
कोल्हुई, महराजगंज। छठ घाटों पर जगह जगह बन रहे बेदी और चहल पहल से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है। फिर भी श्री नगर ताल में जहां कभी झरनों से झर- झर पानी की लहरें अठखेलियां करती मानों अपने प्रियतम से मिलने चली जा रही थीं। आज वहाँ धूल उड़ने से छठ घाट बीरान पड़ गए है।श्री नगर ताल वासी अब उन झरनों को सोच कर काफी भाव विह्वल हो जाते हैं। जिस का कोई पुरसाहाल नहीं है।
क्षेत्र में जगह जगह छठ घाटों पर छठ पर्व को लेकर चहल पहल बढ़ गई है।
पुलिस कप्तान महराजगंज जनपद के पश्चिमी छोर पर घोंघी नदी के छठ घाट का मुआइना किये । परंतु वहीं महान हिमाच्छादित पर्वत माला हिमालय की तलहटी के गोद में बसे श्री नगर ताल को यहां के जिम्मेदारों के निष्क्रियता के चलते सभी सुधि भूल गए हैं। जहां कभी जल भंडारण रहता था।साथ ही 20 फाटक का बैराज जिस में झरनों से पानी की धाराएं अठखेलियां करते बैराज के उस पार निकल जाती थीं।
इन झरनों के ऊपर जामुन और बांस के पेड़ो की लताएं पानी की धाराओं अथवा झरनों को छू -छू कर निरंतर जल धाराओं से अठखेलियां करते निर्बाध गति से बहती जल धाराओं से कलोल करते नहीं थकती थीं।उस में जामुन का फल मानो भंवरों के मानिंद पेड़ के डालियों से टपक- टपक कर मानो रसपान कर रहे होते थे।
आज वहां सब वीरान है।छठ घाट तो वही है पर न झरने और न ही जल भंडारण। कुछ दूर पर कुछ गंदे पानी तो हैं पर उस में व्रती महिलाएं कैसे खड़ी रह पाएंगी। सोच कर अफसोस होता है।
दरअसल, ब्रिटिश काल का बैराज जिसे में बीस फाटक लगे थे टूट गये। उस की जगह नया पुल बनाते समय बजट के बचत की चक्कर में जिम्मेदारों ने पुल के भीतरी सतह को नीचा कर के बना दिये।जिस से श्री नगर ताल का बूंद- बूंद पानी निचोड़ कर पुल के रस्ते सब बह गए। अब जहां जल भंडारण थे वहां धूल उड़ रहे हैं। जबकि यहां देश विदेश के पक्षी विशेषकर साइबेरियन पक्षी का बसेरा रहता था। जहां दूर दराज के सैलानी लुत्फ लेने यहां आते रहते थे ,और यह की अनुपम छठा देख कर भाव विभोर होकर लौटते थे।
आज जिम्मेदारों की करतूत के चलते छठ व्रती महिलाओं के लिए एक फुट पानी के लिए तरसना पड़ रहा है।कहीं कहीं थोड़ा थोड़ा कीचड़ से सने पानी है। उस में कैसे व्रती महिलाएं खड़ी रह कर व्रत पूर्ण करेंगी।कुछ तो मजबूरन इस पर्व को मनाने दो से ढाई किलो मीटर दूर झुंगा देवी थान मैनहवा जाने का मन बना लिए हैं। अब तो श्रीनगर वासियों को बड़ी बेसब्री से महराजगंज के डी एम का छठ घाट पर दर्शन के लिए इंतेज़ार है।उन से अपनी व्यथा यहां के वासी बताने के लिए बेताब भी हैं।