महिलाओं के लिए देहज बना श्राप, हर साल 6 हजार से अधिक महिलाओं की मौत…एनसीआरबी के आंकड़े पढ़कर दहल जाएंगे आप

नई दिल्ली । दहेज का दानव आज भी देश की महिलाओं की जिंदगी निगल रहा है। हाल ही में ग्रेटर नोएडा से सामने आई दर्दनाक घटना ने एक बार फिर इस सामाजिक बुराई को चर्चा में ला दिया है। यहां एक पति ने कथित रूप से पत्नी को जिंदा जला दिया। मृतका के बेटे ने बताया कि पिता ने पहले मां पर कुछ डाला, फिर थप्पड़ मारा और लाइटर से आग लगा दी। इस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, हालांकि हिरासत में भागने की कोशिश के दौरान पुलिस की गोली लगने से वह घायल हो गया।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, देश में हर साल करीब छह हजार से अधिक महिलाएं दहेज के लिए अपनी जान गंवा रही हैं। साल 2022 में दहेज हत्या के 6,450 मामले दर्ज हुए। इनमें से करीब 80 प्रतिशत मामले बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और ओडिशा जैसे राज्यों से सामने आए।

साल 2021 में ऐसे मामलों की संख्या लगभग 6,753 रही, जबकि 2020 में 6,966 मामले दर्ज किए गए। हालांकि इन तीन वर्षों में मामूली कमी जरूर दर्ज हुई है, लेकिन आंकड़े अभी भी बेहद भयावह तस्वीर पेश करते हैं।

कई मामले तो दर्ज भी नहीं होते
विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या इससे भी कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि कई मामलों की शिकायत ही दर्ज नहीं होती। पारिवारिक दबाव, सामाजिक शर्म और कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण कई पीड़ित परिवार पुलिस से न्यायालय तक पहुंचने से चूक जाते हैं।

कानून और चुनौतियां
भारत में दहेज के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम, 1961 लागू है, जिसके तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध है। इसके बावजूद इस बुराई पर लगाम कसना मुश्किल साबित हो रहा है। कानून के प्रभावी क्रियान्वयन में कई बाधाएं सामने आती हैं, जिनमें मामलों की अपर्याप्त और लापरवाह जांच। धीमी न्यायिक प्रक्रिया, जिससे पीड़ित परिवार हताश हो जाते हैं। सामाजिक जागरूकता की कमी, जिसके चलते दहेज प्रथा को अब भी कई जगहों पर सामान्य परंपरा माना जाता है।

जरूरत है व्यापक पहल की
विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ कानून ही नहीं, बल्कि समाज में जागरूकता और मानसिकता में बदलाव जरूरी है। शिक्षा, सशक्तिकरण और कठोर कार्रवाई से ही दहेज प्रथा पर काबू पाया जा सकता है। अन्यथा हर साल हजारों मासूम महिलाएं इस अमानवीय प्रथा की भेंट चढ़ती रहेंगी।

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