
लखीमपुर खीरी : सरकारी योजनाओं के नाम पर जारी करोड़ों के बजट का लाभ इस वर्ष भी कुछ चुनींदा फर्मों को ही दिया गया। वित्तीय वर्ष 2025-26 की शुरुआत में ही राज्य वित्त आयोग और 15वें केंद्रीय वित्त आयोग से प्राप्त करीब 4.50 करोड़ रुपये की राशि का वितरण हुआ, लेकिन कार्य आवंटन की सूची में वही पुराने नाम सबसे आगे दिखे।
जांच में सामने आया है कि अधिकांश ठेके गिने-चुने ठेकेदारों को बार-बार दिए गए, जबकि ब्लॉक में दर्जनों पंजीकृत एजेंसियों को न तो सूचना दी गई और न ही निविदा प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता रही।
पूर्व में कई योजनाओं के टेंडर ऐसे अखबारों में प्रकाशित किए गए, जिनका न कोई उल्लेखनीय प्रसार है और न ही जो सूचना विभाग में पंजीकृत हैं। ज़्यादातर स्थानीय एजेंसियों को इसकी सूचना तक नहीं दी गई, जिससे कुछ चहेती फर्मों को ही बार-बार करोड़ों के ठेके मिल पाए। इससे विकास योजनाएं सिर्फ चंद लोगों की कमाई का ज़रिया बन गई हैं।
दो प्रमुख नामों में ही बंटा सारा काम
सबसे अधिक ठेके जिन एजेंसियों को मिले, उनमें नीरज कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर शामिल है। इस फर्म को अकेले 5 अलग-अलग कार्यों में ठेके दिए गए। आवंटन राशि क्रमशः 8.98 लाख, 9.42 लाख, 9.41 लाख, 4.49 लाख और 9.42 लाख रुपये रही। कार्यों में पुलिया निर्माण, पंचायत भवन मरम्मत, खड़ंजा आदि शामिल हैं।
दूसरे नंबर पर लड़ैता देवी एजेंसी शामिल है। इसे भी लगातार 4 बार कार्य दिए गए, जिनमें 9.01 लाख, 9.39 लाख, 9.42 लाख और 7.94 लाख रुपये की राशि शामिल है। कार्यों में खड़ंजा निर्माण, पुलिया निर्माण जैसे कार्य दिखाए गए हैं।
क्षेत्र निधि पूल खाता जैसे अन्य आंतरिक खातों से भी लगातार 39,000 से 41,000 रुपये की भुगतान श्रृंखला एक ही सप्ताह में की गई। इनका उद्देश्य सामान्य पंचायत कार्य होते हैं, लेकिन भुगतान की निरंतरता और गति से शक और भी गहरा हो गया है। यह संदेह किया जा रहा है कि छोटे मदों को भी साज़िशन वितरित किया गया।
बीडीओ आवास में टाइलीकरण, गांवों में अधूरे कार्य
जहां ब्लॉक में बीडीओ आवास के टाइलीकरण जैसे सौंदर्यीकरण कार्य प्राथमिकता में रहे, वहीं कई पंचायतों में खड़ंजा, नाली, मरम्मत और जलनिकासी जैसे बुनियादी कार्य अब भी अधूरे हैं। फिर भी पोर्टल पर इन्हें पूर्ण दर्शा दिया गया है।
ग्रामीणों और पंचायत प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया है कि यह सब ब्लॉक स्तर के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और कुछ फर्मों की मिलीभगत से होता है। बार-बार उन्हीं एजेंसियों को लाभ देना साबित करता है कि निविदा प्रक्रिया केवल दिखावा है।
स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों ने मांग की है कि पूरे मामले की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कार्य आवंटन में किस स्तर पर मनमानी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भ्रष्ट तंत्र और गहराता जाएगा।
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