
UP Politics : सपा में आजम खान की रिहाई और उनकी भूमिका को लेकर नई रणनीति का खाका खिंच रहा है, जो पार्टी के राजनीतिक संतुलन और आगामी चुनावी मैदान के लिहाज से महत्वपूर्ण है।
23 महीने बाद जेल से रिहाई पाने वाले आजम खान, पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए प्रयासरत हैं। अपने भावुक बयानों से माहौल बनाने की कोशिश में लगे आजम, पार्टी नेतृत्व के साथ अपनी अहमियत कायम रखने के इरादे से जुड़े हैं। वहीं, पार्टी के अन्य मुस्लिम नेताओं को भी यह डर सता रहा है कि कहीं उनकी उपयोगिता कम न हो जाए।
पार्टी नेतृत्व, खासकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित रणनीति अपना रहा है। आगामी पंचायत और विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ (पीडीए) के नारों के साथ अपनी चुनावी रणनीति की बुनियाद रखी है। हालांकि, इन नारों में शामिल शब्दों के अर्थ को लेकर पार्टी में अलग-अलग मत हैं, और अखिलेश यादव स्वयं यह संकेत दे चुके हैं कि वे विविध वर्गों का समर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि भाजपा की हिंदुत्व की रणनीति को कमजोर किया जा सके।
आजम खां की वापसी को इस तरह से परिपक्व तरीके से अमल में लाया जा रहा है कि पार्टी की रणनीति पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। बुधवार को आजम से अखिलेश यादव की मुलाकात में नेतृत्व का संतुलन बनाए रखने और संदेश देने की कोशिश होगी कि पार्टी ने आजम को अकेला नहीं छोड़ा है।
सपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल आजम खान 23 सितंबर को सीतापुर जेल से रिहा हुए, और जेल में रहते हुए उनके प्रति पार्टी नेतृत्व के समर्थन में कुछ खामोशी देखी गई। रिहाई के बाद आजम ने सीधे तौर पर पार्टी नेतृत्व पर कोई हमला नहीं बोला, लेकिन उनके भावुक बयानों से यह स्पष्ट है कि वे पार्टी में अपनी अहम भूमिका चाहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में मुरादाबाद से रुचि वीरा को टिकट दिए जाने के पीछे भी आजम का प्रभाव माना गया है।
पार्टी नेतृत्व जानता है कि यदि आजम को हटा दिया जाए, तो उनके समर्थकों में असंतोष बढ़ सकता है। रामपुर सहित कई जिलों में उनकी पकड़ मजबूत है, और पार्टी यह भी चाहती है कि वे सिर्फ एक मुस्लिम चेहरे के रूप में ही न रहें, बल्कि पार्टी के समग्र रणनीतिक हिस्से का हिस्सा बनें।
रिहाई के बाद सपा प्रमुख का बयान और आगामी मुलाकात की रणनीति इसी संतुलन को बनाए रखने की दिशा में कदम माना जा रहा है। पार्टी मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन बरकरार रखते हुए, बहुसंख्यकों को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है। भाजपा की हिंदुत्व की रणनीति को ध्रुवीकरण का अवसर मानते हुए, सपा चाहती है कि स्थिति को समझदारी से संभालकर अपने मतदाता आधार को मजबूत किया जाए।
मुलाकात के परिणाम और आगे की रणनीति का फैसला स्पष्ट होने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन पार्टी का लक्ष्य है कि राजनीतिक संतुलन और समुदायों के बीच सामंजस्य कायम रहे।
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