ट्रंप का H-1B वीजा फैसला : क्या वाकई बड़ा बदलाव या सिर्फ चुनावी शोर?

नई दिल्ली । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एच-1बी वीजा पर बढ़ाया शुल्क् ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है। ये एक फुस्सी बम की तरह हो जाएगा। इस तरह के दावा मामले के जानकार कर रहे हैं। बता दें कि ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश के जरिए एच-1बी वीजा की फीस लगभग 1,000 डॉलर से बढ़ाकर सीधे 1 लाख डॉलर कर दी है। उनका यह फैसला अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए मुश्किलें और बढ़ा सकता है। इस फैसले ने न सिर्फ टेक कंपनियों में हलचल मचा दी है, बल्कि कानूनी लड़ाई की आहट भी तेज हो गई है।

वीजा विशेषज्ञ मानते हैं कि इस कदम का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ेगा, क्योंकि एच-1बी वीजा धारकों में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है।रिपोर्ट की मुताबिक कानूनी जानकारों का कहना है कि राष्ट्रपति का यह आदेश इमीग्रेशन एंड नेशनैलिटी एक्ट की धारा 212(एफ) का हवाला देता है, जो गैर-नागरिकों के प्रवेश पर रोक लगाने की शक्ति देता है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप बनाम हवाई मामले में यात्रा प्रतिबंध को मंजूरी दी थी, लेकिन वह प्रवेश पर सीधी रोक थी, न कि आर्थिक शर्त। विशेषज्ञों का मानना है कि 1 लाख डॉलर की फीस ‘कर’ जैसी है, जिसका अधिकार सिर्फ अमेरिकी कांग्रेस को है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस पहले ही एच-1बी वीजा शुल्क की संरचना तय कर चुकी है। राष्ट्रपति का नया आदेश उस संरचना को दरकिनार करता है, जो संवैधानिक रूप से गलत है। उनका कहना है कि अगर डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी या डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट बिना उचित प्रक्रिया अपनाए इस आदेश को लागू करते हैं तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

प्रवासी मामलों के जानकार वरिष्ठ वकीलों का मत है कि यह आदेश धाराओं को दोबारा लिखने जैसा है। उन्होंने बताया कि पहले लगाए गए बैन में उन लोगों को छूट दी गई थी जो पहले से अमेरिका में मौजूद थे, लेकिन नए आदेश में ऐसी कोई छूट नहीं है। मेहता का मानना है कि लंबे समय से अमेरिका में रह रहे भारतीय एच-1बी धारकों के पास इस आदेश को अदालत में चुनौती देने का मजबूत आधार है। वहीं, इमिग्रेशन अटॉर्नी अश्विन शर्मा ने इसे ‘कांग्रेस की मंजूरी के बिना राष्ट्रपति का टैक्स लगाना’ बताया और कहा कि इसके खिलाफ तेजी से मुकदमे दायर होंगे।

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