झांसी: 49 साल पुराने मुकदमे में बुजुर्ग ने कबूला जुर्म, अदालत ने दी रिहाई

झांसी : साहब, अब शरीर साथ नहीं दे रहा है, न ताकत बची है। मैं जुर्म स्वीकार करता हूं। 75 साल के अभियुक्त ने ये शब्द तब कहे जब 49 साल पहले 150 रुपए की चोरी के मामले में अदालत ने फैसला सुनाया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 1976 में हुई इस चोरी के मामले में अभियुक्त को जेल में बिताई गई अवधि व 900 रुपये के जुर्माने से दंडित किया। हालांकि, इस मामले में अभियुक्त के दो साथियों की पहले ही मृत्यु हो चुकी है।

मालूम हो कि टहरौली थाना क्षेत्र के ग्राम बमनुआ में एलएसएस सहकारी समिति है। इस समिति में 1976 में बिहारीलाल गौतम सचिव के पद पर तैनात थे। उन्होंने 27 मार्च 1976 को टहरौली थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि समिति से एक घड़ी और कुछ रसीदें चोरी हो गई हैं, जिनकी कीमत 150 रुपए आंकी गई थी।

जांच के दौरान बड़ा घोटाला सामने आया। आरोप था कि समिति में तैनात तीन कर्मचारियों कन्हैयालाल, लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ ने रसीद बुक पर फर्जी हस्ताक्षर कर 14,472 रुपए की अवैध वसूली की थी। इनमें से लक्ष्मी प्रसाद ने 3,887.40 रुपए की फर्जी रसीद काटकर गबन किया था।

पुलिस ने कन्हैयालाल, लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 457, 380, 409, 467, 468 और 120-बी के तहत मुकदमा दर्ज किया था। समय के साथ सहआरोपी लक्ष्मी प्रसाद और रघुनाथ की मौत हो गई, लेकिन कन्हैयालाल मुकदमे का सामना करता रहा।

गिरफ्तारी के बाद कुछ समय तक कन्हैयालाल जेल में रहा और फिर उसकी जमानत हो गई। विवेचक ने 19 सितंबर 1984 को अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।

करीब 75 वर्ष की उम्र तक पहुंच चुके कन्हैयालाल ने मुकदमे की एक भी तारीख नहीं छोड़ी। स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद वह हर पेशी पर ट्रॉली से यात्रा कर अदालत पहुंचता रहा। 23 सितंबर 2023 को अदालत ने उस पर आरोप तय किए, लेकिन फैसला आने में तीन साल और लग गए।

2 अगस्त 2025 को वह थके-हारे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश हुआ और कहा, अब न शरीर साथ दे रहा है, न ताकत बची है। मैं जुर्म स्वीकार करता हूं, कृपया इस मामले को अब खत्म कर दें।

अदालत ने आरोपी की उम्र और परिस्थितियों को देखते हुए नरमी बरती और जेल में बिताई अवधि को ही सजा मानते हुए रिहा कर दिया। हालांकि, अदालत ने उस पर 900 रुपए का जुर्माना भी लगाया है।

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