
पुलिस पड़ताल में सामने आया पॉवर ऑफ अर्टानी का खेल….
अखिलेश दुबे की मुसीबतों का आगमन
- मृतकों के मुख्तारनामा को इस्तेमाल करने से परहेज नहीं था
- हाईकोर्ट में पोल खुलने पर उल्टे पैर भागे थे सिंडिकेट के गुर्गे
- स्टे आर्डर के बावजूद गेस्टहाउस व केनरी लंदन शोरूम बनाया
- हथियारों से धमकाकर लीजधारकों से खाली कराया था कैंपस
भास्कर ब्यूरो
कानपुर। धोखाधड़ी, फर्जी दस्तावेज और गुंडई के सहारे ग्रीनपार्क के करीब करोड़ों की जमीन कौड़ियों के भाव कब्जाने का मामला साकेत दरबार के लिए गले की फांस बनेगा। पड़ताल में हथियारों के बूते लीजधारकों से जबरन औने-पौने दामों पर पॉवर ऑफ अर्टानी (मुख्तारनामा) हासिल करने के बाद कैंपस से भगाने के तमाम साक्ष्य हासिल हुए हैं। तफ्तीश में मालूम हुआ है कि, अदालत की तौहीन करते हुए स्थगनादेश के बावजूद विवादित परिसर में निर्माण कराया गया। साथ ही मृतकों के मुख्तारनामा के जरिए खरीद-फरोख्त करने से साकेत दरबार के सदस्यों ने परहेज नहीं किया। पुलिस जल्द ही विवादित जमीन के मुकदमे में धाराओं को बढ़ाकर गिरफ्तारी का प्रयास करेगी। गौरतलब है कि, सिविल लाइन्स में आगमन गेस्ट हाउस वाली विवादित जमीन के मुकदमे में अखिलेश दुबे समेत उनका छोटा भाई सर्वेश और भतीजी सौम्या समेत आठ लोग अभियुक्त हैं। एफआईआर में एक इंस्पेक्टर का नाम भी शामिल है।
किरायेदारों से जबरन हथियाई पॉवर ऑफ अर्टानी
यूं तो फिलवक्त जमीन की मिल्कियत को लेकर विवाद है। प्रशासन के मुताबिक, विवादत भूखंड शत्रु-संपत्ति है, जबकि कानपुर के नवाब मंसूर अली मालिक से वर्ष 1892 में खरीद-फरोख्त करने वाले फखरुद्दीन हैदर के वंशजों के मुताबिक वक्फ संपत्ति है। बहरहाल, वर्ष 2000 के करीब अखिलेश दुबे सिंडिकेट की निगाह बेशकीमती जमीन के इतिहास पर गई तो साकेत धाम के शिकारियों को मुस्तैद कर दिया गया। सिंडिकेट को मालूम हुआ कि, उक्त जमीन के 90 साल के पट्टे की अवधि वर्ष 2000 में समाप्त होने के बावजूद लीजधारकों के वंशज जबरन काबिज थे। कब्जाधारकों की इसी कमी का फायदा उठाते हुए वर्ष 2001 में राजकुमार शुक्ला नामक चेहरे को आगे किया गया और साम-दाम-दंभ-भेद के जरिए छह किरायेदारों से पॉवर ऑफ अर्टानी को हथिया लिया गया। बाद में उन्हें यहां से खदेड़ दिया गया।
हाईकोर्ट में बोला झूठ, फिर उल्टे पैर भागे
अखिलेश दुबे सिंडिकेट के काबिज होने के बाद वक्फ के मुतवल्ली ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो साकेत दरबार के कारीगर राजकुमार शुक्ला ने हकीकत के उलट दावा किया कि, कैंपस में सभी छह किरायेदारों के परिवार काबिज हैं। सिंडिकेट ने कोर्ट में गुजारिश दर्ज कराई कि, किसी भी किरायेदार से परिसर खाली नहीं कराया जाए। ऐसे में अदालत ने वर्ष 2002 में यथास्थिति का आदेश पारित कर दिया। स्टे आर्डर के बावजूद, राजकुमार शुक्ला ने 29-07-2009 में खरीद-फरोख्त से परहेज नहीं किया। जानकारी होने पर मुतवल्ली ने दोबारा वर्ष 2012 में हाईकोर्ट में गुहार लगाई। जिरह के दरमियान, जैसे ही मालूम हुआ कि, मुख्तारनामा देने वाली प्रभावती की मौत के बाद भी पॉवर ऑफ अर्टानी का इस्तेमाल किया गया तो सिंडिकेट तुरंत अदालत से उल्टे पैर भाग निकला।
मौत के दो साल बाद मुख्तारनामा का इस्तेमाल
कानूनन, मुख्तारनामा जारी करने वाले व्यक्ति की मौत के तुरंत बाद मुख्तारनामा (पॉवर ऑफ अर्टानी) स्वतःशून्य हो जाती है। वर्ष 2010 में प्रभावती की मृत्यु के दो बरस बाद राजकुमार शुक्ला ने मुख्तारनामा के जरिए अखिलेश दुबे, सर्वेश दुबे, सौम्या दुबे, जयप्रकाश दुबे के साथ विवादित परिसर की खरीद-फरोख्त से परहेज नहीं किया। अदालत में इसी तथ्य के प्रकाश में सिंडिकेट कुछ दिन शांत रहा, लेकिन वर्ष 2015 में एक अन्य लीजधारक मुन्नीदेवी की मौत के बाद उनके मुख्तारनामा के जरिए वर्ष 2016 में जयप्रकाश दुबे के पक्ष में किया गया पट्टा निरस्त करने के दो दिन बाद सर्वेश दुबे के पक्ष में नया पट्टा-विलेख रजिस्टर्ड करा दिया गया।
कोट्स…
- ऑपरेशन महाकाल में कई भूमाफियाओं के खिलाफ शिकायत आई हैं। शिकायतों के परीक्षण के आधार पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
आशुतोष कुमार, ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर - विवादित संपत्ति की गैरकानूनी लिखापढ़ी को लेकर तमाम साक्ष्य हासिल हुए हैं। जल्द ही विवेचना के आधार पर मुकदमे में धाराएं बढ़ाई जाएंगी।
एस.के.सिंह, डीसीपी सेंट्रल