कभी जुर्म दहाड़ता था, आज किताबें खिलखिलाती हैं…कुख्यात विकास दुबे के बिकरू गांव के मास्टर से किया कमाल…

– बिकरू गांव के अध्यापक राजन ने बदली गांव की पहचान
– 35 से अधिक नवाचार के लिए राज्य सरकार देगी सम्मान
– प्राथमिक स्कूल में अब 152 छात्र, कभी संख्या दहाई पर थी

भास्कर ब्यूरो
कानपुर। बिकरू गांव की माटी तो खामख्वाह बदनाम हुई। माटी के लाल विकास दुबे ने कुख्यात कहानियों से गांव को बदनाम किया तो दूसरे सपूत राजन लाल ने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार का इतिहास रचकर गांव के माथे से बदनामी का दाग धोने का सफल प्रयास किया है। राजन लाल ने सूने-वीरान पड़े सरकारी प्राथमिक स्कूल को सजाया-संवारा और अपने अनूठे नवाचार से बच्चों की दोस्ती किताबों से कराई। नतीजे में स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ी और अध्यापक के तौर-तरीकों के नवाचार को देखते हुए राजन का नाम राज्य अध्यापक पुरस्कार की सूची में जुड़ गया है। राजन लाल को 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस पर सीएम योगी आदित्यनाथ 35 से अधिक नवाचारों के लिए पुरस्कार और सम्मान देंगे।

सिर्फ नाम के नहीं, कर्मों से राजन हैं
पांच साल पहले तक कुख्यात विकास दुबे की बदमाशियों के लिए बदनाम बिकरू के लाल अब विकास की नई इबारत लिख रहे हैं। तमाम क्षेत्रों में नए कीर्तिमान गढ़ने के किस्सों में बिकरू शामिल होने लगा है। इसी कड़ी में बिकरू के सपूत राजन लाल ने शिक्षा के क्षेत्र में अपने तमाम नवाचार से बदहाल-बदनाम सरकारी स्कूल की सूरत को बदल दिया है। मूलरूप से बिकरू गांव के रहने वाले राजन लाल की पहली नियुक्ति 17 जनवरी 2003 को चौबेपुर के प्राथमिक विद्यालय बंसथी प्रथम में सहायक अध्यापक के रूप में हुई थी। पहले दिन राजन स्कूल पहुंचे तो बेहद निराश हुए। कारण स्कूल में छात्रों की संख्या दहाई में थी। इसके भी बड़ी बात यह कि, स्कूल के रजिस्टर में दर्ज बच्चों में कुछेक ही पढ़ने आते थे, शेष लापता थे। स्कूल आने वाले बच्चे भी सिर्फ मिड-डे-मील के लालच में आते थे। पढ़ाई-लिखाई से वास्ता नहीं था।

छोटे-छोटे बदलाव से कामयाबी की कहानी
कहावत है कि छोटे-छोटे बदलाव बड़ी कामयाबी की नींव रखते हैं। कुछ ऐसा ही बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में कानपुर बिकरू गांव के सहायक अध्यापक राजन लाल ने किया। राजन की पहली चुनौती स्कूल में छात्र-संख्या बढ़ाना थी। उन्होंने गांव-मजरों में अभिभावकों से रिश्ता जोड़कर नवाचारों का प्रयोग शुरू किया। यूनिफॉर्म में आने वाले बच्चों को स्टार ऑफ द डे के रूप में चयनित कर सम्मानित करना शुरू किया तो बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। इसके बाद पुरस्कार स्वरूप कॉपी, पेन बैग मिलने से बच्चों के कदम स्कूल की तरफ बढ़ने लगे। नतीजा सामने हैं, अब विद्यालय में 152 बच्चे पढ़ाई करने आते हैं। इसके बाद खेल-खेल में गणित और विज्ञान समझाने का नवाचार हुआ तो पढ़ाई से कतराने वाले बच्चों की किताबों से दोस्ती होने में वक्त नहीं लगा।


30 मिनट पहले स्कूल पहुंचते हैं राजन
लेट-लतीफी के साथ स्कूल पहुंचने के लिए बदनाम सरकारी शिक्षकों को आइना दिखाते हुए सहायक शिक्षक राजन लाल हमेशा विद्यालय में 30 मिनट पहले ही पहुंचते हैं। साथ ही स्कूल को साफ-सुथरा रखने के साथ स्मार्ट पढ़ाई की दिशा में फोकस किया। फिलवक्त स्कूल में दो स्मार्ट क्लासेस में टीवी, लैपटॉप की व्यवस्था है। बच्चों की यूनिफॉर्म आदि पर अपने वेतन से देने वाले राजन के नवाचार में उनकी धर्मपत्नी भी सहयोगी हैं। इसके अलावा कुछ अभिभावकों ने मदद को हाथ बढ़ाया तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए गांव में निशुल्क लाइब्रेरी की स्थापना हो गई। लाइब्रेरी में हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई के साथ बीएससी, एमएससी व प्रयोगात्मक परीक्षाओं की तैयारियों से जुड़ी तमाम किताबें मौजूद हैं।

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