
लखनऊ।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बहुचर्चित प्राधिकरण सहकारिता समायोजन घोटाले पर सख़्त रुख अपनाते हुए जांच उत्तर प्रदेश सतर्कता विभाग को सौंप दी है। अदालत ने कहा कि अब तक की जांच न सिर्फ ढीली रही है, बल्कि आरोपियों को बचाने जैसी प्रतीत होती है।
न्यायालय के समक्ष पेश रिकॉर्ड में साफ हुआ कि नई समिति के गठन के बावजूद 11 अप्रैल 2023 को 1.31 करोड़ रुपये का विक्रय विलेख निष्पादित हुआ, जबकि रकम समिति खाते में जमा ही नहीं हुई। यही नहीं, प्रतिवादी संख्या-10 ने कुल 98 बिक्री कीं और खाते में शून्य शेष दिखाया गया। अदालत ने इसे व्यापक गबन का सीधा संकेत माना।
हाईकोर्ट ने कहा कि पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद अब तक बिक्री धन की वसूली का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। विभागीय पत्राचार और एलडीए की रिपोर्टें भी महज़ कागजों तक सिमट कर रह गईं।
राज्य पक्ष ने दलील दी कि संपत्तियां पहले ही राज्य के अधिकार में आ चुकी हैं, लेकिन अदालत ने इसे “तथ्य छुपाने का प्रयास” बताते हुए नाराज़गी जताई। अदालत ने सभी अभिलेख तत्काल सतर्कता निदेशक को सौंपने और सात दिन के भीतर पहली रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया।
इतना ही नहीं, प्रतिवादी संख्या-9 द्वारा दस्तावेज़ न सौंपने को अदालत ने अवमानना माना और अभियोजन की अनुमति दे दी। अदालत ने भूमि ऑडिट जारी रखने का निर्देश देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 25 सितम्बर 2025 तय की।
पीड़ित अब भी राहत से महरूम
अदालत की टिप्पणियों से एक बात साफ है — लाखों-करोड़ों का गबन उजागर होने के बावजूद अब तक कथित अपराधियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। वहीं, पीड़ितों को न तो धनवापसी मिली है और न ही राज्य सरकार की ओर से कोई वास्तविक मदद।