
- प्रशासनिक वर्चस्व या संगठनात्मक दबाव?
Sitapur : नदवा विद्यालय से शुरू हुआ ‘बेल्ट कांड’ अब सीतापुर के प्रशासनिक और सामाजिक माहौल में गहन तनाव पैदा कर चुका है। आज, सोमवार का दिन इस पूरे मसले के लिए बेहद अहम है, जिस पर ज़िले के सभी शिक्षक, अधिकारी और संबंधित संगठन टकटकी लगाए हुए हैं। यह घटना अब साधारण विवाद न रहकर, स्पष्ट रूप से संगठन बनाम प्रशासन और जातिगत लामबंदी की लड़ाई में बदल गई है।
न्यायालय में आज सबकी निगाहें: प्रधानाध्यापक की रिहाई पर होगी अर्जी?
मामले के केंद्र में जेल में बंद प्रधानाध्यापक बृजेंद्र वर्मा हैं। आज उनकी ओर से न्यायालय में जमानत के लिए फिर से अर्जी डाली जाएगी। कोर्ट का निर्णय ही इस पूरे विवाद की दिशा तय करेगा। यदि जमानत मिलती है, तो यह शिक्षक संगठनों के लिए बड़ी जीत होगी और वे बीएसए अखिलेश प्रताप सिंह पर दबाव बनाने के लिए और मुखर हो जाएंगे। यदि जमानत खारिज होती है, तो अधिकारी वर्ग की प्रशासनिक पकड़ मजबूत होगी, लेकिन संगठनों का आंदोलन और अधिक उग्र रूप ले सकता है।
‘आर-पार’ के संघर्ष में फंसे अधिकारी
इस घटना ने सीतापुर में दो खेमे खड़े कर दिए हैं, जिन्होंने अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी है। प्रधानाध्यापक बृजेंद्र वर्मा के पक्ष में संगठन है। विभिन्न शिक्षक और सामाजिक समूह खुलकर प्रधानाध्यापक बृजेंद्र वर्मा के समर्थन में उतर आए हैं। वे इस कार्रवाई को एकतरफा और कठोर बता रहे हैं। इन संगठनों की मुख्य रणनीति अब बीएसए अखिलेश प्रताप सिंह पर दबाव बनाकर, उनके कार्यालय में लोगों द्वारा पीटने वालो के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग को मुखर करना है।
बीएसए अखिलेश प्रताप सिंह के पक्ष में अधिकारियों का संगठन
दूसरी ओर, प्रशासनिक अधिकारियों का संगठन पूरी मज़बूती से बीएसए अखिलेश प्रताप सिंह के समर्थन में आ चुका है। उनका तर्क है कि अधिकारी ने प्रशासनिक मर्यादा और नियमों के तहत कार्रवाई की है। यह लड़ाई अब संगठनात्मक शक्ति प्रदर्शन और प्रशासनिक अधिकार की रक्षा का विषय बन चुकी है।
सियासी गलियारों में ‘जातिवाद’ की चर्चा
यह पूरा घटनाक्रम अब स्थानीय राजनीतिक गलियारों में जातिवाद का रूप ले चुका है। ज़मीनी स्तर पर दोनों पक्षों से जुड़े संगठन इस मामले को अपनी-अपनी जातियों के मान-सम्मान और वर्चस्व से जोड़कर ध्रुवीकरण कर रहे हैं। वहीं राजनेताओं के लिए यह मामला अब जातीय वोटबैंक को साधने का एक संवेदनशील ज़रिया बन गया है।
आज कोर्ट के फैसले के बाद सीतापुर की प्रशासनिक और सामाजिक राजनीति क्या नया मोड़ लेगी, यह देखना सबसे महत्वपूर्ण है।