की व्यक्तिगत तकरार, सीतापुर जिले का एक ‘अब्दुल्ला’ नेता बिना बुलाए मेहमान की तरह हर महफिल में पहुंचकर अपने राजनीतिक रोटियां सेंकने की जुगत में लगे हैं। वे ऐसे जोश और उत्साह से हवा में तलवारें भांज रहे हैं, जैसे यह लड़ाई उनके अपने राजनीतिक भविष्य की हो।
जनता के बीच चर्चा है कि इन नेताओं का सारा ध्यान इस बात पर है कि कैसे दूसरी पार्टी के नेताओं को नीचा दिखाया जाए, भले ही उस विवाद से जमीनी स्तर पर जनता को कोई फायदा न हो। लोग मजाक में कह रहे हैं कि इन माननीयों को अपने घर की चिंता कम और पड़ोसी के घर के झगड़े में ज्यादा दिलचस्पी है।
स्थानीय विश्लेषकों का कहना है कि यह ‘बेगानी शादी का दीवानगीपन’ नेताओं को भारी पड़ सकता है, क्योंकि जब चुनाव का बिगुल बजेगा, तब जनता यह जरूर पूछेगी कि जब उनके अपने मुद्दे जल रहे थे, तब ‘अब्दुल्ला साहब’ कहां और किसकी शादी में नाच रहे थे। अब देखना यह है कि यह जमीनी विवाद निपटता है या मामला राजधानी मुख्यमंत्री के सामने जाता है।














