
Bihar Chunav : ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी आज से सीमांचल में चार दिन की न्याय यात्रा शुरू करेंगे, जिसके साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी भी शुरू हो गई है। 2015 में सीमांचल से कदम रखने वाली AIMIM ने 2020 के चुनाव में 5 सीटें जीतकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था, लेकिन 2022 में 4 विधायकों ने पार्टी छोड़कर RJD का दामन थाम लिया है। अब 2025 के चुनाव में ओवैसी को कई चुनौतियों का सामना करना होगा।
सीमांचल क्षेत्र में AIMIM का प्रभाव
बिहार के पूर्वी जिलों किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार में 24 विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी काफी है- किशनगंज में लगभग 68%, जबकि अररिया और कटिहार में करीब 44-45% और पूर्णिया में लगभग 39% मुस्लिम हैं। AIMIM इन सीटों पर खास ध्यान देना चाहेगी, विशेषकर अमौर, बैसी, बहादुरगंज, कोचाधामन, और जोकीहाट, जहां उसने 2020 में जीत हासिल की थी या प्रभाव दिखाया था। यदि महागठबंधन सीट बंटवारे में गड़बड़ी करता है या बागी उम्मीदवार मैदान में आते हैं, तो AIMIM के लिए त्रिकोणीय मुकाबले का मौका बन सकता है।
2020 के चुनाव परिणाम और बढ़ता ग्राफ
2020 में AIMIM ने 25 उम्मीदवार उतारे और 5 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी 8, जेडीयू 4, कांग्रेस 5, और अन्य ने भी सीटें जीतीं। इस चुनाव में नतीजे दिखाते हैं कि AIMIM सीमांचल में अपनी जमीन मजबूत कर रहा है, हालांकि 2022 में चार विधायक पार्टी छोड़कर RJD में शामिल हो गए। इसका मतलब है कि पार्टी को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नए उम्मीदवारों और रणनीति की जरूरत है।
चुनौतियों का सामना
2015 में शुरुआत करने वाली AIMIM के सामने अब कई चुनौतियां हैं। पिछली बार की जीत के बावजूद, अब पार्टी को अपने प्रभाव को कायम रखने के लिए नई रणनीति अपनानी होगी। मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा अभी भी RJD का समर्थन करता है, और बिहार की 17.7% मुस्लिम आबादी निर्णायक भूमिका निभाती है। जाति और क्षेत्रीय समीकरणों के साथ, AIMIM को अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाना है।
मुस्लिम वोट बैंक और प्रतियोगिता
बिहार में मुस्लिम बहुल सीटों पर AIMIM की सीधी टक्कर RJD से है। 2020 में, इन सीटों पर RJD का वर्चस्व रहा, लेकिन AIMIM ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस बार यदि मुस्लिम वोटर जन सुराज जैसी नई पार्टी या अन्य विकल्पों की ओर झुकते हैं, तो इससे AIMIM के मुकाबले में बदलाव आ सकता है। साथ ही, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पिछड़ेपन और मुस्लिम समुदाय के विकास के कदम भी चुनावी समीकरण को प्रभावित कर रहे हैं।
अंतर्निहित रणनीति और आने वाले कदम
ओवैसी सीमांचल में रोड शो, नुक्कड़ सभाएं और जन संपर्क के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। पार्टी इस बार अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है, और प्रभावशाली नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के टिकट पाने की संभावना है। साथ ही, AIMIM अपने पिछड़ेपन को उजागर करने और क्षेत्र के विकास के मुद्दे को चुनावी केंद्रबिंदु बनाने का प्रयास कर रही है।
बिहार में AIMIM की राजनीतिक स्थिति मजबूत हो रही है, लेकिन चुनौतियों का सामना भी है। मुस्लिम मतदाता केंद्रित इस क्षेत्र में पार्टी अपनी पकड़ मजबूत करने के साथ-साथ महागठबंधन और अन्य दलों से मुकाबला करने के लिए तैयार है। आने वाले दिनों में रणनीति और चुनावी परिणाम तय करेंगे कि AIMIM बिहार की राजनीति में अपनी जगह कितनी स्थायी बना पाती है।