सेक्स वर्कर कोई वस्तु नहीं, कोठों पर जाने वाले ‘ग्राहक’ भी होंगे दोषी, हाई कोर्ट ने ITPA में हो सकती है सज़ा

Supreme Court on Keral Sex Worker : सुप्रीम कोर्ट ने केरल में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि वेश्यावृत्ति (Prostitution) में शामिल एक साथी के रूप में, केवल सेक्स वर्कर ही नहीं, बल्कि उनके ‘ग्राहक’ (Customer) भी अश्लील व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की कुछ धाराओं के तहत दंड के पात्र हैं।

न्यायमूर्ति वी. जी. अरुण की खंडपीठ ने यह आदेश आपराधिक मामले क्रं. एम.सी. नंबर 8198/2022 में दिया, जिसमें एक व्यक्ति ने पेरूरकाडा पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर के खिलाफ पूरी जांच रद्द करने की मांग की थी।

मामला 18 मार्च 2021 का है, जब तिरुवनंतपुरम के कुडप्पनकुन्नु में पुलिस ने छापा मारा। इस दौरान पेटीशनर सरत चंद्रन (तीसरे आरोपी) और एक महिला को आपत्तिजनक अवस्था में एक बिस्तर पर पाया गया। एक अन्य कमरे में एक पुरुष और महिला थे। जांच में पता चला कि आरोपियों ने तीन महिलाओं की तस्करी कर उन्हें वहां लाया था और यौन संबंध बनाने के इच्छुक लोगों को बुला रहे थे। बताया गया कि प्रति घंटे 2000 रुपये का शुल्क लिया जाता था, जिसमें से आधी रकम महिलाओं को दी जाती थी। पेटीशनर के खिलाफ अधिनियम की धाराओं 3, 4, 5(1)(d) और 7 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

पेटीशनर का तर्क – ‘ग्राहक’ पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता

पेटीशनर के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल केवल एक ‘ग्राहक’ थे और अधिनियम की किसी भी धारा के तहत उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। उन्होंने राधाकृष्णन के. बनाम केरल राज्य और विजयकुमार बनाम केरल राज्य जैसे पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि एक ग्राहक सेक्स वर्कर के व्यवसाय को नहीं चलाता, बल्कि उसकी सेवाओं का उपयोग करता है, इसलिए वह धारा 5(1)(d) के दायरे में नहीं आता।

हालांकि कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मानव तस्करी और यौन शोषण के व्यावसायीकरण को रोकना है। कोर्ट ने अपने पिछले फैसले मैथ्यू बनाम केरल राज्य (2022) और अभिजित बनाम केरल राज्य (2023) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि एक ‘ग्राहक’ सिर्फ सेवा लेने वाला नहीं होता, बल्कि वह पैसे देकर सेक्स वर्कर को इस काम के लिए प्रेरित करता है।

‘ग्राहक’ नहीं, ‘प्रेरक’ है- कोर्ट ने व्याख्या की

कोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

  • “एक व्यक्ति जो वेश्यालय में एक सेक्स वर्कर की सेवाओं का उपयोग करता है, उसे वास्तव में ‘ग्राहक’ नहीं कहा जा सकता। ग्राहक वह होता है जो वस्तु या सेवा खरीदता है। सेक्स वर्कर को एक उत्पाद के रूप में नहीं देखा जा सकता।”
  • “अधिकांश मामलों में, उन्हें (सेक्स वर्कर्स) मानव तस्करी के जरिए लाया जाता है और दूसरों की कामुक इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने शरीर का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जाता है।”
  • “भुगतान को केवल प्रलोभन माना जा सकता है, ताकि सेक्स वर्कर अपने शरीर की पेशकश करे और भुगतानकर्ता की मांगों को पूरा करे। इस प्रकार, वेश्यालय में सेवा लेने वाला व्यक्ति पैसे देकर उस सेक्स वर्कर को वेश्यावृत्ति जारी रखने के लिए प्रेरित कर रहा होता है, और इसलिए वह धारा 5(1)(d) के तहत अभियोग का पात्र है।”
  • “यदि प्रेरक को ‘ग्राहक’ कहा जाएगा, तो यह अधिनियम के उद्देश्य के विपरीत होगा, जो मानव तस्करी को रोकने का लक्ष्य रखता है, न कि वेश्यावृत्ति में शामिल लोगों को दंडित करने का।”

कुछ धाराएं रद्द, कुछ जारी

कोर्ट ने पेटीशनर के खिलाफ चल रहे मुकदमे को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया:

  • रद्द की गई धाराएं: धारा 3 (वेश्यालय संचालक) और धारा 4 (वेश्यावृत्ति की कमाई पर जीवनयापन) के तहत कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया।
  • जारी रहेंगी धाराएं: कोर्ट ने धारा 5(1)(d) (किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करना) और धारा 7 (अधिसूचित क्षेत्र में वेश्यावृत्ति) के तहत मुकदमे जारी रखने की अनुमति दी। अदालत ने कहा कि यह तय करना ट्रायल कोर्ट का काम होगा कि वेश्यालय अधिसूचित क्षेत्र में था या नहीं।

इस फैसले ने स्पष्ट किया है कि अश्लील व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत दोषी पाए जाने वालों में केवल सेक्स वर्कर, दलाल या वेश्यावृत्ति का संचालन करने वाले ही नहीं, बल्कि उन ‘ग्राहकों’ की भी बड़ी भूमिका है जो इस शोषणकारी व्यवस्था को वित्तीय प्रोत्साहन देकर बनाए रखते हैं।

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