
- विभाग में मची हड़कंप, मुख्य अभियंता ने तलब की ठेकेदारों की फाइल
- विद्युत निगम में लंबे समय से कार्य कर रही चार फर्मों के प्रपत्र मिले फर्जी
बस्ती। विद्युत निगम में ठेकेदारों के फर्जी दस्तावेज लगाकर टेंडर लेने का मामला तूल पकड़ लिया है। माध्यमिक कार्य मंडल के एसई कार्यालय से लेकर एक्सईएन कार्यालय तक हड़कंप की स्थिति है। मुख्य अभियंता विजय कुमार गुप्ता ने टेंडर से जुड़ी पत्रावलियों को तलब किया है। चर्चा यह भी हैं कि जांच आगे बढ़ी तो विद्युत निर्माण कार्यों के पुराने टेंडर में फर्जी दस्तावेज का कई राजफाश अभी और उजागर हो सकता है।
दो महीने पहले जांच में जिन चार फर्मों के हैसियत, चरित्र, बैलेंस सीट आदि प्रपत्रों के कूटरचित होने की पुष्टि हुई हैं उनके नाम लंबे समय से निविदा आवंटित की जा रही है। अभी तो केवल जांच के बाद आवंटित वह निविदा ही निरस्त हुई है जिन पर कार्य नहीं शुरू किया गया था। पुराने निविदा के अधिकांश कार्य हो चुके हैं। विभागीय सांठगांठ से इन कार्यों के भुगतान की भी तैयारी चल रही है। इसीलिए फर्जी दस्तावेज की पुष्टि होने के बाद भी मामले को दबाया गया था।
जानकार बता रहे हैं कि अब यदि जांच आगे बढ़ी तो इसके पहले के निविदा में इस तरह के खेल उजागर हो सकते हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो टेंडर आवंटित होने से पहले आवेदक फर्मों के प्रपत्रों की जांच नहीं की जाती है।
सूत्र बताते हैं कि निविदा आवंटन का निर्धारण पहले से ही तय रहता है। कार्य स्वीकृति होने के बाद के बाद ठेकेदार विभागीय सांठगाठ से केवल कागजी प्रक्रिया पूरी कराते हैं। इस खेल में जिम्मेदारों को बाकायदे खुश भी किया जाता है। सूत्रों की मानें तो टेंडर आवंटित कराने में तीन से पांच प्रतिशत का खुला खेल है। इसी वजह से जिम्मेदार प्रपत्रों का सत्यापन नहीं कराते हैं। अब जबकि फर्जी प्रपत्र पर टेंडर दिए जाने का मामला सामने आ चुका हैं तो जिम्मेदार खुद कार्रवाई से बचने की जुगत तलाश रहे हैं। बताते हैं कि दो महीने पहले मामला उजागर होने पर तत्कालीन एसई ने तीन साल से निविदा पटल का जिम्मा संभालने वाले बाबू का स्थानांतरण भी कर दिया था।
लेकिन, बाद में मामला सुलझ गया तो यह आदेश उन्होंने वापस ले लिया। संबंधित एसई का बाद में एक सेवानिवृत्त पीसीएस अफसर से फोन पर अमर्यादित लहजे में बात करते हुए आडियो क्लिप भी वायरल हुआ। जिसका संज्ञान लेकर प्रबंध निदेशक ने उन्हें पिछले दिनों निलंबित भी कर दिया था।
सामान्य जांच में ही पता चल जाता है असलियत
जिन फर्मों के हैसियत प्रमाण फर्जी पाए गए हैं उसकी सामान्य प्रक्रिया से ही जांच करके असलियत का पता लगाया जा सकता है। ऑनलाइन आवेदन संख्या से यह पता चल जाता है कि हैसियत असली है या नकली। लेकिन, निगम के जिम्मेदारों ने टेंडर आवंटित करने से पहले यह प्रक्रिया नहीं अपनाई। ठेकेदारों ने हैसियत प्रमाण पत्र या तो एकदम फर्जी लगाया या फिर उसमें कूटरचना करके उसकी कीमत 35 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ 35 लाख कर दी है। अंदेशा हैं कि इसके पहले हुए निविदा में भी इसी तरह के खेल हुए होंगे।
मुख्य अभियंता, विजय कुमार गुप्ता ने कहा कि प्रकरण संज्ञान में है। निविदा से संबंधित पत्रावलियों की छानबीन कराई जा रही है। निविदा आवंटन में जिस भी जिम्मेदार की भूमिका संदिग्ध पाई जाएगी उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। वैसे कूटरचित दस्तावेज पर आवंटित निविदा निरस्त कर दी गई है। अन्य बिंदुओं पर भी जांच कराई जाएगी।
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