
Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव के बीच सियासी पारा हाई हो गया है। महागठबंधन में जहां सीटों के बंटवारे पर खींचातानी देखने को मिल रही है, वहीं एनडीए में भी सबकुछ ठीक नहीं है। लोजपा (LJP-R) के प्रमुख चिराग पासवान की चुप्पी और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के नेता जीतनराम मांझी की कविताई बयान ने एनडीए के सीट शेयरिंग प्लान को हिला कर रख दिया है।
चिराग पासवान का खामोशी में संकेत
पिछले कुछ दिनों से चिराग पासवान ने मीडिया या सार्वजनिक मंचों पर कोई बड़ा बयान नहीं दिया है। उनकी यह खामोशी एनडीए में बेचैनी का संकेत मानी जा रही है। यह माना जा रहा है कि चिराग अपने समर्थन वाले सीटों या अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर साफ रणनीति बनाने में लगे हैं। उनके इस मौन का मतलब यह भी हो सकता है कि वे कहीं अपने दम पर चुनाव लड़ने या फिर अपने हिसाब से गठबंधन में बदलाव का मन बना रहे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा (रामविलास) ने अपने दम पर अच्छा प्रदर्शन किया था, और अब भी चिराग अपनी पार्टी को स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़वाने की योजना बना सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह एनडीए के लिए नई चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
मांझी की कविता से BJP की टेंशन
वहीं, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने सोशल मीडिया पर अपनी कविताई शैली में सीटों की मांग को लेकर संकेत दिए हैं। उन्होंने अपने सोशल प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “हो न्याय अगर तो आधा दो, यदि उसमें भी कोई बाधा हो, तो दे दो केवल 15 ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम, ‘हम’ वही खुशी से खाएंगे, परिजन पे असी ना उठाएंगे।”
यह कविता साफ संकेत है कि मांझी अपनी पार्टी के लिए सीटों की संख्या को लेकर स्पष्ट मांग कर रहे हैं। इससे एनडीए में असमंजस की स्थिति बढ़ गई है। भाजपा के नेताओं को यह चिंता सता रही है कि यदि मांझी अपनी पार्टी को अलग से चुनाव लड़ने का रास्ता अपनाते हैं, तो उसका असर उनके वोट बैंक और सीटों पर पड़ सकता है।
क्या अलग से चुनाव लड़ेगी LJP(R)?
इन सबके बीच, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या लोजपा (रामविलास) का अगला कदम अलग से चुनाव लड़ने का होगा। चिराग पासवान की खामोशी और मांझी की कविताई मांग दोनों ही इस ओर इशारा कर रहे हैं कि एनडीए के भीतर अलगाव की धारणा मजबूत हो रही है।
यदि लोजपा (आर) अपनी अलग राह अपनाती है, तो यह एनडीए के लिए कई खतरों का संकेत हो सकता है। इससे सीटें बंटने का अनुमान है, और भाजपा को अपने समर्थन आधार को मजबूत बनाना और गठबंधन के बिखराव से निपटना चुनौती बन जाएगा।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार चुनाव में इस बार परिदृश्य बहुत बदल चुका है। पार्टी नेताओं की यह खामोशी और संकेतों का खेल एनडीए के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। यदि चिराग पासवान या मांझी अपने अपने रास्ते पर चलने का निर्णय लेते हैं, तो यह राज्य की राजनीति में नई हलचल ला सकता है।
बिहार में चिराग पासवान की चुप्पी और मांझी की कविताई भाषा दोनों ही संकेत कर रहे हैं कि एनडीए के भीतर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। बिहार चुनाव की यह स्थिति और स्पष्ट हो सकती है।
क्या लोजपा (आर) अलग चुनाव लड़ेगी? यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन इतना तय है कि इस बार बिहार की राजनीति में नाटकीय बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
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