
हिमाचल : कारगिल युद्ध के नायक और परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार मेजर संजय कुमार आज भी वही जुनून और समर्पण लिए देश सेवा में जुटे हैं, जैसा 26 साल पहले मश्कोह घाटी की दुर्गम पहाड़ियों पर था। ऑपरेशन विजय के दौरान प्वाइंट 4875 पर दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले इस जांबाज का कहना है कि आज भारतीय सेना पहले से कहीं अधिक सशक्त और सुसज्जित है।
पुणे स्थित नेशनल डिफेंस अकादमी में युवा कैडेट्स को देशभक्ति और अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे संजय कुमार फरवरी 2026 में सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। खास बातचीत में उन्होंने अपने अनुभव और विचार साझा किए। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के मुख्य अंश:
26 साल बाद आप भारतीय सेना को किस रूप में देखते हैं?
संजय कुमार कहते हैं, “कारगिल के समय हमारे पास सिर्फ जोश और जज्बा था, संसाधन सीमित थे। आज हमारे पास अत्याधुनिक हथियार, संचार साधन और रणनीतिक क्षमताएं हैं। अब हमें दुश्मन पर कैसे हमला करना है, ये सोचने की ज़रूरत नहीं, हमारे पास हर जवाब तैयार है।”
अगर फिर कारगिल जैसी स्थिति बनी तो क्या भारत फिर वैसी ही विजय दोहरा पाएगा?
“बिलकुल, बल्कि पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली तरीके से। आज अगर कारगिल जैसी स्थिति बने तो पाकिस्तान को मिनटों में घुटनों पर लाया जा सकता है। पुलवामा हमले के बाद हमारी सेना ने 10 दिन के भीतर जो जवाबी कार्रवाई की, वह इसकी मिसाल है।”
सेवानिवृत्ति के बाद क्या योजना है?
“एक सैनिक कभी रिटायर नहीं होता। मैं समाज सेवा, विशेषकर युवाओं को प्रेरित करने के काम में लगा रहूंगा। एक्स-सर्विसमेन समाज के लिए एक नई तरह की सेवा करते हैं – जागरूकता फैलाना, समस्याओं को उठाना और देशभक्ति को जनमानस तक पहुंचाना।”
युवाओं के लिए आपका संदेश?
“देश का भविष्य युवाओं के हाथ में है। उन्हें अनुशासन, समर्पण और देशप्रेम के साथ जीना सिखाना होगा। मैं नेशनल डिफेंस अकादमी में युवाओं को यही सिखा रहा हूं – देश से बड़ा कुछ नहीं।”

कारगिल युद्ध का सबसे यादगार पल कौन सा रहा?
“4 जुलाई 1999 – वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे अहम दिन था। प्वाइंट 4875 पर जब यूनिट आगे नहीं बढ़ पा रही थी, तो मैंने खुद मोर्चा संभाला। तीन घुसपैठियों को ढेर किया, खुद भी घायल हुआ लेकिन पीछे नहीं हटा। दुश्मन की मशीन गन छीनकर पलटवार किया। वो सिर्फ एक लड़ाई नहीं थी, देश के लिए मर-मिटने का संकल्प था।”
परिवार से जुड़ी कुछ बातें साझा करें?
“माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे हैं। बेटा बीटेक कर चुका है, बेटी क्रिमिनोलॉजी में एमए करेगी। जब मैं जंग लड़ रहा था, तो मन में सिर्फ देश नहीं, अपने परिवार की छवि भी थी। वही मुझे ताकत देता है।”
क्या कभी उस दिन का अफसोस हुआ जब आप घायल हुए?
“बिलकुल नहीं, वो मेरे जीवन का गौरवशाली दिन था। उस दिन मैंने न केवल दुश्मन को, बल्कि अपने डर को भी हराया। मेरे शरीर से बहा खून देश की मिट्टी के काम आया – इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है।
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