
Juvenile Justice Act : हमारा सविंधान कहता है की हर मनुष्य बराबर है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा. सभी के लिए नियम और कानून बराबर होते हैं। लेकिन जब कोई अपराध करता है तब आयु सीम क्यों देखी जाती है ? अक्सर हमने देखा है की हमारे आस – पास जब भी कोई अपराध होता है तो हमेशा उसकी सजा आयु सीमा देख कर की जाती है. जैसे – अगर कोई बाल अपराधी है तो उसे सजा या फिर सुधरने का मौका दिया जाता है. वहीं यदि कोई वयस्क अपराधी होता है तो उसके लिए सीधा सजा का प्रावधान है. लेकिन यहां ये समझना बहुत आवश्यक हो जाता है कि आखिर बाल अपराधी कौन होते हैं. और उनके लिए क्या नियम – कानून बनाए गए हैं. वहीं आज हम इस मुद्दे को लेकर कानून व्यवस्था की बात करेंगे।
हम बात करेंगे जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट की, जिसे भारत जैसे देश में बढ़ रहे बाल अपराधो के मद्देनजर बनाया गया है.ये कानून भारत में बच्चों के अधिकार और अपराध से जुड़े मामलों को नियंत्रित करता है।

बता दें कि जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015, यह कानून नाबालिग अपराधियों को सजा देने के बजाय सुधार और पुनर्वास पर जोर देता है। लेकिन कुछ गंभीर मामलों में 16-18 साल के नाबालिगों को वयस्क की तरह ट्रायल किया जा सकता है। आज हम इस एक्ट के तहत अब तक के प्रमुख मामलों पर नजर डालेंगे, जहां नाबालिग अपराधियों को सजा मिली, सुधार गृह भेजा गया, या रिहा किया गया। इन मामलों ने कानून में संशोधन की मांग की और समाज को झकझोरा। इस एक्ट की शुरुआत 2015 में हुई, लेकिन इसके पीछे कई पुराने मामले थे। आइए शुरू करते हैं सबसे चर्चित मामलों से खासकर रेप केस (जिसमें नाबालिग अपराधी शामिल हैं) –
निर्भया केस (2012, दिल्ली)
2012 में दिल्ली में एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ गैंगरेप और मर्डर का मामला। पांच आरोपियों में से एक 17 साल का नाबालिग था। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) ने उसे रेप और मर्डर का दोषी पाया। जिसे सुधार गृह में सिर्फ 3 साल भेजा गया, और दिसंबर 2015 में रिहा कर दिया गया। इस रिहाई ने पूरे देश में हंगामा मचा दिया। निर्भया की मां ने कहा, “यह अन्याय है।” इस मामले ने 2015 के नए एक्ट को जन्म दिया, जहां हीनियस क्राइम्स में 16-18 साल वालों को वयस्क मानकर ट्रायल संभव हुआ।
कठुआ रेप केस (2018, जम्मू-कश्मीर
2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ में 8 साल की मुस्लिम बच्ची आसिफा का अपहरण, गैंगरेप और मर्डर। सात आरोपी, जिसमें एक नाबालिग शुभम संग्रा (करीब 17 साल)।
जेजेबी ने शुरू में उसे नाबालिग माना, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में फैसला दिया कि वह वयस्क है। 2023 में क्राइम ब्रांच ने उसे वयस्क के रूप में चार्जशीट किया। ट्रायल जारी है। मुख्य तीन आरोपियों को लाइफ इम्प्रिजनमेंट, लेकिन शुभम को जुवेनाइल स्टेटस से इनकार कर दिया गया – कोई रिहाई नहीं।
शक्ति मिल्स गैंगरेप केस (2013, मुंबई)
2013 में मुंबई में हुए इस मामले में एक 22 वर्षीय फोटो जर्नलिस्ट के साथ गैंगरेप किया गया था। इस घटना में शामिल एक आरोपी नाबालिग पाया गया। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) ने नाबालिग को सुधार गृह में तीन साल की सजा सुनाई, और वह 2016 में रिहा हुआ। इस केस ने नाबालिग अपराधियों की रिहाई की प्रक्रिया और सुधार गृहों की स्थिति पर व्यापक सवाल खड़े कर दिए, साथ ही यह विषय सामाजिक और कानूनी बहस का केंद्र बन गया।
दिल्ली मॉडल टाउन रेप केस (2017)
2017 में दिल्ली के मॉडल टाउन में एक 16 वर्षीय नाबालिग ने 8 साल की बच्ची के साथ रेप किया। मामले की सुनवाई POCSO Act और Juvenile Justice (JJ) Act के तहत की गई और नाबालिग को सुधार गृह भेजा गया। उसे 2020 में रिहा किया गया, जिसमें काउंसलिंग और पुनर्वास पर विशेष जोर दिया गया। इस केस ने POCSO और JJ Act के बीच बेहतर समन्वय और नाबालिग अपराधियों के पुनर्वास की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया।
हैदराबाद रेप केस (2019)
2019 में हैदराबाद में 27 वर्षीय वेटरनरी डॉक्टर के साथ गैंगरेप और हत्या की शर्मनाक घटना घटी। इस मामले में एक आरोपी नाबालिग था, जिसकी उम्र 17 वर्ष थी। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) ने नाबालिग को सुधार गृह में भेजा और उसे 2022 में रिहा किया गया। बाकी आरोपी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए। इस केस ने नाबालिगों की सजा और सुधार प्रक्रिया को लेकर देशभर में फिर से बहस छेड़ दी और नाबालिग अपराधियों के मामलों में सुधार गृह की भूमिका पर सवाल उठाए।
अन्य मामले –
प्रद्युम्न ठाकुर का मर्डर
2017 में गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 7 साल के प्रद्युम्न ठाकुर का मर्डर। आरोपी: 16 साल का सीनियर स्टूडेंट. जिसे जेजेबी ने 2015 एक्ट के तहत उसे वयस्क मानकर ट्रायल की अनुमति दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में अंतरिम जमानत दी और दोबारा जांच का आदेश दिया कि क्या वयस्क ट्रायल सही है। ट्रायल जारी, लेकिन आरोपी जमानत पर रिहा। यह पहला बड़ा केस था जहां 2015 एक्ट की धारा 15 (प्रेलिमिनरी असेसमेंट) लागू हुई।
शराब पीकर पोर्श कार चलाकर 2 लोगो का एक्सीडेंट
2024 में पुणे में 17 साल का लड़का शराब पीकर पोर्श कार चलाते हुए दो लोगों की मौत का कारण बना। आरोपी को नाबालिग माना गया। शुरू में जमानत मिली, फिर रिमांड। पुलिस ने सेशंस कोर्ट में अपील की, जो अगस्त 2025 तक जारी थी। कोई अंतिम रिहाई नहीं, लेकिन जुवेनाइल ट्रायल के तहत सुधार पर फोकस। इस केस ने अमीर परिवारों के प्रभाव पर सवाल उठाए।

इन मामलों में 70% से ज्यादा नाबालिगों को सुधार गृह में 3-7 साल की सजा के बाद रिहा किया गया, लेकिन हीनियस क्राइम्स में वयस्क ट्रायल बढ़ा।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट ने हजारों नाबालिगों को दूसरा मौका दिया, लेकिन विवाद जारी हैं। 2021 संशोधन ने गोद लेने और सुधार को मजबूत किया। मानवाधिकार संगठन कहते हैं, “सुधार गृहों की स्थिति सुधारें।” अगर कोई नाबालिग अपराध में शामिल है, तो पुलिस, जेजेबी या चाइल्ड प्रोटेक्शन कमीशन से संपर्क करें। न्याय सुधार पर आधारित होना चाहिए, न कि सिर्फ सजा पर। भारत में रेप के मामलों (Rape Cases) को लेकर जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट, 2015 (JJ Act) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 और 376 के साथ-साथ प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस एक्ट (POCSO Act, 2012) के तहत कार्रवाई की जाती है। जब नाबालिग (18 साल से कम उम्र) रेप जैसे गंभीर अपराध में शामिल होते हैं, तो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की विशेष प्रक्रियाएं लागू होती हैं।
रेप केसों में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की भूमिका
रेप को JJ Act के तहत हीनियस ऑफेंस (Heinous Offence) माना जाता है, क्योंकि यह IPC की धारा 376 के तहत 7 साल या उससे अधिक की सजा वाला अपराध है। JJ Act की धारा 15 के तहत, अगर 16-18 साल का नाबालिग रेप जैसे अपराध में शामिल है, तो जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) यह तय करता है कि उसे नाबालिग के रूप में सुधार गृह में भेजा जाए या वयस्क के रूप में ट्रायल किया जाए। इसकी प्रक्रिया –
- JJB पहले नाबालिग की मानसिक और शारीरिक परिपक्वता का आकलन करता है।
- प्रेलिमिनरी असेसमेंट में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विशेषज्ञों की राय ली जाती है।
- अगर नाबालिग को वयस्क माना जाता है, तो केस सेशन कोर्ट में ट्रांसफर हो सकता है।
- यदि नाबालिग के रूप में ट्रायल होता है, तो उसे सुधार गृह में अधिकतम 3 साल तक रखा जा सकता है।
- अगर रेप का शिकार 18 साल से कम उम्र का बच्चा है, तो POCSO Act लागू होता है, जो सजा को और सख्त करता है।
- नाबालिग अपराधी के लिए भी POCSO के तहत विशेष प्रावधान हैं, लेकिन JJ Act प्राथमिकता लेता है।
- छोटे अपराधों में काउंसलिंग और सामुदायिक सेवा।
- रेप जैसे गंभीर अपराधों में सुधार गृह या वयस्क ट्रायल।
- सुप्रीम कोर्ट ने कई बार जोर दिया कि नाबालिगों का पुनर्वास प्राथमिकता है।
रेप जैसे जघन्य अपराध समाज को हिलाकर रख देते हैं। लेकिन जब अपराधी 18 साल से कम उम्र का होता है, तो सवाल उठता है – सजा या सुधार
ये भी पढे़ – Uttarkashi : भाई दूज पर यमुनोत्री धाम के कपाट होंगे शीतकाल के लिए बंद