
नई दिल्ली । हरियाणा के हिसार से निकलकर देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचने वाले जस्टिस सूर्यकांत की कहानी काफी प्रेरणादायक है। साधारण परिवार में पैदा हुए जस्टिस सूर्यकांत ने अपनी मेहनत, ईमानदारी और न्याय के प्रति जुनून से सुप्रीम कोर्ट तक की यात्रा तय की। अब वे 24 नवंबर 2025 को भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बनने जा रहे है, और फरवरी 2027 तक सीजेआई के पद पर असीन रहने वाले है। मौजूदा सीजेआई जस्टिस बीआर गवई 23 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। उनके बाद जस्टिस सूर्यकांत देश की सबसे बड़ी अदालत की कमान संभालने वाले है।
जस्टिस सूर्यकांत ने 1984 में हिसार जिला अदालत से वकालत की शुरुआत की। वे 1985 से पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। उन्होंने संवैधानिक, सिविल और सर्विस मामलों में विशेषज्ञता हासिल की और कई विश्वविद्यालयों, बोर्डों और बैंकों के लिए कानूनी सलाहकार के रूप में काम करना शुरु किया। वकालत में बेहतरीन प्रदर्शन के कारण उन्हें पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया। साल 2004 में उन्हें जज नियुक्त किया और आगे चलकर वे हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने।
जस्टिस सूर्यकांत के 5 बड़े फैसले -:
जस्टिस सूर्यकांत दिसंबर 2023 के उस संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र के फैसले को सही ठहराया।
वे उस बेंच में शामिल थे जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति गठित की।
उन्होंने सशस्त्र बलों के लिए वन रैंक वन पेंशन (ओआरपीआर) योजना को संविधान सम्मत बताया। साथ ही वे महिला अधिकारीयों को स्थायी कमीशन में समान अवसर देने की याचिकाओं पर सुनवाई करते रहे हैं।
जस्टिस सूर्यकांत सात जजों की उस बेंच का हिस्सा थे जिसने 1967 के फैसले को पलटते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े मुद्दे पर पुनर्विचार का मार्ग साफ किया।
इतना ही नहीं पेगासस स्पाइवेयर मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में भी वे शामिल रहे, जिसने साइबर विशेषज्ञ समिति गठित की और कहा कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर राज्य को मनमानी की छूट नहीं दी जा सकती।















