
नई दिल्ली: नेपाल में सोशल मीडिया बैन ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। सोमवार को राजधानी काठमांडू समेत कई इलाकों में जेन-जी सड़कों पर उतर आई और विरोध की आग फैल गई। हालात इतने बिगड़े कि प्रदर्शनकारियों का गुस्सा पीएम ओली के पैतृक घर तक भी पहुंच गया।
सोशल मीडिया पर लगी रोक ने भारत के पड़ोस में एक और देश को अस्थिरता के दौर में धकेल दिया है। बीते चार सालों में बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका जैसे कई पड़ोसी देशों में भी सरकार विरोधी आंदोलन भड़के हैं। अब नेपाल भी उसी राह पर दिखाई दे रहा है। इस रिपोर्ट में जानते हैं किन-किन देशों में ये आंदोलन हुए और उनके पीछे क्या वजहें थीं।
लगातार अस्थिरता का माहौल
भारत के पड़ोसी देशों में हाल के कुछ सालों में घरेलू वजहों से हुए प्रदर्शनों ने जहां इन देशों में राजनीतिक उथल-पुथल को जन्म दिया तो वहीं दक्षिण एशिया में भी स्थिरता को प्रभावित किया है. बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल में हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने यह बात साबित कर दी है कि भारत के पड़ोस में राजनीतिक स्थिति और हालात बेहद अस्थिर है.
बांग्लादेश में सत्ता संघर्ष और लोकतांत्रिक असुरक्षा
बांग्लादेश में साल 2022 से माहौल अशांत होने लगा था लेकिन मई 2024 में जनता का गुस्सा फूट पड़ा. मई 2024 में राजधानी ढाका और कई अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर शेख हसीना की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि अवामी लीग और उसकी स्टूडेंट विंग को बैन किया जाए. प्रदर्शनकारियों का आरोप था कि पार्टी लंबे समय से सत्ता पर काबिज है और विपक्षी दलों को कमजोर कर रही है. वहीं उससे जुड़े छात्र संगठन हिंसा और दमनकारी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं. सरकार ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही. अगस्त 2024 में आखिरकार हसीना को देश छोड़कर जाना पड़ा.
इमरान की गिरफ्तारी से भड़के समर्थक
भारत का दुश्मन और परमाणु शक्ति से लैस पाकिस्तान भी पिछले दो सालों में दो बड़े प्रदर्शनों का गवाह बना है. मई 2023 में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी ने पूरे पाकिस्तान में आग भड़का दी. लाहौर से लेकर इस्लामाबाद और रावलपिंडी तक उनके समर्थक सड़कों पर उतरे और कई जगहों पर हालात बेकाबू हो गए. सरकारी इमारतों, पुलिस चौकियों और यहां तक कि सेना के प्रतिष्ठानों पर भी हमले हुए. कई शहरों में कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी और इंटरनेट सर्विसेज पूरी तरह से बंद कर दी गईं.
विशेषज्ञों की मानें तो यह पाकिस्तान के इतिहास में उन असाधारण मौकों में से एक था जब जनता का गुस्सा सीधे सेना की ओर मुड़ा. इन प्रदर्शनों ने यह संकेत दिया कि पाकिस्तान की राजनीति और सत्ता पर कितना बड़ा संकट है. प्रदर्शन उस समय हुए जब इमरान के सत्ता से हटने के करीब एक साल बाद तोशाखान मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. इमरान अभी तक जेल में बंद हैं. इस प्रदर्शन में जहां 10 से ज्यादा लोगों की मौत हुई तो वहीं हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था.
श्रीलंका में आर्थिक संकट से फूटा जनता का गुस्सा
पाकिस्तान से पहले भारत का एक और पड़ोसी श्रीलंका में साल 2022 में बड़े प्रदर्शन हुए. भयंकर आर्थिक संकट के बाद देश धीरे-धीरे सुधार की कोशिशों की तरफ बढ़ रहा था लेकिन जनता नाराज थी. राजधानी कोलंबो, कैंडी और कई और शहरों में हजारों लोगों ने बिजली कटौती, महंगाई, ईंधन की कीमतों में वृद्धि और बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन किए. कई जगह भ्रष्टाचार के खिलाफ नारेबाजी भी हुई. इस प्रदर्शन की नींव दरअसल मार्च 2022 में ही पड़ चुकी थी. श्रीलंका में हुए इन प्रदर्शनों को अरगलाया आंदोलन का नाम दिया गया था. प्रदर्शन के बीच ही जनता राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास में दाखिल हो गई और तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ गया. फिलहाल पूर्व राष्ट्रपति और पीएम रानिल विक्रमसिंघे सरकारी फंड के दुरुपयोग के आरोप में जेल की सजा काट रहे हैं.
म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ जंग
फरवरी 2021 में भारत के नॉर्थ-ईस्ट रीजन से सटे म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हो गया. देश में तब से ही हालात लगातार अस्थिर हैं और जनता लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष कर रही है. 2025 में भी विश्वविद्यालयों, मंदिरों और कस्बों में विरोध प्रदर्शन जारी हैं. छात्रों, नागरिक समूहों और भिक्षुओं ने सेना के खिलाफ आवाज बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. तख्तापलट के बाद से ही देश की नेता आंग सा सू की जेल में हैं और सेना सत्ता पर काबिज है. देश में इन हालातों में गिरफ्तारियां, गोलीबारी, इंटरनेट ब्लैकआउट और मीडिया पर पाबंदियां आम हैं. देश पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बढ़ रहा है लेकिन सैन्य शासन अभी भी सख्ती से सत्ता पर काबिज है. 2021 में हुए प्रदर्शन को स्प्रिंग रेवॉल्यूशन के नाम से जाना जाता है.