सुरों से सियासत तक का सफर : स्टार मैथिली अब सियासत के मंच पर, क्या चलेगा उनका जादू?

बिहार की लोकप्रिय लोकगायिका मैथिली ठाकुर, जिन्होंने अपनी मधुर आवाज से फर्श से लेकर शीर्ष तक के लोगों के दिल जीते. अब वही राजनीति में बीजेपी के मंच से नई पारी शुरू कर चुकी हैं. बीजेपी ने उन्हें दरभंगा जिले के अलीनगर सीट से चुनावी मैदान में उतारा है. अब चर्चा इस बात की है कि क्या मैथिली राजनीति में भी उतनी ही लय बिठा पाएंगी, जितनी उन्होंने लोक संगीत में सुर को साधने में कमाल दिखा चुकी हैं. इस मसले पर क्या कहते हैं, वरिष्ठ पत्रकार, रेडियो आर्टिस्ट और शारदा सिन्हा के लिए दर्जनों लोकप्रिय गीत लिखने वाले हृदय नारायण झा.

 दरअसल, मैथिली ठाकुर का सियासी सफर अचानक शुरू नहीं हुआ. वह कई सालों से लोकगायन के क्षेत्र में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम व अन्य, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया में छाई हुई थीं. कुछ महीनों से वे बिहार के अलग-अलग जिलों में लोक संस्कृति, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर सक्रिय दिखाई दे रही थीं. अब राजनीतिक में उनके कदम को उसी सामाजिक जुड़ाव का विस्तार माना जा रहा है. 

मीडिया से बातचीत में हृदय नारायण झा ने कहा, ‘मैथिली ठाकुर के ‘इसमें कोई दो राय नहीं कि मैथिली ठाकुर जनप्रिय लोकगायिका हैं. शास्त्रीय (कलासिकल) गायन में उनकी अच्छी पकड़ है. खासकर मैथिली, भोजपुरी और हिंदी भाषा में. मैथिली ‘कम उम्र में बड़ा मुकाम’ हासिल करने में सफल हुई हैं. उनमें टैलेंट और एनर्जी लबालब भरा है.’

राजनीति दोधारी तलवार

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर वह अलीनगर से चुनावी जीतीं और आने वर्षों में राजनीति और संगीत के सुर को ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ साधने में कामयाब हुईं, तो न केवल संगीत बल्कि बिहार की राजनीति का नया पड़ाव साबित होंगी. एक ऐसा पड़ाव, जिसकी जरूरत ​मिथिलांचल समेत पूरे बिहार के लोगों को लंबे समय से है. ऐसा इसलिए कि बिहार को सोच के स्तर पर बदलने के लिए ‘नव जागरण’ की जरूरत है. यह काम वही कर सकता है, जो जमीन पर संघर्ष कर, सहज तरीके से मजबूत नेतृत्वकर्ता की हैसियत को हासिल करने में सफल हो.’

हृदय नारायण झा के मुताबिक, ‘गायन के क्षेत्र से जुड़े लोगों की उन पर नजर है. सभी उनको जांच परख रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि बतोर रेडियो आर्टिस्ट मैं यह कहना चाहूंगा कि गायक सबका होता है. संगीत गायन और वादन से जुड़े कलाकार जो भी काम करते हैं, वो सबके लिए होता है. इस क्षेत्र में उनको अभी और साधना करने की जरूरत थी. बीच में ही राजनीति में एंट्री करने का उनका फैसला इस मामले में दोधारी तलवार भी साबित हो सकता है.’

ऐसा इसलिए कि मैथिली अगर चुनाव जीतती हैं तो उन्हें सुर साधना के साथ अपने-अपने गानों को हिट करना होगा, जो उनके अपने हों. दूसरी तरफ उन्हें भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रमों व जनहित से जुड़ी गतिविधियों का भी हिस्सा बनना होगा. सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है, क्या वो ऐसा कर पाएंगी. यह सवाल इसलिए उठता है कि बिहार में सुर साधना का काम ब्रह्म मुहूर्त में होता है. संगीत के क्षेत्र सुरों रचना एक दिन में नहीं हो सकता. इसमें गीताकार सहित अन्य कलाकारों की अहम भूमिका होती है. इस लिहाज से देखें तो उनका राजनीति में जाना जल्दबाजी भरा फैसला है. 

चुनाव में उतरने का फैसला गलत

हृदय नारायण झा के मुताबिक शारदा सिन्हा के बाद वहीं हैं, जो लोकप्रिय हुई हैं. फिर शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बिहार में दरभंगा, बेतिया, डुराव और ग्वालियर की शाखास द्रुपद घराने की है. देश भर में द्रुपद घराने की चार में तीन घराना बिहार में ही हैं. इसके अलावा, शास्त्रीय संगीत के अन्य घराने में आरा, पटना समेत करीब एक दर्जन घराना है. लोक संगीत के क्षेत्र में बिहार सभी राज्यों से ज्यादा समृद्ध है. प्रदेश में मैथिली, भोजपुरी, अंगिका व अन्य लोक गायन की परंपरा बहुत पुरानी है. अभी मैथिली ठाकुर को इन घराने की हैसियत में आने में लंबा सफर तय करने का काम बाकी था. फिर लोग गायन साधना, समाज सेवा और त्याग का काम है. यह कारोबार और राजनीति से अलग विधा है.

पटना और दरभंगा दूरदर्शन केंद्र से जुड़े रेडियो आर्टिस्ट हृदय नारायण झा कहते हैं, ‘सवाल यह है कि इतनी कम उम्र में क्या वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी में नेतृत्वकर्ता की भूमिका में आ पाएगी? इसके लिए किसी भी शख्स को लंबे समय तक जमीन पर काम करना होता है. लोगों के बीच रहकर अपनी पहचान बनानी होती है. ये सारे काम दुरुह प्रकृति के हैं. राजनीति में जाने वालों का एक तरह से घर-वार, रिश्ते-नाते और मित्रों से कट से जाते हैं. उनके अपने पीछे छूट जाते हैं. तभी जाकर वो एक अलग मुकाम हासिल कर पाते हैं. तभी एक लीडर की पहचान बनती है. पीएम मोदी स्वयं इसके बड़े उदाहरण हैं. राहुल गांधी अब भी संघर्ष कर रहे हैं. कहीं ऐसा न हो कि राजनीति के दौड़-धूप में, वह जिस बात के लिए जानी जाती हैं, उसी से दूर हो जाएं. 

फाइलों में कैद लोक संगीत

फिर एक बात और यह है कि क्या मैथिली राजनीति एंट्री लेकर वो कर पाएगी, जिसकी अपेक्षा लोग उनसे करेंगे? क्या बिहार में दशकों से बीजेपी से जुड़े लोग उन्हें संगठन में हजम कर पाएंगे. उनकी उम्र बहुत कम है. फिर, राजनीति में धन बल और कई कारकों की भूमिका अहम होती है. बीजेपी ने अभी उनको टिकट अपने हितों की पूर्ति के लिए दिया है. अगर वो सफल होती हैं तो बीजेपी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. सैकड़ों विधायकों में वह एक विधायक होंगी, लेकिन इनकी सुर साधना पीछे छूट सकती है. भला वो राजनीति के साथ संगीत के अनुशासन का पालन, कैसे कर पाएगी, यह अहम सवाल है?

फिर वर्तमान रजानीति का जो स्तर है वो कलाकारों के अनुकूल नहीं है. बिहार में ललित कला और लोक संगीत व्यवस्था के कैद में है. कई वर्षों से सरकार चाहे लालू यादव की थी या फिर नीतीश कुमार की, इस दिशा में कोई कुछ नहीं करना चाहता. बिहार में ललित कला संस्कृति और गायन मंत्रालय के फाइलों में सिर्फ कैद है. संबंधित मंत्री दशकों से कोई काम नहीं कर रहे हैं.

इसके बावजूद मेरी शुभकामना उनके साथ है. मुझे खुशी होगी अगर सो सियासी और लोक गायन दोनों के सुर को साधने में कामयाब होंगी. मैथिली ठाकुर ने हमेशा संस्कृति, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को अपनी प्राथमिकता बताया है. वे कह चुकी हैं कि “बिहार की माटी ने मुझे आवाज़ दी है, अब मैं उसी मिट्टी के विकास के लिए कुछ करना चाहती हूं.” 

मैथिली ठाकुर को मिले अहम पुरस्कार

1. नेशनल क्रिएटर्स अवार्ड (2024): भारत मंडपम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया.

2. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार: यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उन्हें संगीत नाटक अकादमी द्वारा दिया गया है.

3. सांस्कृतिक राजदूत पुरस्कार (वर्ष के सांस्कृतिक राजदूत पुरस्कार): उन्हें राष्ट्रीय रचनाकार पुरस्कार समारोह में इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

4. बिहार राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की ब्रांड एंबेसडर (2024): बिहार सरकार ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी है.

5. बिहार की स्टेट आइकन: भारत निर्वाचन आयोग ने उन्हें यह पद सौंपा है.

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