
मेघालय मेंHIV के मामलों में हो रही तेज़ी को देखते हुए राज्य सरकार कड़े कदम उठाने का मन बना रही है। स्वास्थ्य मंत्री अम्प्रीन लिंगदोह ने संकेत दिया है कि शादी से पहले HIV टेस्ट को अनिवार्य किया जा सकता है। पूर्वी खासी हिल्स में मामलों की संख्या दोगुनी हो गई है और इलाज करा रहे मरीजों की संख्या कम होने से सरकार की चिंता बढ़ गई है।
शिलांग: मेघालय में एचआईवी संक्रमण की बढ़ती चिंताओं के बीच सरकार ने सख्त उपायों का संकेत दिया है। गुरुवार को स्वास्थ्य मंत्री अम्प्रीन लिंगदोह ने कहा कि राज्य में शादी से पहले एचआईवी टेस्ट अनिवार्य करने का प्रस्ताव है। इस बात की जानकारी उन्होंने उप मुख्यमंत्री प्रेस्टोन तिनसोंग और पूर्वी खासी हिल्स के आठ विधायकों के साथ हुई बैठक में दी। बैठक में एचआईवी की बढ़ती घटनाओं को लेकर गहरी चिंता जताई गई।
लिंगदोह ने कहा कि हालात बहुत ही भयावह हैं और मेघालय को इस समस्या से सख्ती से निपटना होगा। उल्लेखनीय है कि पूर्वी खासी हिल्स में एचआईवी के मामले दोगुने होकर 3,432 हो गए हैं, लेकिन केवल 1,581 मरीज ही इसका इलाज करा रहे हैं। वहीं, 681 मरीज फॉलो-अप के लिए नहीं आ रहे हैं, जो इलाज व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है।
सरकार अब एचआईवी जांच को बढ़ावा देने और एंटीरेट्रोवाइरल उपचार तक पहुंच आसान बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस संदर्भ में वे कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेकर नई नीतियों का निर्माण भी करेंगी। लिंगदोह ने कहा कि सरकार इस समस्या को गंभीरता से ले रही है और इसे नियंत्रित करने के लिए हर संभव कदम उठाने को तैयार है।
उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान आंकड़े बहुत ही चिंताजनक हैं और यह समय है कि मेघालय इस संक्रमण को जड़ से समाप्त करने के लिए कदम उठाए।
मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस समय चर्चा केवल पूर्वी खासी हिल्स तक सीमित नहीं है, बल्कि पश्चिम और जयंतिया हिल्स में भी मामले बहुत अधिक हैं। वायरस अब कोई खतरा नहीं बल्कि एक पूर्ण संकट बन चुका है। यह संकेत करता है कि समस्या पूरे राज्य में फैल रही है। सरकार ने कहा है कि वे आंकड़े क्षेत्रवार सार्वजनिक नहीं करेंगे ताकि भय न फैल सके। बावजूद इसके, लिंगदोह ने स्वीकार किया कि मेघालय में एचआईवी की स्थिति बहुत गंभीर स्तर पर पहुंच गई है।
लिंगदोह ने कहा कि सरकार शादी से पहले एचआईवी जांच को अनिवार्य बनाने के विचार पर गंभीरता से विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि यदि गोवा ऐसा कर सकता है, तो मेघालय क्यों नहीं। सरकार इस दिशा में कानून बनाने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, गोवा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने भी इस विषय पर बहस की है, लेकिन अभी तक कोई कानूनी कदम नहीं उठाया गया है।
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