
नई दिल्ली : इन दिनों बिजनेसमैन संजय कपूर की संपत्ति को लेकर विवाद चर्चा में है। उनकी मृत्यु के बाद 30,000 करोड़ रुपये की संपत्ति पर किसका अधिकार होगा, इस पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। अगर किसी व्यक्ति की एक से अधिक शादी हो और उन शादियों से बच्चे भी हों, तो उत्तराधिकार का मामला और पेचीदा हो जाता है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि भारत का कानून इस बारे में क्या कहता है।
हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लिए
इन धर्मों के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होता है। इसके अनुसार मृत व्यक्ति की जीवित पत्नी/पति, बच्चे और मां को क्लास-I वारिस माना जाता है और संपत्ति में बराबरी का हक दिया जाता है।
यदि मृत व्यक्ति ने अपनी कोई वसीयत (Will) बनाई है, तो उसकी वैधता और सबूत की जांच Indian Succession Act, 1925 के तहत की जाती है।
पारसी, ईसाई और यहूदी धर्म के लिए
इन धर्मों के लिए सीधे Indian Succession Act, 1925 लागू होता है। इस कानून के तहत मृत व्यक्ति की संपत्ति जीवित पत्नी/पति, बच्चों और माता-पिता के बीच बराबर बांटी जाती है।
मुस्लिम धर्म के लिए
मुस्लिम कानून अलग है। इसमें पति-पत्नी, बेटे-बेटियां, माता-पिता और अन्य रिश्तेदारों के हिस्से पहले से तय रहते हैं।
एक से अधिक पत्नी होने पर
अदालतें बार-बार साफ कर चुकी हैं कि कानूनी रूप से शादीशुदा (वैध) पत्नी ही संपत्ति पर अधिकार रखती है। हिंदू कानून के तहत पहली शादी के रहते दूसरी शादी अवैध मानी जाती है, इसलिए दूसरी पत्नी को विधवा के रूप में कोई अधिकार नहीं मिलता।
हालांकि, दूसरी शादी से पैदा हुए बच्चे वैध माने जाते हैं और उन्हें संपत्ति में हिस्सा मिलता है। कानून इसमें भेदभाव नहीं करता।
वसीयत और ट्रस्ट के मामले
अगर वसीयत मौजूद हो और उसमें विवाद हो (जैसे देर से सामने आना, असली वारिस को संपत्ति से दूर रखना), तो अदालत उसकी गहराई से जांच करती है।
वहीं, यदि संपत्ति परिवार द्वारा बनाए गए ट्रस्ट के अंतर्गत हो, तो वहां उत्तराधिकार कानून नहीं बल्कि ट्रस्ट डीड लागू होता है। ऐसे मामले अक्सर ज्यादा जटिल हो जाते हैं।















