
Vice President Election 2025 : उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए आज मतदान हो रहा है। अब तक कुल 528 वोटें डाली जा चुकी हैं। शाम 5 बजे तक मतदान प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और शाम 6 बजे वोटों की गिनती होगी। आज ही फैसला हो जाएगा कि जगदीप धनखड़ के बाद उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर कौन बैठेगा। एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन हैं और विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी हैं के बीच मुकाबला चल रहा है। कल तक जहां चुनाव सीपी राधाकृष्णन के पक्ष में स्पष्ट रूप से जाता दिख रहा था, वो अब कुछ पेचीदा बन गया है। इसका कारण चुनाव से एक दिन पहले तीन प्रमुख पार्टियों का मतदान से बहिष्कार करना है।
इन तीन दलों ने किया वोटिंग से बहिष्कार
बता दें कि चुनाव से महज एक दिन पहले ही ओडिशा की बीजू जनता दल (बीजेडी), तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), और पंजाब के शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान करने से इनकार कर दिया। इन तीन प्रमुख पार्टियों द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने के बाद उपराष्ट्रपति का चुनाव 50-50 पर अटक गया है। इन तीनों पार्टियों के पीछे हटने के साथ ही उपराष्ट्रपति चुनाव के समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं। इसमें भी कई पार्टियों के सांसदों के क्रॉस वोटिंग करने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि चुनाव का परिणाम कुछ भी सकता है।
क्या है तीनों दलों के वोटों का समीकरण?
बीआरएस के पास राज्यसभा में 4 सांसद हैं, जबकि उसकी एक भी लोकसभा सीट नहीं है। बीजेडी के पास लोकसभा में 7 सांसद हैं, और राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं। एसएडी के पास लोकसभा में 1 सांसद है। इन तीनों पार्टियों के चुनाव से बाहर रहने के कारण कुल 12 सांसद वोटिंग से दूर हो गए हैं। पहले कुल 782 सांसद थे, जिनमें से जीत के लिए 392 वोट चाहिए थे। अब, लोकसभा में 542 और राज्यसभा में 240 सांसद हैं, यानी कुल 782 सदस्य। लेकिन 12 सांसदों के पीछे हटने के बाद, सिर्फ 770 सांसद वोट करेंगे, और जीत के लिए 386 वोटों की आवश्यकता होगी। अगर कोई सांसद या पार्टी वोटिंग के दिन पीछे हटता है, तो स्थिति बदल सकती है। आंकड़ों के हिसाब से, एनडीए के पास बहुमत है, जिसके पास कुल 425 सांसद हैं।
तीनों दलों के पीछे हटने से किस उम्मीदवार को होगा नुकसान?
2022 में उपराष्ट्रपति चुनाव में बीआरएस ने विपक्ष का समर्थन किया था और मार्गरेट अल्वा को वोट दिया था। उस समय उनके पास 16 सांसद थे, जिनमें से 9 लोकसभा के थे। तेलंगाना के किसानों की स्थिति को देखते हुए, पार्टी ने चुनाव से दूर रहने का फैसला लिया है, क्योंकि वे केंद्र की बीजेपी और राज्य की कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। पार्टी का आरोप है कि दोनों सरकारें यूरिया की कमी दूर करने में विफल रहीं, जिससे किसानों में तनाव और झड़पें हो रही हैं। अगर चुनाव में नोटा का विकल्प होता, तो पार्टी उसके साथ जाती।
वहीं, बीजेडी का यह फैसला वक्फ संशोधन विधेयक पर राज्यसभा में वोटिंग के कारण है। पार्टी ने 5 सांसदों को मतदान के पक्ष में कहा था, जबकि एक सांसद ने वोट नहीं किया और एक विरोध में रहा। इस बार पार्टी ने फैसला किया है कि सांसद वोट नहीं देंगे। बीजेडी पहले एनडीए का हिस्सा थी, और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री पद भी मिला था, लेकिन 2009 में उसने एनडीए से नाता तोड़ लिया। वर्तमान में, पार्टी ने न तो एनडीए और न ही इंडियन गठबंधन का समर्थन किया है। शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब में बाढ़ की वजह से चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला लिया है।
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