हिमाचल की घेपन झील पर लगेगा पहला अर्ली वार्निंग सिस्टम

केलांग(लाहौल-स्पीति)। हिमाचल प्रदेश में पहली बार किसी ग्लेशियर झील पर अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत लाहौल घाटी स्थित घेपन झील से करने जा रहा है। इस प्रोजेक्ट पर सी-डैक (Centre for Development of Advanced Computing), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, केंद्रीय जल आयोग और लाहौल-स्पीति प्रशासन संयुक्त रूप से काम करेंगे।

यह अत्याधुनिक सिस्टम झील में हिमखंड टूटने या पानी का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ने पर समय रहते चेतावनी देगा। इससे ग्लेशियर फटने, अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी संभावित आपदाओं से निपटने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि इसरो ने घेपन झील को पहले ही संवेदनशील ग्लेशियर झीलों की सूची में शामिल किया हुआ है।

घेपन झील समुद्र तल से 13,615 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और इसकी गहराई 100 मीटर से अधिक बताई जाती है। यह झील चारों ओर से ऊंचे बर्फीले पहाड़ों और ग्लेशियरों से घिरी हुई है। लगातार जलवायु परिवर्तन और बर्फ पिघलने की वजह से इसका आकार हर साल बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह झील टूटी तो पानी सीधे चंद्रा नदी में जाएगा, जिससे लाहौल घाटी के कई गांवों के साथ मनाली-लेह हाईवे और अटल टनल मार्ग को भी खतरा हो सकता है।

उपायुक्त किरण भड़ाना ने जानकारी दी कि विशेषज्ञों और तकनीकी टीम ने हाल ही में घेपन झील का निरीक्षण किया है और जल्द ही यहां हिमाचल का पहला अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित किया जाएगा। यह सिस्टम सैटेलाइट के जरिए काम करेगा और मौसम विभाग तथा प्रशासन को आपदा की पूर्व सूचना उपलब्ध कराएगा।

क्या है अर्ली वार्निंग सिस्टम?
अर्ली वार्निंग सिस्टम एक ऐसी तकनीक है, जिसका उद्देश्य संभावित प्राकृतिक आपदाओं या खतरों की जानकारी समय रहते देना होता है। इसमें सेंसर, रडार, सैटेलाइट और मौसम केंद्र जैसे उपकरणों की मदद से लगातार डेटा एकत्र कर खतरे की स्थिति में अलर्ट जारी किया जाता है। इससे जान-माल के नुकसान को कम से कम किया जा सकता है।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें