गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय : राष्ट्र निर्माण में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक : डॉ. महेश चंद्र शर्मा

राष्ट्र निर्माण केवल शासन व्यवस्था या नीतियों के बल पर नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक नागरिक की सक्रिय सहभागिता से ही संभव है : डा. महेश चंद्र शर्मा
गुजविप्रौवि में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
‘एकात्म मानवदर्शन और भारतीय संस्कृति’ विषय पर विमर्श

हिसार . गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार (गुजविप्रौवि) के गुरु जम्भेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान के तत्वावधान में बुधवार को ‘एकात्म मानवदर्शन और भारतीय संस्कृति’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास संस्थान, नई दिल्ली के अध्यक्ष डा. महेश चंद्र शर्मा संगोष्ठी में मुख्यातिथि के रूप में उपस्थित रहे। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने की। दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान, नई दिल्ली के महासचिव श्री अतुल जैन मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। विभागाध्यक्ष प्रो. किशना राम बिश्नोई, डा. राम स्वरूप व प्रो.अरुणेश कुमार भी मंच पर उपस्थित रहे।

मुख्य अतिथि डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्र निर्माण केवल शासन व्यवस्था या नीतियों के बल पर नहीं, बल्कि समाज के प्रत्येक नागरिक की सक्रिय सहभागिता से ही संभव है। भारतीय संस्कृति की जड़ें आत्मीयता, नैतिकता और लोकमंगल की भावना में गहराई तक स्थापित हैं। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति व्यक्ति, समाज और प्रकृति इन तीनों के बीच संतुलन स्थापित करने का संदेश देती है। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र का अवसर सभी राष्ट्र का अवसर होना चाहिए। पूरे विश्व को इस परिभाषा को समझना होगा। आपदा में अवसर तलाशने की बजाय सभी को मिलजुल करके इससे निकलने का मार्ग ढूंढना होगा। पंडित जी का 60 साल पूर्व दिया गया संदेश यदि हम अपने जीवन में नहीं अपनाएंगे तो हम दिन-प्रतिदिन विकलांगता की ओर बढ़ते जाएंगे। इससे बचने के लिए हमें भारत की वसुदैव कुटुम्बकम की नीति पर चलना होगा।

मुख्य वक्ता श्री अतुल जैन ने एकात्म मानवदर्शन की समकालीन प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षा केवल जानकारी अर्जित करने का साधन भर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र जीवन को ऊर्जा देने और मानवता को दिशा देने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि गुरु जम्भेश्वर जी महाराज के आदर्शों में प्रकृति का संरक्षण शामिल हैं। पंडित दीनदयाल जी के विचार भी गुरु जी के आदर्शों पर आधारित थे। उन्होंने भी प्रकृति के संरक्षण पर बल दिया। उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी का दर्शन आज भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक दिशा तय करने वाला एक मजबूत मार्गदर्शन है।

कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगार प्राप्ति तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसका मूल ध्येय जीवन मूल्यों, नैतिक चेतना और राष्ट्रीय गौरव को विकसित करना है। उन्होंने कहा कि गुजविप्रौवि भारतीय परंपरा और आधुनिक विज्ञान के समन्वय से समाज और राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भौतिक विकास तभी सार्थक है जब समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक लाभ पहुंचे। उन्होंने कहा कि हम संकल्प लें कि अपने जीवन में एकात्म मानववाद को अपने जीवन में उतारें और भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनाएं।

संगोष्ठी की प्रस्तावना एवं उद्देश्य का औपचारिक प्रस्तुतीकरण प्रो. किशनाराम बिश्नोई, विभागाध्यक्ष ने किया। उन्होंने विषय की पृष्ठभूमि और वर्तमान परिस्थितियों में इसकी प्रासंगिकता को स्पष्ट किया। स्वागत भाषण डॉ. रामस्वरूप, सहायक प्रोफेसर द्वारा दिया गया, जिसमें उन्होंने आगंतुक विद्वानों एवं प्रतिभागियों का अभिनंदन किया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अरुणेश कुमार ने प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य भारतीय जीवन दर्शन के शाश्वत मूल्यों द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद की प्रासंगिकता को अकादमिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में समझना तथा नई पीढ़ी को उसके आलोक में मार्गदर्शन प्रदान करना था। कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक मंगलाचरण, दीप प्रज्वलन एवं विश्वविद्यालय कुलगीत के साथ हुआ।

कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ. गीतू, प्रभारी हिंदी विभाग एवं डॉ. पल्लवी ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण, शोधार्थी, विद्यार्थी तथा स्थानीय बुद्धिजीवी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। संगोष्ठी में प्रस्तुत विचारों और संवाद ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संस्कृति की जीवनदृष्टि और एकात्म मानववाद की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है।

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