
कुल्लू। हिमाचल प्रदेश में बादल फटना, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं के पीछे कहीं न कहीं मानवीय लापरवाही भी जिम्मेदार है। इससे जान-माल का भारी नुकसान हो रहा है। मौहल स्थित जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में बुधवार को आयोजित 12वें हिमालयी व्याख्यान और वार्षिक कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने इस पर गंभीर चिंता जताई।
प्राकृतिक आपदाएं असल में मानवीय गलती
कार्यक्रम में पूर्व पीसीसीएफ डॉ. गुरिंदरजीत सिंह गोराया ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र में हो रही अधिकांश आपदाएं मानवीय भूलों का नतीजा हैं। लोग घर बनाने से पहले पेड़ काट देते हैं और बाद में पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें पेड़ों को बचाकर घर दूसरी जगह बनाने चाहिए। साथ ही, वाटरशेड और वन संरक्षण के लिए एकीकृत प्रयास जरूरी हैं।
सामुदायिक भागीदारी पर जोर
मुख्य अतिथि और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्य सचिव शाम सिंह कपूर ने लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पारिस्थितिक बहाली में सामुदायिक भागीदारी के साथ सरकार और विभागों को मिलकर काम करना होगा।
जलवायु पैटर्न में बदलाव भी कारण
पूर्व पीसीसीएफ सीएस सिंह ने कहा कि कुल्लू घाटी में बेमौसम बारिश और भूस्खलन जलवायु पैटर्न में बदलाव तथा मानव-प्रेरित गतिविधियों का परिणाम हैं।
प्रभावी रणनीति की जरूरत
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के निदेशक संदीप शर्मा ने कहा कि जलवायु से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए प्रकृति-आधारित समाधान अपनाने होंगे।
संस्थान प्रभारी राकेश कुमार सिंह ने संस्थान की गतिविधियों की जानकारी दी। शोधार्थियों ने हिमालयी विरासत पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं। इस दौरान दो प्रकाशनों का विमोचन भी हुआ।
कार्यक्रम में वैज्ञानिक डॉ. सरला शाशनी और डॉ. केसर चंद भी उपस्थित रहे।
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