जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव: संसद के मानसून सत्र में होगी चर्चा

केंद्र सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रही है। यह प्रस्ताव उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के मामले से जुड़ा है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच समिति ने उन्हें दोषी पाया था।

क्या है मामला

14 मार्च 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास में आग लगने की घटना के बाद वहां से अधजले नोटों की गड्डियां बरामद हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच समिति, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी.एस. संधवालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे, ने इस मामले की जांच की। समिति ने अपनी रिपोर्ट में आरोपों को प्रथम दृष्टया सही पाया और जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की।

जांच के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट भेजी, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई थी। जस्टिस वर्मा ने इन आरोपों को साजिश बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है, लेकिन संसद में महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया तेज हो गई है।

संसद में प्रस्ताव की प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और जजेस इंक्वायरी एक्ट, 1968 के तहत, किसी जज को दुराचार या अक्षमता के आधार पर हटाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन आवश्यक है। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि 100 से अधिक सांसदों, जिसमें कांग्रेस के 40 सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी शामिल हैं, ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।

प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होगा, जिसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से जज को पद से हटाया जा सकता है। केंद्र सरकार विपक्षी दलों के साथ समन्वय कर रही है ताकि इस संवेदनशील मामले में सर्वसम्मति बन सके। कांग्रेस ने भी प्रस्ताव का समर्थन करने की बात कही है, हालांकि कुछ विपक्षी नेताओं, जैसे कपिल सिब्बल, ने इसके खिलाफ रुख अपनाने का संकेत दिया है।

महाभियोग प्रक्रिया में जाने वाले छठे जज है वर्मा

स्वतंत्र भारत में अब तक पांच जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई है, लेकिन किसी को भी इस प्रक्रिया के जरिए हटाया नहीं गया। जस्टिस वी. रामास्वामी (1993) और जस्टिस सौमित्र सेन (2011) के मामले में प्रस्ताव संसद तक पहुंचे, लेकिन दोनों ने क्रमशः वोटिंग से पहले और बाद में इस्तीफा दे दिया। जस्टिस यशवंत वर्मा छठे जज होंगे, जिनके खिलाफ यह प्रक्रिया शुरू हो रही है।

जस्टिस वर्मा का पक्ष

जस्टिस वर्मा ने आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि उनके आवास में नकदी की कोई जानकारी नहीं थी और उनके खिलाफ साजिश रची गई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करने और महाभियोग की सिफारिश रद्द करने की मांग की है।

आगे क्या?

संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 12 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा और मतदान की संभावना है। यदि प्रस्ताव पारित होता है, तो यह भारत में किसी जज को महाभियोग के जरिए हटाने का पहला मामला हो सकता है। हालांकि, जस्टिस वर्मा के इस्तीफे की स्थिति में प्रक्रिया रुक सकती है, जैसा कि पहले के मामलों में हुआ।

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