
लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में जहां एक ओर नई भर्ती की प्रक्रिया चल रही है, वहीं दूसरी ओर डॉक्टरों के इस्तीफे थमने का नाम नहीं ले रहे। ताज़ा मामले में चार और डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ दी है। खास बात यह है कि इन चिकित्सकों ने नोटिस पीरियड पूरा करने के बजाय तीन महीने का वेतन जमा कर संस्थान से तुरंत रिलीव ले लिया।
किन डॉक्टरों ने दिया इस्तीफ़ा?
- डॉ. मनु अग्रवाल – मनोरोग विभाग
- डॉ. तन्वी भार्गव – एनेस्थीसिया विभाग (चयन: संजय गांधी पीजीआई)
- डॉ. अशोक कुमार गुप्ता – प्लास्टिक सर्जरी विभाग (चयन: डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान)
- डॉ. करण कौशिक – कार्डियक एनेस्थीसिया विभाग
डॉ. मनु अग्रवाल और डॉ. करण कौशिक के अगले संस्थान के बारे में अभी स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है।
पहले भी जा चुके हैं कई डॉक्टर
इन चार डॉक्टरों से पहले भी तीन वरिष्ठ चिकित्सक इस्तीफा दे चुके हैं—पूर्व प्रॉक्टर प्रो. क्षितिज श्रीवास्तव, मनोरोग विशेषज्ञ प्रो. आदर्श त्रिपाठी और रेस्पिरेटरी मेडिसिन के डॉ. अजय कुमार वर्मा।
इसके अलावा हाल के वर्षों में कई अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर भी केजीएमयू छोड़कर जा चुके हैं, जिनमें एंडोक्राइन, गैस्ट्रो सर्जरी, नेफ्रोलॉजी, न्यूरो सर्जरी, ट्रांसप्लांट यूनिट और यूरोलॉजी विभाग के बड़े नाम शामिल हैं।
क्यों छोड़ रहे हैं सरकारी संस्थान?
- निजी अस्पतालों में ऊंचा पैकेज: जहां सरकारी संस्थानों में असिस्टेंट प्रोफेसर का शुरुआती वेतन लगभग ₹1.25 लाख और प्रोफेसर का ₹3 लाख तक होता है, वहीं प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टरों को कई गुना ज्यादा वेतन (कई बार ₹10 लाख तक) और इंसेंटिव मिल जाते हैं।
- समान वेतन की व्यवस्था: सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टरों और नॉन-क्लीनिकल विभाग के शिक्षकों को समान वेतन और भत्ते मिलते हैं, जबकि सुपर स्पेशियलिस्ट बनने में अधिक समय और मेहनत लगती है।
- नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस: सरकारी संस्थानों में सभी एमबीबीएस डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस रोकने के लिए यह भत्ता मिलता है, लेकिन इससे भी असमानता का भाव पैदा होता है।
विशेषज्ञों की राय
- प्रो. केके सिंह, प्रवक्ता, केजीएमयू
“जिन डॉक्टरों ने इस्तीफा दिया है, उन्होंने हाल में ही जॉइन किया था। कुछ ने अन्य संस्थानों में चयन होने और कुछ ने निजी कारणों से नौकरी छोड़ी है।” - प्रो. संतोष कुमार, महामंत्री, केजीएमयू शिक्षक संघ
“सरकार को उन डॉक्टरों के लिए नीति बनानी चाहिए जो सरकारी संस्थानों से पढ़ाई करते हैं। यहां गरीब मरीजों की सेवा और भविष्य की सुरक्षा है, जबकि प्राइवेट अस्पतालों में यह नहीं मिलता।”