राज्यों का वेतन-पेंशन और ब्याज खर्च 10 साल में ढाई गुना से ज्यादा बढ़ा, अब 15.63 लाख करोड़

नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि राज्यों का ज्यादातर बजट तय खर्चों—वेतन, पेंशन और कर्ज पर ब्याज भुगतान—में ही खप जाता है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 साल (2013-14 से 2022-23) में इन मदों पर होने वाला खर्च ढाई गुना से अधिक बढ़कर 6.26 लाख करोड़ रुपये से 15.63 लाख करोड़ रुपये हो गया।

कुल खर्च का 80-87% केवल राजस्व खर्च

कैग रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले एक दशक में राज्यों का राजस्व खर्च उनके कुल खर्च का 80 से 87 प्रतिशत तक रहा है। राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) के मुकाबले यह 13-15% बैठता है। वित्त वर्ष 2022-23 में राज्यों का कुल राजस्व खर्च 35.95 लाख करोड़ रुपये रहा, जिसमें से —

  • 15.63 लाख करोड़ वेतन, पेंशन और ब्याज पर
  • 3.09 लाख करोड़ सब्सिडी पर
  • 11.26 लाख करोड़ अनुदान और सहायता पर खर्च हुए।

ब्याज पर पेंशन से ज्यादा खर्च

रिपोर्ट में बताया गया कि अधिकांश राज्यों में सबसे बड़ा खर्च वेतन का है। इसके बाद पेंशन और ब्याज भुगतान आते हैं। हालांकि आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे 9 राज्यों में पेंशन से ज्यादा पैसा ब्याज चुकाने में खर्च हुआ।

राज्यों की वित्तीय स्थिति

2022-23 में 17 राज्यों ने राजस्व अधिशेष दिखाया, यानी उनकी आय खर्च से ज्यादा रही। वहीं, 5 राज्यों को राजस्व घाटा हुआ और 6 राज्यों में न घाटा रहा, न अधिशेष। रिपोर्ट बताती है कि राज्यों के बजट का बड़ा हिस्सा पहले से ही तय खर्चों में बंधा होता है, जिससे विकास और नई योजनाओं के लिए सीमित संसाधन बचते हैं।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें