कौशल विकास योजना में गड़बड़ी का आरोप, युवक ने सीएम पोर्टल पर की शिकायत

लखीमपुर खीरी : सरकार की महत्वाकांक्षी कौशल विकास योजना के तहत युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य तो है, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट नजर आ रही है। लखीमपुर खीरी के गोला क्षेत्र के जमुनाबाद फॉर्म निवासी निरंकार, पिता सोबरन लाल ने गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई है। निरंकार के अनुसार, वर्ष 2023 में उसने मोहम्मदी रोड स्थित एक निजी संस्थान में प्रवेश लिया था। यह संस्थान कौशल विकास योजना के तहत पंजीकृत बताया गया था और गोला के बायपास रोड, केकेवी हॉस्पिटल के भवन में संचालित हो रहा था।
निरंकार का आरोप है कि आदर्श तिवारी और पवन गुप्ता नामक व्यक्तियों ने उसे यह कहकर प्रेरित किया कि अभी बच्चों की संख्या कम है, अतः निशुल्क एडमिशन हो जाएगा और सरकार की ओर से मोबाइल जैसी सुविधाएं भी मिलेंगी। जब निरंकार ने बताया कि वह जीविकोपार्जन के लिए छुटपुट काम करता है और रोज उपस्थित नहीं रह सकेगा, तो उसे भरोसा दिलाया गया कि उसकी फर्जी फिंगर बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगवा दी जाएगी और उसे कोई परेशानी नहीं होगी। इस झांसे में आकर निरंकार ने एडमिशन लिया और समय-समय पर मीटिंग में उपस्थित भी रहा लेकिन कुछ महीनों बाद जब सरकारी लाभ पाने वाले बच्चों की सूची जारी हुई, तो उसमें निरंकार का नाम नहीं था। पूछने पर संस्थान के जिम्मेदार लोगों ने कहा कि अगली लिस्ट में उसका नाम आ जाएगा। हाल ही में जब नवीनतम सूची आई, तब भी निरंकार का नाम नहीं था। इस बार कारण बताया गया कि उसकी अटेंडेंस कम है, जबकि शुरुआत में यह कहा गया था कि फिंगर स्कैन से उसकी हाजिरी पूरी कर दी जाएगी।
जब निरंकार ने आपत्ति जताई और जवाब मांगा, तो उसके साथ अभद्रता की गई और संस्थान से भगा दिया गया। निरंकार का कहना है कि वहां लगभग 200 से 250 बच्चे पंजीकृत हैं, लेकिन मात्र 40 बच्चों को ही स्मार्टफोन जैसी सुविधाएं वितरित की गईं। शेष बच्चों को अब तक कुछ नहीं मिला है।इतना ही नहीं, प्रशिक्षण पूरा होने के बाद प्रमाणपत्र देने के नाम पर ₹200 की मांग की जा रही है और जिनके पास पैसे नहीं हैं, उनसे कहा जा रहा है कि वे लखनऊ जाकर स्वयं प्रमाणपत्र लें।

इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर पहलू यह है कि योजना का उद्देश्य गरीब व जरूरतमंद युवाओं को लाभ पहुंचाना है, लेकिन लाभ कुछ चुनिंदा लोगों को ही मिला और बाकी को बहला-फुसलाकर सूची से बाहर कर दिया गया। इससे योजनाओं की पारदर्शिता और ईमानदारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

प्रशासन से मांग है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो, संबंधित संस्थान की पंजीकरण वैधता की भी पड़ताल की जाए और जिन बच्चों को लाभ नहीं मिला उन्हें भी समुचित लाभ मिलना सुनिश्चित कराया जाए।

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