दिल्ली : कूड़े से आज़ादी की ओर बड़ा कदम ,महापौर निवास पर लगा अत्याधुनिक एरोबिन कंपोस्टर

नई दिल्ली : भविष्य में दिल्ली की स्वच्छता में चार चांद लगाने वाली दिल्ली नगर निगम की नई कंपोस्टर मशीन यानी एरोबिन, आगे चलकर दिल्ली के लिए मील का पत्थर साबित होगी। उपरोक्त बातें दिल्ली के प्रथम नागरिक, महापौर सरदार राजा इकबाल सिंह ने उद्घाटन के अवसर पर कहीं।

दिल्ली नगर निगम के सिविल लाइंस क्षेत्र में महापौर द्वारा स्वच्छता की इस अभिनव पहल का लोगों ने जोरदार स्वागत किया। महापौर सरदार राजा इकबाल सिंह ने दिल्ली को कूड़े से आज़ादी अभियान के अंतर्गत आज महापौर निवास पर एक कंपोस्टर मशीन एरोबिन लगवाकर स्वच्छता अभियान में एक सार्थक पहल की है।

यह एरोबिन आधुनिक तकनीक से युक्त है, जिसमें महापौर आवास में रोज़ाना उत्पन्न होने वाला समस्त गीला कचरा वैज्ञानिक तरीके से प्रोसेस किया जाएगा। इससे बनने वाली खाद कंपोस्ट का उपयोग यहाँ के उद्यान एवं अन्य पेड़-पौधों में किया जाएगा। इस एरोबिन से कोई दुर्गंध उत्पन्न नहीं होती है। इसके लगने के बाद महापौर निवास पूर्ण रूप से गीले कचरे से मुक्त हो गया है।

दिल्ली में आईपीसीए व मदरसन कंपनी के संयुक्त तत्वावधान में इस प्रकार के एरोबिन लगाने का प्रावधान किया गया है। इसी के तहत कंपनी अन्य प्रमुख कॉलोनियों, बल्क वेस्ट जनरेटर, मार्केट परिसरों, आवासीय सोसाइटियों आदि में इनकी स्थापना करेगी।

दिल्ली में कचरा प्रबंधन, कचरा पृथक्करण एवं उसका निस्तारण लगातार एक चुनौती बना हुआ है। इस क्षेत्र में दिल्ली सरकार व नगर निगम द्वारा सार्थक व आशाजनक परिणाम देने वाले कार्यक्रम लगातार किए जा रहे हैं। निरंतर जनभागीदारी और जनजागरूकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। सभी सरकारी एजेंसियां अच्छे समन्वय के साथ कार्य कर रही हैं। यह गंभीर प्रयास जल्दी ही दिल्ली की स्वच्छता रैंकिंग को संतोषजनक स्थान दिला सकते हैं।

सिविल लाइंस क्षेत्र द्वारा महापौर निवास पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें क्षेत्रीय उपायुक्त अंशुल सिरोही ने फीता काटकर इस कंपोस्टर मशीन एरोबिन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर डॉ. आशीष जैन ने बताया कि 400 लीटर क्षमता का यह बिन रोजाना 8 से 12 किलोग्राम कचरा प्रोसेस करता है, और कम्पोस्ट बनने में 40 से 45 दिन का समय लगता है। यह एक अच्छी गुणवत्ता वाली कंपोस्ट होती है। साथ ही, बिन के निचले हिस्से में लगे पाइप से निकलने वाला लीचेट तरल पदार्थ एक लीटर लीचेट को 20 लीटर पानी में मिलाकर गमलों और पेड़-पौधों में खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

इसमें कोई भी कचरा शेष नहीं बचता और कुल मात्रा का प्रयोग हो जाता है। इसकी प्रोसेसिंग में कचरे को निरंतर ऑक्सीजन मिलती रहती है। इस प्रक्रिया में हानिकारक मीथेन गैस का उत्सर्जन नहीं होता, जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता।

उपायुक्त अंशुल सिरोही ने सभी से अपील की कि इस तकनीक का उपयोग कर गीले कचरे के प्रबंधन में “ज़ीरो वेस्ट” लक्ष्य प्राप्त करने हेतु अधिक से अधिक एरोबिन लगवाने के लिए लोगों को प्रेरित करें।

इस कार्यक्रम में सहायक आयुक्त अभिषेक भुकल, स्वच्छता अधीक्षक नीरज कांत पाठक, डीएचओ डॉ. संदीप साल्वे, शिक्षा विभाग से शिवपाल सिंह चौहान, सभी मलेरिया इंस्पेक्टर और बड़ी संख्या में स्वच्छता कर्मचारी उपस्थित रहे।

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