
Nepal Political Crisis : नेपाल में ओली के सोशल मीडिया को बैन करने के आदेश ने देश में सोए हुए जेन-जी को जगा दिया है। जिससे राजनीतिक अस्थिरता का दौर एक बार फिर उभरकर सामने आया है, जहां जनता की आवाज ने सत्ता परिवर्तन का रास्ता खोल दिया है। लगभग तीन दशक से चले आ रहे वाकयुद्ध और जन आंदोलनों की आग ने आखिरकार सरकार की नींव हिला दी है और सेना ने सत्ता संभालने का कदम उठाया है। यह घटना नेपाल की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत का संकेत है, जिसमें जनता की शक्ति और सैन्य ताकत का मेल देखने को मिल रहा है।
महज 32 घंटे के अंदर नेपाल के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर कैबिनेट मंत्री और सांसदों ने इस्तीफा दे दिया है। प्रदर्शनकारी जेन जी ड्रोन से रेस्क्यू कर चुन-चुन कर मंत्री और नेताओं पर हमले कर रहे हैं। दो दिन की क्रांति में युवाओं ने कई लोगों की हत्या कर दी है। जानकारी के मुताबिक पीएम ओली के इस्तीफे के बाद तख्तापलट की गूंज उठ रही है और खुद पीएम दुबई जाने की फिराक में हैं। प्रदर्शनकारियों ने संसद को भी आग के हवाले कर दिया है। जिससे युवाओं के भीतर राजनीति से फैले असंतोष को साफ देखा जा सकता है। ऐसे में सेना को आगे आकर नेपाल की कमान संभालनी पड़ रही है।
सेना ने युवाओं से बातचीत करने की कोेशिश की है। लगातार सेना आंदोलनकारियों से संपर्क बनाए हुए है और शांति की अपील कर रही है। मगर, सवाल ये उठता है कि आखिर नेपाल में दो दिन के अंदर जेन-जी का आंदोलन इनता कैसै भड़क गया? क्या यह केवल सोशल मीडिया को बैन करने की नाराजगी है या ओली सरकार के प्रति जनता का आक्रोश? इस समझने के लिए नेपाल की राजनीति के 29 साल पीछे जाना पड़ेगा।
नेपाल में पिछले 29 सालों से राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार का दौर जारी है। राजनीतिक दलों के बीच सत्ता की होड़ और भ्रष्टाचार के आरोपों ने आम जनता में असंतोष की आग जगा दी थी। आर्थिक संकट, बेरोजगारी, और लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता ने जनता की नाराजगी को और भी भड़का दिया। ऐसे में जन आंदोलनों ने राजनीति में बदलाव की मांग को तेज कर दिया, लेकिन सत्ता संरचनाएं इनके सामने बेबस साबित हो रही थीं।
आखिरकार, जनता की व्यापक एकता और आवाज ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया। बड़ी संख्या में नागरिक सड़कों पर उतर आए, रैलियां और प्रदर्शन किए, और अपने हकों के लिए आवाज बुलंद की। इस व्यापक जन आंदोलन ने सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया। जनता की इस आवाज ने सत्ता की चूलें हिला दीं और सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया।
जिस समय राजनीतिक संकट चरम पर था, उस दौरान नेपाल की सेना ने अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित किया। सरकार की कमजोरी और जनता की नाराजगी को देखते हुए सेना ने हस्तक्षेप किया। सेना ने तख्तापलट कर नई सरकार का गठन किया और सत्ता संभाली। इस कदम ने देश में नई राजनीतिक दिशा का संकेत दिया है, जिसमें सेना का प्रमुख भूमिका में आना साफ झलक रहा है। सेना का यह कदम कई तरह के सवाल भी खड़े करता है, लेकिन वर्तमान स्थिति में यह जनता की इच्छा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से जरूरी माना जा रहा है।
नेपाल में इस नए युग में आगे क्या होगा, यह अभी अनिश्चित है। राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने के लिए नई सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। जनता की आशाएं अभी भी जिंदा हैं कि जल्द ही स्थिर और लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हो सकेगी। साथ ही, सेना की भूमिका को लेकर भी देश में चर्चा तेज है कि क्या यह स्थायी समाधान है या फिर आगे कोई नई राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होनी है।
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