
लखनऊ : केजीएमयू में दुर्घटना का शिकार एक ऐसा मासूम मरीज आया जिसके सिर और कंधे से छड़ आर-पार हो गई थी लेकिन ट्रामा की न्यूरोसर्जरी टीम ने असंभव को संभव कर दिखाया।
गोमतीनगर निवासी तीन वर्षीय बालक कार्तिक के साथ हुई भयावह दुर्घटना में उसके सिर और कंधे में लगभग 20 फीट ऊंचाई से गिरने के बाद रेलिंग की लोहे की छड़ आर-पार घुस गई। परिजन पहले उसे एक निजी अस्पताल ले गए, जहां ऑपरेशन का खर्च 15 लाख रुपये से अधिक बताया गया। असहाय एवं निराश परिवार रात लगभग 11:45 बजे बच्चे को लोहे की ग्रिल के साथ ही किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचा।

मरीज़ की गंभीर स्थिति को देखते हुए सबसे पहले उसे स्टेबिलाइज़ किया गया। इस सर्जरी के दौरान कई गंभीर चुनौतियां सामने आईं। पहली चुनौती थी सिर में धंसी हुई ग्रिल को काटना। इसके लिए रात्रि में ही विशेषज्ञों को बुलाया गया, किन्तु छड़ के सिर के अत्यंत समीप होने के कारण प्रयास विफल रहा। दूसरी चुनौती ग्रिल के कारण पुनः सीटी स्कैन संभव नहीं हो पा रहा था। तीसरी चुनौती थी ऑपरेशन टेबल पर बच्चे को लिटाना, क्योंकि छड़ सिर के एक ओर से दूसरी ओर आर-पार घुसी हुई थी।
इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद केजीएमयू की न्यूरोसर्जरी टीम ने साहसिक निर्णय लेते हुए सफल ऑपरेशन किया। न्यूरोसर्जरी के विभाग अध्यक्ष डॉ बीके ओझा की देख रेख में सर्जरी का नेतृत्व डॉ. अंकुर बजाज ने किया। ऑपरेशन में डॉ. सौरभ रैना, डॉ. जेसन और डॉ. बसु की सक्रिय भूमिका रही। ऑपरेशन के दौरान एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. कुशवाहा एवं डॉ. मयंक सचान की टीम तथा ट्रॉमा सर्जरी विभाग की डॉ. अनीता ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
लगभग साढ़े तीन घंटे चली इस जटिल शल्यक्रिया के बाद डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई और लोहे की छड़ को सफलतापूर्वक बच्चे के सिर एवं कंधे से निकाल दिया गया। फिलहाल मरीज़ की स्थिति में सुधार है, वाइटल्स स्थिर हैं और वह बाल रोग विभाग के आईसीयू में वेंटिलेटर पर डॉ. संजीव वर्मा की टीम की देखरेख में है। भावुक परिजनों ने उपचार कर रही टीम को भगवान का स्वरूप बताया और केजीएमयू को मंदिर की संज्ञा दी।
यह सर्जरी कुलपति पद्मश्री सोनिया नित्यानंद के पर्यवेक्षण में सम्पन्न हुई। ऑपरेशन पूर्ण होने के उपरांत उन्होंने संपूर्ण शल्य चिकित्सा टीम की सराहना करते हुए इसे केजीएमयू की उत्कृष्ट चिकित्सा क्षमता का उदाहरण बताया।
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