
Nepal Zen-Z : नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन लगाकर खुद अपनी ही सरकार गिराने वाले केपी शर्मा ओली अब शिवपुरी में नेपाली सेना के सुरक्षा घेरे में छिप हुए हैं। आंदोलनकारी युवाओं से सेना लगातार संवाद कर रही है।
अभी तक माना जा रहा था कि जेन-जी की सहमति से सुशीला कार्की को नेपाल की गद्दी सौंपी जाएगी। लेकिन गुरुवार को दोपहर में खुद सुशीला कार्की ने पीएम रेस से अपना नाम वापस ले लिया। बताया जा रहा है कि जेन-जी के बीच दो गुट बन गए हैं और आपस में ही उलझ गए हैं। युवाओं में, नेपाल की सत्ता किसके हाथ में देनी है, इसपर एकजुटता नहीं देखी जा रही है। अब युवाओं की ओर से एक नए नाम पर मुहर लगी है।
हालांकि जेन-जी की पहली पसंद बालेन शाह थे, मगर उन्होंने भी खुद को पीएम रेस से पीछे कर लिया। अब सुशीला कार्की भी अपना नाम वापस ले चुकी हैं। ऐसे में युवा पीढ़ी के आंदोलन ने देश की राजनीति में भारी उथल-पुथल मचा दी है। इस आंदोलन की वजह से सरकार की स्थिरता खतरे में आ गई है, और वर्तमान में नए सरकार बनाने की कवायदें तेज हो गई हैं। नेपाल में नई सरकार की मांग ही युवा कर रहे हैं और सरकार बनाने में देरी का कारण भी खुद युवा ही बन रहे हैं।
नेपाल के आंदोलनकारी युवाओं ने अब नए प्रधानमंत्री को चुनने को लेकर नई मांग कर दी है। नेपाली जेन-जी का कहना है कि उन्हें नेपाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा पीएम चाहिए, जो देश के कल्याण और विकास को प्राथमिकता दें। इसके साथ ही नेपाली युवा ने देश के लिए एक युवा पीएम पीएम की मांग की है, क्योंकि उनका मानना है कि एक युवा नेता ही नेपाल की वर्तमान संकट से उबार सकता है।
एक युवा ने कहा कि हमने कुछ ही घंटों में सरकार को हटा दिया है, और अब हमें ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत है जो देश के कल्याण को सर्वोपरि मानता हो। उन्होंने कहा कि भारत में पिछले दशक में अनेक बदलाव हुए हैं, और हम भी नेपाल में उसी तरह प्रगति देखना चाहते हैं। उनका मानना है कि अल्पकालिक सरकार के बाद सामान्य चुनाव कराए जाने चाहिए।
कुछ युवाओं का मानना है कि नेपाल को अपने भविष्य के लिए एक युवा और गतिशील नेता चाहिए, जो सबको एकजुट कर सके। दीपेंद्र विश्वकर्मा ने कहा कि इस समय नेपाल को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत है जो युवा हो और देश को नई दिशा दे सके। उन्होंने कहा कि राजनीतिक झगड़ों से ऊपर उठकर नेताओं को राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए।
बता दें कि नेपाल के जन-जीवन में यह आंदोलन बड़े पैमाने पर फैल चुका है। भ्रष्टाचार एवं सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन ने केपी शर्मा ओली के प्रधानमंत्रित्व काल को समाप्त कर दिया है। प्रदर्शनकारियों ने संसद में आग लगा दी और देश में हिंसक झड़पें हुई हैं, जिसमें अब तक 30 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 1000 से अधिक घायल हैं।
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