
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने ग्रेट निकोबार को लेकर एक बार फिर से केंद्र पर निशाना साधा है। उन्होंने दावा किया है कि इस परियोजना में वन अधिकार अधिनियम, 2006 (एफआरए) के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है, जिससे पर्यावरण और आदिवासी समुदायों के अधिकारों का हनन हो सकता है।
जयराम रमेश ने अपने एक्स पोस्ट में कहा कि 18 अगस्त 2022 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन ने परियोजना के लिए वन अधिकारों के निपटान और सहमति के प्रमाण पत्र जारी किए थे, लेकिन सेवा निवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी मीना गुप्ता ने इसकी चुनौती कलकत्ता उच्च न्यायालय में दी है, जिसमें वन अधिकार अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
रमेश ने कहा कि 19 फरवरी 2025 को केंद्रीय आदिवासी कार्य मंत्रालय ने खुद को इस मामले से हटाने का अनुरोध किया था, जबकि 8 सितंबर 2025 को उसी मंत्रालय ने स्थानीय प्रशासन से रिपोर्ट मांगी है, जो इस मुद्दे पर अस्पष्टता को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय मंजूरी को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में चुनौती दी गई है, बावजूद इसके अंडमान और निकोबार द्वीप समन्वित विकास निगम ने पेड़ों की कटाई और परिवहन के लिए रुचि पत्र आमंत्रित किए हैं। गलथिया बे को प्रमुख बंदरगाह घोषित करने और पर्यावरण मंत्री की अनदेखी का भी उन्होंने जिक्र किया।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी एक अंग्रेजी समाचार पत्र में लेख लिखकर इस परियोजना पर आपत्ति जताई और आदिवासी विस्थापन तथा पारिस्थितिकीय नुकसान की आशंका व्यक्त की है।