भूस्खलन से लेकर बादल फटने तक…क्या कमजोर पड़ रहा है उत्तराखंड का पर्यटन तंत्र?

उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के रूप में जाना जाता है, अपनी हिमाच्छादित चोटियों, पवित्र तीर्थ स्थलों, और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। चारधाम यात्रा, साहसिक पर्यटन, और शांत हिल स्टेशनों के कारण यह राज्य हर साल लाखों पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। हालांकि, हाल के वर्षों में बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूस्खलन, और बादल फटने की घटनाएं उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग पर गहरा प्रभाव डाल रही हैं।

वहीं यदि हम बात करें 2025 की तो, उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल में आई हालिया आपदा इसका ताजा उदाहरण है, जहां सड़कों का ध्वस्त होना, लोगों का फंसना, और रेस्क्यू ऑपरेशन की चुनौतियों ने पर्यटन पर नए सवाल खड़े किए हैं। वहीं अब हम उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं के इतिहास पर थोड़ा नजर डालेंगे, उत्तराखंड हिमालयी क्षेत्र में बसा है, जो भौगोलिक रूप से अत्यंत संवेदनशील है। भारी बारिश, भूस्खलन, बादल फटना, और ग्लेशियर टूटने की घटनाएं यहां आम हैं।

2013 की केदारनाथ त्रासदी, जिसमें 5,000 से अधिक लोग मारे गए थे, उत्तराखंड के इतिहास में सबसे भयावह आपदाओं में से एक थी। इसके बाद 2021 में चमोली में ग्लेशियर टूटने और 2025 में धराली-हर्षिल में आई बाढ़ ने इस क्षेत्र की नाजुकता को फिर से उजागर किया। इन आपदाओं ने न केवल जन-धन की हानि की, बल्कि उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया।

वहीं देखा जाए तो इन आपदाओं से पर्यटन पर गहरा असर पड़ा है –

  1. पर्यटकों की संख्या में कमी
    प्राकृतिक आपदाओं के बाद पर्यटकों में डर और अनिश्चितता का माहौल बन जाता है। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड में पर्यटकों की संख्या में 85% तक की गिरावट दर्ज की गई थी। नैनीताल, मसूरी, और औली जैसे लोकप्रिय स्थल, जो आपदा से सीधे प्रभावित नहीं थे, वहां भी पर्यटकों की संख्या 70-75% कम हो गई थी। हाल की धराली आपदा के बाद गंगोत्री, हर्षिल, और अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही पर असर पड़ना तय है। सड़कों के ध्वस्त होने और रेस्क्यू ऑपरेशन की खबरें पर्यटकों को अपनी योजनाएं रद्द करने या स्थगित करने के लिए मजबूर कर रही हैं।
  2. आर्थिक नुकसान
    उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान 25-30% है। 2024 में चारधाम यात्रा और पर्यटन से राज्य को लगभग 30,000 करोड़ रुपये की आय हुई थी। आपदाओं के कारण होटल, होमस्टे, ट्रांसपोर्ट, और स्थानीय हस्तशिल्प जैसे व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित होते हैं। धराली में हाल की बाढ़ ने कई होटल, रेस्तरां, और होमस्टे को नष्ट कर दिया, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका पर संकट आ गया। पर्यटन सीजन, जो अप्रैल से अक्टूबर तक चलता है, स्थानीय कारोबारियों के लिए साल भर की आय का मुख्य स्रोत है। आपदा के कारण यह सीजन छोटा हो जाता है, जिससे आर्थिक संकट गहरा जाता है।
  3. बुनियादी ढांचे का विनाश
    आपदाओं के कारण सड़कें, पुल, और संचार सुविधाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे पर्यटक स्थलों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। धराली और हर्षिल में हाल की आपदा में भटवाड़ी से लेकर गंगोत्री तक कई सड़कें ध्वस्त हो गईं। रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए हेलीकॉप्टरों का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि सड़क मार्ग पूरी तरह अवरुद्ध थे। हरिद्वार-देहरादून रेल मार्ग भी मलबे के कारण प्रभावित हुआ। इस तरह की घटनाएं पर्यटकों का विश्वास कम करती हैं और भविष्य में उनकी यात्रा योजनाओं को प्रभावित करती हैं।
  4. तीर्थाटन पर प्रभाव
    उत्तराखंड में चारधाम यात्रा (केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) और अन्य धार्मिक स्थल जैसे हरिद्वार और ऋषिकेश लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। 2025 में चारधाम यात्रा में 41 लाख से अधिक तीर्थयात्री शामिल हुए। लेकिन आपदाओं के कारण तीर्थ स्थलों तक पहुंच मार्ग बाधित हो जाते हैं, जिससे श्रद्धालु अपनी यात्रा टाल देते हैं। गंगोत्री जैसे क्षेत्रों में फंसे पर्यटकों की खबरें तीर्थयात्रियों में डर पैदा करती हैं, जिससे तीर्थाटन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।
  5. साहसिक पर्यटन पर असर
    उत्तराखंड ट्रेकिंग, राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग, और स्कीइंग जैसे साहसिक खेलों के लिए भी प्रसिद्ध है। लेकिन आपदाओं के कारण ट्रेकिंग रूट्स और साहसिक गतिविधियों के लिए जरूरी बुनियादी ढांचा नष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, हर्षिल और गंगोत्री के आसपास के ट्रेकिंग रास्ते भूस्खलन से प्रभावित हुए हैं। इससे साहसिक पर्यटकों की संख्या में कमी आती है।
    आपदाओं के कारण

दरअसल बढ़ता तापमान और अनियमित बारिश अपने आप मे एक गंभीर समस्या है जो हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं को बढ़ावा दे रही है। ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और बादल फटने की घटनाएं जलवायु परिवर्तन का परिणाम हैं। साथ ही चारधाम सड़क परियोजना और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स के लिए बड़े पैमाने पर पहाड़ों की कटाई ने भूस्खलन और बाढ़ की संभावनाओं को बढ़ा दिया है। अनियोजित होटल और रिसॉर्ट निर्माण ने भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है।

वहीं जंगलों की कटाई, नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में बदलाव, और खनन ने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ा है। टिहरी बांध जैसे प्रोजेक्ट्स ने नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित किया है। केदारनाथ त्रासदी के बाद भी उत्तराखंड में प्रभावी अर्ली वार्निंग सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया है। इससे आपदाओं का पूर्वानुमान और बचाव कार्यों में देरी होती है।


उत्तराखंड के पर्यटन को आपदाओं के प्रभाव से बचाने और इसे पुनर्जनन की दिशा में ले जाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं: –

इको-टूरिज्म को बढ़ावा

पर्यटन को पर्यावरण-संवेदनशील बनाना जरूरी है। सीमित और नियंत्रित पर्यटन गतिविधियां पारिस्थितिक संतुलन बनाए रख सकती हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री के आसपास के बुग्याल, देव-वन, और गुफाओं को इको-टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा सकता है।
स्थानीय समुदायों को इको-टूरिज्म में शामिल कर उनकी आजीविका को बढ़ावा दिया जा सकता है।

अर्ली वार्निंग सिस्टम का विकास

ओडिशा और कर्नाटक जैसे राज्यों के मॉडल को अपनाकर प्रभावी अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित करना चाहिए। सैटेलाइट फोन, ड्रोन, और मौसम पूर्वानुमान तकनीकों का उपयोग बढ़ाया जाए।
धराली जैसे क्षेत्रों में सैटेलाइट संचार की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।

सतत विकास

सड़क और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से पहले भू-जलविज्ञान और पर्यावरणीय प्रभाव का गहन अध्ययन किया जाए। हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स और सड़क निर्माण में पारिस्थितिक संतुलन को प्राथमिकता दी जाए। स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट पर्यटन स्थल विकसित किए जाएं, जो आपदा प्रतिरोधी हों।

बचाव और राहत कार्यों में सुधार

एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, और सेना के लिए स्थायी हेलीपैड और आपदा प्रबंधन केंद्र स्थापित किए जाएं। स्थानीय लोगों को आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण देकर रेस्क्यू ऑपरेशन में उनकी भागीदारी बढ़ाई जाए।
धराली जैसे क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर सेवाओं को स्थायी रूप से मजबूत किया जाए।

धराली आपदा
2025 में उत्तरकाशी के धराली और हर्षिल में आई बाढ़ ने पर्यटन पर गहरा प्रभाव डाला। सड़कों के ध्वस्त होने और संचार व्यवस्था के बाधित होने से सैकड़ों पर्यटक फंस गए। रेस्क्यू ऑपरेशन में सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, और आईटीबीपी ने हेलीकॉप्टरों के जरिए 190 लोगों और 44 पर्यटकों को सुरक्षित निकाला। लेकिन इस आपदा ने गंगोत्री जैसे तीर्थ स्थल की यात्रा पर सवाल उठाए। पर्यटकों में डर और स्थानीय कारोबारियों में आर्थिक अनिश्चितता बढ़ी है। उत्तराखंड का पर्यटन उद्योग आपदाओं के बावजूद अपने आकर्षण को बनाए रख सकता है, बशर्ते सरकार, स्थानीय समुदाय, और पर्यटन उद्योग मिलकर काम करें।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें

तारा – वीर ने सोशल मीडिया पर लुटाया प्यार थाईलैंड – कंबोडिया सीमा विवाद फिर भडका तेजस्वी के खिलाफ बोल रहे थे विजय सिन्हा, तभी दे दिया जवाब ‘मारो मुझे मारो… दम है तो मारो लाठी…’ पेट्रोल पंप पर महिला का हाई वोल्टेज ड्रामा, वीडियो वायरल