Fatehpur : फैक्ट्री में मिली सरकारी खाद, लेकिन विभाग ने एफआईआर क्यों नहीं कराई?

  • आरोपों से बचने के लिए पीड़ित ही बन गया आरोपी, दर्ज करा दी एफआईआर !
  • विभाग की भूमिका पर उठे सवाल, आखिर किसानों की खाद मिलने पर क्यों नहीं कराई एफआईआर

Fatehpur : खाद का खेल गहराता जा रहा है। किसान गोदामों और समितियों में लाइन लगाकर भी खाली हाथ लौट रहे हैं, जबकि सरकारी स्टॉक का कोई पता नहीं है। यूरिया खुले बाजार में ब्लैक में बिक रही है, लेकिन किसानों तक उनका हक नहीं पहुँच रहा। इसी बीच एक चौंकाने वाली घटना सामने आई। मलवां स्थित बांकेबिहारी प्लाईवुड इंडस्ट्रीज प्रा. लि. के कारखाने से कृषि विभाग ने 9 जून को खाद का नमूना लिया। इस नमूने को सरकार की लैब मेरठ भेजा गया और 28 जून को रिपोर्ट आई।

रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि बोरी में किसानों के उपयोग वाली यूरिया थी, जबकि उद्योगपति दावा कर रहा था कि उसने टेक्निकल ग्रेड यूरिया खरीदी थी, जो उद्योगों में प्रयोग होती है। अब सवाल यह है कि जब किसानों के लिए यूरिया की कमी है, तो यह खाद की खेप उद्योगपति के गोदाम में कैसे पहुँची? कृषि विभाग ने खुद जब्त खाद की जांच कराई और रिपोर्ट में किसानों के उपयोग वाली यूरिया होने की पुष्टि हुई, तो विभाग ने खुद एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कराई? आखिर विभाग चुप क्यों बैठा है और वही उद्योगपति एफआईआर दर्ज करा रहा है, जिसके गोदाम से सरकारी खाद पकड़ी गई? क्या यह मामला सीधा-सीधा उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाला तो नहीं है?

उद्योगपति दिनेश गोलयान का कहना है कि उसने हरियाणा की अतुल ट्रेडिंग कंपनी से तकनीकी ग्रेड यूरिया खरीदी थी, लेकिन उसे किसानों वाली खाद पकड़ा दी गई। उसने धोखाधड़ी का आरोप लगाकर उक्त कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। सवाल यह उठता है कि अगर सचमुच उसे धोखा दिया गया तो कृषि विभाग की जिम्मेदारी कहाँ है? विभाग को यह जांच क्यों नहीं करनी चाहिए थी कि किसानों की खाद उद्योगपति तक कैसे पहुँची?

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