
Bihar Election 2025 : दरभंगा जिले की राजनीति इस बार जातीय समीकरण, आंतरिक खींचतान और टिकट वितरण की संभावनाओं को लेकर बेहद दिलचस्प हो गई है। जिले की दस विधानसभा सीटों में 2020 के विधानसभा चुनाव में नौ सीटों पर एनडीए ने जीत दर्ज की थी, जबकि राजद को केवल एक सीट पर संतोष करना पड़ा। इनमें जेडीयू को पाँच, भाजपा को चार और राजद को एक सीट मिली थी।
2020 के नतीजों के अनुसार, दरभंगा शहरी, जाले, घनश्यामपुर, बहेड़ी और अलीनगर सीटें एनडीए के हिस्से में आईं, जबकि बिरौल, गौड़ा बौराम, दरभंगा ग्रामीण और कुशेश्वरस्थान जैसे क्षेत्रों में भी एनडीए ने मजबूत प्रदर्शन किया था। जिले की दस सीटों में से नौ पर एनडीए की जीत ने उस समय एनडीए की संगठनात्मक मजबूती और जातीय संतुलन साधने की रणनीति को सफल बना दिया था।
अब 2025 के चुनाव से पहले सबसे बड़ी चुनौती टिकट वितरण को लेकर सामने आई है। खासकर गौड़ा बौराम और अलीनगर विधानसभा क्षेत्र में यह खींचतान स्पष्ट दिख रही है। गौड़ा बौराम से वर्तमान विधायक स्वर्णा सिंह के पति सुजीत सिंह और भाजपा के युवा नेता राजीव ठाकुर के बीच अंदरखाने जबरदस्त दावेदारी की जंग चल रही है। दोनों नेता सार्वजनिक रूप से भले ही एक-दूसरे पर हमलावर न दिखें, मगर अंदर ही अंदर टिकट की दौड़ में एक-दूसरे को पीछे करने की पूरी कोशिश में हैं।
दिलचस्प यह है कि अलीनगर और गौड़ा बौराम, भले ही दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्र हैं, मगर टिकट वितरण में दोनों के बीच सीधा संबंध बन गया है।
सूत्रों के अनुसार, यदि गौड़ा बौराम से सुजीत सिंह को टिकट मिलता है तो अलीनगर से संजय कुमार सिंह (पप्पू सिंह) की दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी, वहीं यदि अलीनगर से संजय कुमार सिंह को टिकट मिलता है तो गौड़ा बौराम से सुजीत सिंह की उम्मीदवारी पर असर पड़ेगा।
दरअसल, दरभंगा की दस सीटों में राजपूत और ब्राह्मण समुदायों के बीच टिकट बंटवारा एक परंपरागत संतुलन के रूप में देखा जाता है। यदि किसी सीट पर राजपूत उम्मीदवार को मौका मिलता है तो पास की दूसरी सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार को प्राथमिकता दी जाती है। यही कारण है कि दोनों सीटों पर दावेदारी को लेकर जातीय समीकरण गहराई से जुड़ गए हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में माना जा रहा है कि गौड़ा बौराम से सुजीत सिंह का पलड़ा फिलहाल भारी है, क्योंकि उनकी पत्नी विधायक हैं और क्षेत्र में संगठनात्मक पकड़ भी मजबूत है। वहीं, अलीनगर में यदि जदयू किसी ब्राह्मण चेहरे को उतारता है तो भाजपा के लिए भी टिकट समीकरण बदल सकते हैं।
कुल मिलाकर, दरभंगा जिले की राजनीति इस बार एनडीए के भीतर ही अंदरूनी प्रतिस्पर्धा, जातीय संतुलन और टिकट वितरण की चुनौती के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है। यदि भाजपा और जदयू इस बार इन समीकरणों को ठीक से साध लेते हैं, तो 2020 की तरह 2025 में भी दरभंगा एनडीए का गढ़ बना रह सकता है- अन्यथा आंतरिक मतभेद विपक्ष को नया मौका दे सकते हैं।
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