Navratri 2025 : खन्हवार शक्तिपीठ-जहाँ माँ दुर्गा ने भक्त को दिया था साक्षात दर्शन

Navratri 2025 : कुशीनगर जनपद के मध्यांचल में बाबा कुबेरनाथ धाम से चार किमी पूर्व वह गुप्तकालीन सूर्यमन्दिर से पाँच किमी उत्तर खन्हवार नामक स्थान पर घने छायादार वृक्षों के बीच आदि शक्ति दुर्गा का मन्दिर स्थित है। कहा जाता है कि अपने परम भक्त रहसू गुरु के आह्वान पर माँ दुर्गा स्वयं कामरूप कामाख्या से चलकर खन्हवार पहुँची थी। यही वह पवित्र स्थान है जहाँ माँ दुर्गा ने राजा मदन सिंह को साक्षात दर्शन देने के पूर्व अन्तिम बार पूर्ण रूप से विश्राम किया था।

माँ दुर्गा के खन्हवार तक स्वयं आकर साक्षात दर्शन देने के सम्बन्ध में बताया जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहाँ राजा मदनसिंह व सदनसिंह नाम के राजा राज करते थे।उनके राज्य में हर तरफ सुख-शान्ति थी।एक बार एक अत्यंत गरीब ब्राह्मण भी भिक्षाटन करते हुए राज दरबार में पहुँचा जहाँ ब्राह्मण को आशा के विपरीत बहुत ही कम मात्रा में चावल मिला जिससे उसको बहुत ही कष्ट हुआ। दुखी मन से ब्राह्मण दूसरे गाँव में भिक्षा माँगने चल दिया। उसे बार-बार इस बात का पछतावा हो रहा था कि वह राज दरबार में भिक्षाटन के लिए क्यों गया? उससे अधिक भिक्षा तो किसी गरीब के यहाँ मिल जाती है। राज दरबार से कुछ दूर पूरब तरफ एक घना जंगल शुरू होता था। जिसमें घनी लताओं व बड़े-बड़े छायादार वृक्षों की उपस्थिति के कारण दिन में भी अंधेरा छाया रहता था।

जंगल में हिंसक पशु विचरण करते रहते थे जिनके भय से लोग उस तरफ जाने से डरते थे।उक्त सुनसान घने जंगल में माँ दुर्गा के परम भक्त रहसू गुरु निवास करते थे जिनके ऊपर माता की साक्षात कृपा थी।राज दरबार में मिले भिक्षा से क्षुब्ध ब्राह्मण दूसरे गाँव में जाने की बजाय भटकते हुए रहसू गुरु के आश्रम तक पहुँच गये जंगल में अकेले रहसू गुरु को देख अचानक ब्राह्मण की तन्द्रा टूट गयी वह आश्चर्यचकित होकर उनके पैरों पर गिर पड़े। गरीब ब्राह्मण की व्यथा सुनकर रहसू गुरु ने उन्हें बाघों से मड़ाई किए गए सुगन्धित चावल देते हुए समझाया कि इसे किसी बर्तन में रख देना एवं उसी में से निकाल कर बराबर खर्च करते रहना।यह चावल कभी समाप्त नहीं होगा एक बात का ध्यान रखना कि उक्त बर्तन टूटे नहीं।

रहसू गुरु ने ब्राह्मण को विदा करते हुए चेतावनी दिया कि वह यहाँ की गुप्त बातों को किसी को ना बताएं किन्तु हर्षित ब्राह्मण राजदरबार में पहुँचकर राजा का उपहास करने लगे। उसने सुगन्धित चावल राजा को दिखाते हुए रहसू गुरु पर देवी कृपा का रहस्य उजागर कर उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा कर डाली।चावल देखकर राजा आश्चर्यचकित रह गए। इतना सुगन्धित उत्तम किस्म का चावल तो उन्होंने अपने राज्य में नहीं देखा था। अपने ही राज्य में एक योगी जिनको साक्षात माँ दुर्गा का दर्शन होता है यह जानकर राजा बेचैन हो गए और वह एक पल विलम्ब किए बिना रहसू गुरु के पास पहुँच गए। रहसू गुरु ने राजा को आदर के साथ बैठाते हुए अचानक जंगल में आने का कारण पूछा तो राजा रहसू गुरु के पैरों में गिर पड़े और माँ दुर्गा के साक्षात दर्शन करने का आग्रह करने लगे।

राजा की बात सुनते ही रहसू गुरु समझ गए कि ब्राह्मण ने सारा भेद खोल दिया है।रहसू गुरु ने उन्हें समझाया कि ऐसा संभव नहीं है आप जाइए अपना राजकाज संभालिए। राजा ने कहा हे गुरुदेव यदि आपने प्रत्यक्ष देवी दर्शन नहीं कराया तो मैं आपके चरणों में ही प्राण त्याग दूँगा। बहुत समझाने के बाद भी जब राजा नहीं माने तो रहसूगुरु ने चेतावनी देते हुए कहा कि हे राजन प्रत्यक्ष दर्शन होते ही आपके सम्पूर्ण वंश का नाश हो जाएगा।राजा ने दृढ़ होकर कहा कि भले ही मेरा सब कुछ नाश हो जाए किन्तु मैं माँ का दिव्य दर्शन करके ही रहूँगा।

विवश होकर रहसू गुरु ने माँ दुर्गा का आह्वान किया उनके आह्वान पर दुर्गा जी कामरूप कामाख्या (असम)से चलकर सर्वप्रथम कोलकाता के कालीघाट पर पहुँची जो काली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। कोलकाता में विश्राम करने के बाद दुर्गा जी पटना में आकर रुकी यह स्थान पाटन देवी के नाम से जाना जाता है पटना से चलने के बाद विंध्याचल एवं थावे में विश्राम करती हुई अन्त में खन्हवार में आकर रुकी।रहसूगुरु ने अंतिम बार राजा की चेतावनी दिया कि राजा अब भी आप मान जाओगे तो वह लौट जायेगी लेकिन राजा अपनी जिद्द पर पड़े रहे।

अन्त में रहसूगुरु के आसपास एक दिव्य ज्योति का घेरा बन गया और आँखों को चकाचौध करने वाली रोशनी के बीच अचानक तेज आवाज के बीच रहसूगुरु का मस्तक फट गया जिसमें से कंगन पहने माता का दाहिना हाथ दिखाई दिया।साक्षात दर्शन होते गुरु के साथ ही राजा मदन सिंह के पूरे परिवार का सर्वनाश हो गया।परिवार की एक मात्र बहू बच पाई जो उसे समय अपने मायके गई थी।उस स्थान पर जहाँ माँ दुर्गा ने विश्राम किया था वहाँ काफी झाड़ियाँ और बड़े-बड़े छायादार वृक्ष थे झाड़ियाँ तो समाप्त हो गयी किन्तु छायादार वृक्षों की मनोहारी छटा आज भी मौजूद है।

समय के बदलाव के साथ यहाँ मंदिर निर्माण के अलावा कई दुकानें खुल गई हैं और थावे के बाद खन्हवार आज शक्तिपीठ के रुप में प्रसिद्ध है लेकिन दुर्भाग्य है कि इस पीठ के विकास एवं सुंदरीकरण के लिए शासन की तरफ से कोई काम नहीं किया गया।

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